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महंगाई कम करना

महंगाई काम करना, भारतीय रिसर्व बैंक सुधारना 

(1) महंगाई का असली कारण क्या है ?

उत्तर 1 –

सामान्य तौर पर महंगाई तभी बढ़ती है जब रुपये (एम 3) बनाये जाते हैं लोन,आदि के रूप में और भ्रष्ट अमीरों को दिए जाते हैं, जिससे प्रति नागरिक रुपये की मात्रा बढ जाती है और रुपये की कीमत घाट जाती है और दूसरे चीजों की कीमत बढ जाती है जैसे खाद्य पदार्थ/खाना-पीना, तेल आदि |

भारतीय रिसर्व बैंक के आंकडो के अनुसार, प्रति नागरिक रुपये की मात्रा (देश में चलन में कुल नोट, सिक्कों और सभी प्रकार के जमा राशि का कुल जोड़ को कुल नागरिकों की संख्या से भाग किया गया) सन् 1950 में लगभग 65 रू. थी और सन् 2011 में लगभग 50,000 रू. प्रति नागरिक थी |

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हर वस्तु की कीमत एक दुसरे से सम्बंधित है और मांग और आपूर्ति के अनुसार (सप्लाई) निर्धारित (पक्का) होती है |

इसे एक उदहारण से समझिए | आसानी से समझने के लिए, मान लीजिए, केवल एक बाज़ार है और कुछ नहीं | बाज़ार में, एक बेचनेवाला है जो 10 रू. प्रति किलो आलू बेचता है और एक खरीददार है जिसके पास 100 रू. हैं | अब मान लीजिए, अगली स्थिति में, बेचनेवाले के पास 10 किलो की जगह 20 किलो आलू है, क्या आलू की कीमत घटेगी या बढ़ेगी ?

सरल सा अनुमान – यह घटेगी क्योंकि आलू की सप्लाई बढ़ गयी थी |

एक और स्थिति में, मान लो उस व्यापारी के पास 10 किलो आलू है पर अब दो खरीददार हैं और हर एक के पास 100 रू. हैं | क्या आलू की कीमत घटेगी या बढ़ेगी ?

सरल सा अनुमान – आलू की कीमत बढ़ेगी क्योंकि रुपयों की सप्लाई बढ़ गयी है और रुपए की कीमत घटेगी और अन्य वस्तुओं जिनमें शामिल है खाने-पीने का सामान, पेट्रोल, गैस आदि की कीमतें बढ़ेगी |

वास्तविकता में यही हों रहा है |

(2) ये रूपये कौन बनाता है और ये रूपये कहाँ से आते हैं (रूपये = एम3 देश में सभी नोट, सीके और सभी प्रकार की राशि का जोड़) ?

उत्तर 2 –

रिसर्व बैंक के पास लाइसेंस हैं रुपयों को बनाने का और अनुसूचित बैंक के पास भी (बैंक जिनको रिसर्व बैंक ने लाइसेंस दिया है रुपयों को बनाने का जमा राशि के रूप में) | कोई गोल्ड स्टेंडर्ड अभी नहीं है (कि जितना सोना है, उतना ही पैसा बना सकते हैं), क्योंकि वो कई दशक पहले पूरी दुनिया में रद्द हों चूका था | रिसर्व बैंक गवर्नर (रिसर्व बैंक राज्यपाल) सरकार के निर्देशों पर रुपयों का निर्माण करता है |

केवल रिसर्व-बैंक ही नोट छाप सकती है और सिक्के बना सकती है लेकिन अनुसूचित बैंक जैसे भारतीय स्टेट बैंक, आई.सी. आई.सी.आई , आदि भी रूपये का निर्माण (एम3) जमाराशि के रूप कर सकते हैं |

रुपयों की सप्लाई बढ़ने से रूपये का दाम काम हों जाता है और ये अन्य सामान जैसे खाने-पीने का सामान, पेट्रोल, गैस आदि की कीमतें बढ़ा देता है और ये सामान्य मंहगाई का मुख्य कारण है |

(3) रिसर्व बैंक और अनुसूचित बैंक रूपये क्यों बनाते हैं ?

उत्तर 3 –

वे ऐसा अमीर और भ्रष्ट लोगों के लिए करते हैं | मुझे एक उदहारण देने दीजिए | मान लीजिए एक अमीर कंपनी है जिसकी सांठ-गाँठ रिसर्व बैंक गवर्नर, वित्त मंत्री आदि के साथ है | वे एक सरकारी बैंक से रू. 1000 करोड़ का कर्ज लेते हैं और वापस रू. 200 करोड़ चूका देते हैं | और क्योंकि उनकी सांठ-गाँठ है, वे वित्त मंत्री, रिसर्व बैंक गवर्नर आदि को कहेंगे कि वे उनको हिस्सा (रिश्वत) देंगे और बदले में वे उनकी कंपनी को दिवालिया घोषित करवा दे |

तो कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है | अब यदि बैंक ये रू. 800 करोड़ का घाटा लोगों के सामने घोषित कर देता है, तब बैंक भी दिवालिया घोषित हों जायेगा और बैंक के ग्राहक को भी अपनी जमा राशि खोनी पड़ेगी और ग्राहक, जो आम नागरिक मतदाता हैं, शोर करेंगे और सरकार को लोगों का गुस्सा झेलना पड़ेगा | इस स्थिति से बचने के लिए, सरकार रिसर्व बैंक गवर्नर / अनुसूचित बैंकों को 800 करोड़ रूपये बनाने के लिए कहती है | ये ज्यादा रुपयों की सप्लाई, जब बाज़ार में आती है तो रूपये की कीमत घट जाती है और समान की कीमत बढ़ जाती है |

(4) इसे रोकने का समाधान क्या है ? हमें सरकार को हटा देना चाहिए या हमें अच्छी नीतियां बनाने की जरुरत है?

उत्तर 4 – ये अमीरों के लिए रूपये का अवैध निर्माण कांग्रेस के और बीजेपी के भी शासनकाल से हो रहा था | इसीलिए किसी एक सरकार को हटाकर दूसरी सरकार लाना समस्या का समाधान नहीं है |

इसके समाधान निम्नलिखित है –

(a) वित्त मंत्री और रिसर्व बैंक गवर्नर पर राईट टू रिकॉल – वर्तमान में, रिसर्व बैंक गवर्नर सरकार के निर्देशों पर अमीरों के लिए रुपयों का निर्माण भ्रष्ट रूप से करता है | एक बार रिसर्व बैंक गवर्नर और वित्त मंत्री की कुर्सी सीधे जनता के प्रति जवाबदेह होगी, ये ऐसा कुछ नहीं करेंगे | कृपया राईट टू रिकॉल-रिसर्व बैंक गवर्नर की प्रक्रिया smstoneta.com/prajaadhinbharat के अध्याय 9 में देखें |

(b) रिसर्व बैंक गवर्नर रुपयों का निर्माण सिर्फ तब ही कर सकेगा जब भारत के 51% नागरिक उसे स्वीकृति प्रदान करेंगे | इसके लिए हमें पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली चाहिए (smstoneta.com/prajaadhinbharat के अध्याय 1 में देखें) |

कृपया smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 23 भी देखें और ‘मंहगाई के असली कारण’ जानने के लिए smstoneta.com/prajaadhinbharat/faq4 देखें |

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पार्टी दान

कृपया नीचे दिए गए विकाप अनुसार पार्टी को दान दीजिए –

1. पे.टी.एम खाता –  +919693938833

2. बैंक खाता –

खाता नंबर: 32632365570

खाता नाम – Kumar Gaurav

SBI NItK

Kurukshetra, Haryana

IFSC Code: SBIN0006260

Branch code: 6260

कृपया नोट करें –
किसी क्षेत्र से पहले चुनावी उम्मीदवारों को कम से कम 1% वोटर नंबर के साथ समर्थन इकठ्ठा करना और सार्वजानिक दिखाना चाहिए, फिर ही उस क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहिए. और चुनावी उम्मीदवारों को पार्टी से आर्थिक सहायता लेने से पहले स्थानीय स्तर पर दान इकठ्ठा करने का प्रयास चाहिए. इस विषय पर अंतिम निर्णय पार्टी के कैबिनेट का होगा.

 

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण सुरक्षा

एक वायु प्रदूषण सूचक (चिन्ह), पी.एम.10 (ऐसे कण जिनका व्यास/डायामीटर 10 माइक्रोमीटर या उससे कम है), 1,680 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के साथ, विश्व में दिल्ली के अन्दर सबसे ज्यादा है |

पेरिस में – जब पी.एम.10, हवा के कणों में 80 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक थे, पेरिस में 10 साल में सबसे खराब वायु प्रदूषण माना गया था, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को शुल्क-रहित कर दिया था |

हमारे जल और भूमि दुनिया के अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक प्रदूषित हैं | क्यों ?

क्योंकि अन्य देशों के पास अच्छे सिस्टम जैसे जूरी सिस्टम, विभिन्न पदों पर राईट टू रिकॉल आदि हैं, जो कंपनियों को भ्रष्ट अधिकारीयों के साथ सांठ-गाँठ बनाने से और भ्रष्टाचार-विरोधी कानूनों को तोड़ने से रोकते हैं | क्योंकि नौकरी से बदलने का कानून ये सुनिश्चित करेगा कि 99% अधिकारी अपना बर्ताव सुधार लें और भ्रष्टाचार-विरोधी कानूनों को तोड़ने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही करें | जूरी सिस्टम, जिसमें 15-1500 नागरिक क्रमरहित तरीके से चुने जाते हैं जो जजों के स्थान पर फैसला देते हैं, जिससे मामलों की सुनवाई जल्दी और न्यायपूर्ण होती है, नागरिकों द्वारा कम समय में सजा होने का एक भय पैदा कर देता है |

रिकॉल प्रक्रियाओं और जूरी सिस्टम पर अधिक जानकारी के लिए कृपया smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 6, 21 देखें

राष्ट्रपति प्रणाली

भारतीय राजनितिक विकल्प पार्टी राष्ट्रपति और राज्यपाल के पद को समाप्त करके प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के सीधे चुनाव का प्रस्ताव करता है. इसके अलावा, इन पदों पर जनसेवक नागरिकों द्वारा किसी भी दिन बदले जा सकेंगे.

इससे देश राष्ट्रपति और राज्यपाल के पद के बड़े खर्चे से बच जायेगा. साथ ही, ये सुनिश्चित हो जायेगा कि प्रधानमंत्री / मुख्यमंत्री केवल नागरिकों के लिए काम करें न कि लॉबियों और उनके समर्थक सांसदों / विधायकों की खातिरदारी में लगें.

अधिक जानकारी के लिए कृपया अध्याय 6, smstoneta.com/prajaadhinbharat देखें.

चुनावी सुधार

चुनाव सुधार

क्यों सभी चुनाव सुधार बेकार हैं राईट टू रिकॉल सांसद, राईट टू रिकॉल विधायक के बिना ?

हम अक्सर चुनाव सुधार के बारे में बात करते हैं जिससे कि बुरे व्यक्ति के चुन कर आने की सम्भावना घटे और अच्छे व्यक्ति के चुन कर आने की संभावना बढ़े | लेकिन जब तक हमारे पास राईट टू रिकॉल नहीं है, इसकी संभावना ज्यादा बनी रहती है कि अगला चुनकर आने वाला व्यक्ति भ्रष्ट हो जायेगा | तो सबसे जरुरी और महत्वपूर्ण कार्य है राईट टू रिकॉल-सांसद, राईट टू रिकॉल-विधायक आदि | लेकिन तब एक सवाल आता है : वर्तमान सांसद कभी भी राईट टू रिकॉल के कानून नहीं बनायेगे क्योंकि ये उनके आर्थिक हितों के विरुद्ध जाता है, तब क्या हम अगले चुनाव आने तक इन्तेज़ार करेंगे और सांसदों को बदलेंगे?

देखिये, इसमें हमें अगले 5 साल तक नुक्सान होता रहेगा और इससे केवल वर्तमान सांसदों को फायदा होगा -क्योंकि वह अगले 5 साल तक बिना किसी चिंता के रिश्वत लेते रहेंगे और आगे चुनकर आने वाले सांसदों के बिक जाने की संभावना भी ज्यादा रहेगी | इसलिए इसका समाधान है कि एक व्यापक जन आंदोलन खड़ा किया जाए जिसमें नागरिकों से कहा जाए कि वे वर्तमान प्रधानमंत्री, मुख्मंत्रियों को टी.सी.पी., जो कि एक नागरिकों का प्रामाणिक, जांचा जा सकने मीडिया सिस्टम है, उसको राजपत्र में छापने के लिए मजबूर करें | एक बार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री टी.सी.पी., राजपत्र में छापने के लिए मजबूर हो गये, नागरिक प्रधानमंत्री, सभी मुख्यमंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट के जजों आदि पर राईट टू रिकॉल कानून सिर्फ कुछ महीनों में ला सकते हैं और निम्नलिखित प्रस्तावों को भी लागू कर सकते हैं –

  1. प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, महापौर, सरपंच का सीधा चुनाव करवाना
  2. इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (मतदान यन्त्र) को प्रतिबंधित करना और कागजी मतदान पत्रों का प्रयोग फिर से शुरू करना
  3. एक ही दिन चुनाव आयोजित करना
  4. चुनाव फॉर्म भरने की प्रक्रिया को आसान करना
  5. संपन्न उम्मीदवारों के लिए चुनावी जमानत राशि बढ़ाना
  6. उन नागरिक मतदाताओं की संख्या बढ़ाना जो किसी उमीदवार को स्वीकृति देने के लिए जरुरी है ताकि उमीदवार को मान्यता मिल सके और चुनाव लड़ने की अनुमति मिल सके
  7. उम्मीदवारों की संख्या सीमित करना
  8. तत्काल निर्णायक मतदान (इंस्टेंट रन-ऑफ वोटिंग) जिसे अधिक पसंद (प्राथमिकता) अनुसार मतदान भी कहते हैं
  9. उमीदवारों का उम्मीदवारी वापसी लेने के विकल्प को समाप्त करना
  10. राज्यसभा में चुनाव और राज्यसभा में सामान अनुपात वाला प्रतिनिधित्व
  11. पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र

अधिक जानकारी के लिए smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 40 देखें या हमसे संपर्क करें

जमीन के रिकॉर्डों का सुधार करना

जमीन के रिकॉर्डों का सुधार करना

  1. सभी भू-स्वामी मालिकों के नामों (व्यक्तिगत और ट्रस्ट) और उनकी जमीन अधिग्रहण की जानकारी नेट पर रखना |

उदहारण के लिए- अगर कोई यह जानना चाहता है कि श्रीमान X जिनका वोटर नंबर ऐसा है, कितनी और कैसी संपत्ति के मालिक हैं, तो यह जानकारी सभी को दिखनी चाहिए और कोई भी उस जानकारी को खोज सकता है

इससे जनता जान पायेगी कि किसके पास कितनी जमीन और संपत्ति है और अधिकारियों को काली संपत्ति और बेनामी संपत्ति का पता लगाने में मदद मिलेगी |

  1. “टोर्रेंस सिस्टम” के सामान एक भू-रिकॉर्ड सिस्टम लागू करें
  2. मालिकों और उनके रिश्तेदारों को बिक्री की सूचना आदि ईमेल या एस.एम.एस. से मिले
  3. जमीन / फ्लैट बिक्री बीमा करना

कृपया जानकारी के लिए rtrg.in/67 देखें या हमसे संपर्क करें

राष्ट्रीय आई.डी. सुधारना

राष्ट्रीय पहचान-पत्र सुधारना

जब तक राष्ट्रिय पहचान-पत्र (आधार कार्ड) मालिक, माता-पिता, रिश्तेदार और बैंक खतों से नहीं जोड़ा जाता और जब तक आधार कार्ड विभाग के प्रमुख को नागरिक बदल नहीं सकते और आधार कार्ड विभाग के स्टाफ पर जूरी मुकदमा सिस्टम लागू नहीं हो जाता, आधार कार्ड पूरी तरह लाभदायक नहीं होगा और उसका दुरूपयोग हो सकता है. इसीलिए, टी.सी.पी. (प्रस्तावित नागरिक प्रामाणिक मीडिया पोर्टल) द्वारा नागरिकों को ये प्रस्ताव भारतीय राजपत्र में डलवाने चाहिए.

इसके अलावा, नीचे बताये गए सुधार लागू करवाने चाहिए –

  1. एक धारा छापना कि अगर कोई गैर-नागरिक पहचान-पत्र के लिए आवेदन करता है तो उसे कारावास या मृत्यु दंड दिया जायेगा
  2. एक व्यक्ति के पहचान पत्र को उसके माता-पिता और नजदीकी रिश्तेदारों के पहचान पत्र से जोड़ना
  3. एक व्यक्ति के पहचान पत्र को मालिक के पहचान पत्र और काम की जगह से जोड़ना
  4. राष्ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली के सदस्यों पर जूरी द्वारा मुक़दमा चलाना
  5. एक व्यक्ति के पहचान पत्र को बैंक खाते, पैन कार्ड और डी.एन.ए. कोष से जोड़ना

जब कभी भी खर्च उठने में समर्थ हों, सभी नागरिकों के डी.एन.ए. छाप पहचान-पत्र सिस्टम में जोड़ना चाहिए | शुरुवात में, सभी सरकारी कर्मचारियों और फिर सभी नागरिकों को डी.एन.ए. छाप देना आवश्यक बना देना चाहिए जो रू 10 लाख प्रति वर्ष से ज्यादा कमाते हों, फिर जो नागरिक रू 5 लाख प्रति वर्ष कमाते हों, फिर सभी नागरिक जो रू 2 लाख प्रति वर्ष कमाते हों और फिर सभी नागरिकों को उनकी राशि और समय के अनुसार |

ऐसे कदमों से अवैध घुसपैठियों का पकड़ने और बहार निकलने में मदद मिलेगी | इससे कर-चोरी करने वालों को पकड़ने और सज़ा देने में मदद मिलेगी |

कृपया जानकारी के लिए का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय 31 देखें या हमसे संपर्क करें

आरक्षण सुधारना और कम करना

अनुसूचित जाति (दलित), अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) और अन्य पिछड़ा वर्ग के गरीब लोगों के समर्थन द्वारा आरक्षण घटाना और आरक्षण की जरूरत कम करना

आरक्षण का उद्देश्य समाज के उन वर्गों को ऊपर उठाना है जो सदियों से दबाए गए हैं और आज भी दबाए जा रहें हैं. क्योंकि अगर यहाँ व्यक्ति के किसी विशेष जाति या परिवार में जन्म होने के कारण, संपर्क (संचार) के माध्यमों में, शिक्षा, नौकरियों और अन्य अवसरों में बहुत ज्यादा असमानता होगी, तब पूरा समाज भुगतेगा और वहाँ योग्यता नहीं होगी.

हालाँकि, आरक्षण का प्रावधान संविधान में सिर्फ एक सीमित समय के लिए ही रखा गया था और हर 10 साल या उसके बाद आरक्षण पर फिर से विचार किया जाना था. इसका मतलब है कि जनसेवकों का काम था कि वे ऐसी नीतियाँ बनाएँ जिससे आरक्षण की जरुरत कम या समाप्त हो जायेगी लेकिन अब तक ऐसी कोई नीति नहीं बनायी गयीं.

एक अन्य सच्चाई ये भी है कि 10% से भी कम विद्यार्थी जनसँख्या 12वीं कक्षा भी पास नहीं हैं. तो आरक्षण का लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुँचता, ये सिर्फ आरक्षित जातियों के क्रीमी लेयर (उन जाति-समाज के उच्च वर्ग) तक पहुंचा है.

इसका समाधान क्या है ?

आरक्षण घटाने का पहला कदम : आरक्षण की जरुरत घटाना – गरीबी कम करने के लिए, शिक्षा सुधार के लिए और शीघ्र और न्याय संगत मुकदमों के लिए उचित राजपत्र अधिसूचना छपवाकर

प्रस्तावित “नागरिक और सेना के लिए खनिज आमदनी” कानून ड्राफ्ट से गरीबी कम होगी (जानकारी के लिए smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 5 देखें). और शिक्षा में प्रस्तावित बदलाव जैसे कि राईट टू रिकॉल-जिला शिक्षा अधिकारी आदि, शिक्षा में दलितों और ऊंची जातियों के बीच का अंतर और भी घटा देगा (जानकारी के लिए smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 30 देखें). और मंदिरों और धार्मिक संस्थानों के लिए प्रस्तावित कानून दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को भी घटा देगा  (देखें  tinyurl.com/HinduSashakt). आगे ये प्रस्तावित किया गया है कि सभी प्रकार के इंटर-व्यू (साक्षात्कार) पुलिस, सरकारी बैंको, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, न्यायपालिका, सरकारी वकील और अन्य सेवाओं के शुरुवाती भर्ती के स्तर से समाप्त किया जायेगा और ये भी नौकरी में दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को घटा देगा. ये और भ्रष्टाचार को कम करने के सभी राजपत्र सूचनाएं समाज में गुणवत्ता बढ़ाएंगे.

आरक्षण घटाने का दूसरा कदम: “भत्ता (अलग से मिलने वाला धन) बनाम आरक्षण” की प्रणाली

1. हम एक प्रशासनिक प्रणाली का समर्थन करते हैं जिसे आर्थिक-विकल्प (आर्थिक-चुनाव या पैसों का भुगतान) भी कहते हैं गरीब अनुसूचित दलित, अनुसूचित आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग के समर्थन (हां) द्वारा आरक्षण कम करना.

किसी उपजाति का कोई भी सदस्‍य जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अथवा अन्‍य पिछड़े वर्ग का हो, वह तहसीलदार के कार्यालय जाकर अपना सत्‍यापन (जांच) करवाकर आर्थिक-विकल्प के लिए आवेदन कर सकता है. इस आर्थिक-विकल्प में निम्‍नलिखित बातें (तथ्‍य) हैं –

  • उस व्यक्ति का अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग का दर्जा बना रहेगा
  • उसे समायोजित मुद्रास्‍फीति (महंगाई दर के अनुसार एडजस्ट किया गया) (इनफ्लेशन एडजस्‍टेड) अनुसार 1200 रूपए हर साल मिलेगा जब तक कि वह अपने आर्थिक-विकल्‍प के चयन को रद्द नहीं कर देता
  • जब तक उसे पैसे का भुगतान होता रहेगा, तब तक वह आरक्षण कोटे में आवेदन नहीं कर सकता
  • जिस दिन से वह अपने आर्थिक-विकल्प को रद्द कर देगा, उस दिन से वह आरक्षण के लाभ के लिए योग्य माना जाएगा
  • जिन्होंने आर्थिक-विकल्‍प लिया है, उनकी संख्‍या के आधार पर आरक्षित पदों की संख्‍या में कमी की जाएगी
  • इसके लिए पैसा सभी जमीनों पर टैक्स (कर) की वसूली से आएगा कहीं और से नहीं

2. उदाहरण – मान लीजिए कि भारत की आबादी 100 करोड़ है जिसमें से 14 प्रतिशत अर्थात 14 करोड़ लोग अनुसूचित जाति के हैं. इसलिए यदि किसी कॉलेज में 1000 सीटें हैं तो उनमें से 140 सीटें आरक्षित रहेंगी. अब मान लीजिए, इन 14 करोड़ लोगों में से लगभग 6 करोड़ लोग आर्थिक-विकल्‍प का रास्‍ता अपनाते हैं तो उनमें से प्रत्‍येक को हर महीने 100 रूपए मिलेगा और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 6 प्रतिशत कम हो जाएगा अर्थात यह 8 प्रतिशत रह जाएगा.

अधिकतर गरीब दलितों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता और जैसे जैसे दलितों में संपन्न और धनिक संख्या में बढ़ते जा रहें हैं, गरीब दलितों के लिए अवसर और कम हो गये हैं. आर्थिक-विकल्प एक ऐसा सिस्टम बनाता है जिसके द्वारा गरीब दलित भी आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं. इनमें से अधिकांश आर्थिक-विकल्प को चुनेंगे (जो कि आरक्षण में दिए जाने वाले सामाजिक विकल्प से विपरित है). इससे आरक्षण घटेगा.

आरक्षण घटाने का तीसरा कदम: पहले अपना-कोटा

एक व्यक्ति को सीट पहले उसके अपने कोटा में और फिर सामान्य कोटा में ही मिलेगी; तो अगर वह सामान्य मेरिट सूची में भी है, तब भी उसे सामान्य मेरिट सूची में सीट नहीं मिलेगी लेकिन अपनी मेरिट सूचि में सीट मिलेगी. तो मान लो किसी जगह 100 सीटें हैं जिसमें 14 सीटें अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित हैं. अब सोचिये 1000 छात्र एक परीक्षा के लिए आवेदन करतें हैं जिसमें से 100 अनुसूचित जाती से हैं. अब शीर्ष 100 में 3 अनुसूचित जाती के हैं. तब इन 3 अनुसूचित जाती को सीट अनुसूचित जाती के कोटा में मिलेगी और अनुसूचित जाती की अलग मेरिट सूचि में उनकी सीटें 11 होगी.

तो आर्थिक विकल्प के द्वारा, आरक्षण कोटा 50% से घटकर शायद 10% या और भी कम हो सकता है. अब बहुत से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग किसी भी तरह से मेरिट सूचि में आ जाते हैं और तब प्रभाविक आरक्षण और भी कम, शायद 5% हो जायेगा.

चौथा बदलाव : अधिक पिछड़े को ऊँची प्राथमिकता देना

ऐसे समुदाय जिनका प्रशासन में कम प्रतिनिधित्व (भागेदारी) है उन्हें ज्यादा सीटें मिलेंगी जब तक उनका प्रतिनिधित्व सामान स्तर पर नहीं आ जाता. इसके लिए हमें एक पूर्ण जाति जनगणना की आवश्यकता है. एक बार पूर्ण जाति जनगणना हो जाती है, हर एक उपजाति का देश के प्रशासन में प्रतिशत प्रतिनिधित्व निकाला जायेगा और सबसे कम प्रतिनिधित्व करने वाली उपजाति को ऊँची प्राथमिकता मिलेगी (पहला अवसर) जब तक उस उपजाति का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं हो जाता.

अधिक जानकारी के लिए, कृपया smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 36 देखें या हमसे संपर्क करें.

स्वास्थ्य प्रणाली सुधारना

स्वास्थ्य : चिकित्सा सहायता प्रणाली (सिस्टम) सुधारना

आजकल, चिकित्सा शिक्षा बिखर रही है और स्वास्थ्य सेवाओं के दाम दिन ब दिन बढ़ रहे हैं | स्व-वित्तीय संस्थानों में बढोत्तरी के कारण, बहुत से होशियार विद्यार्थी दाखिला लेने में समर्थ नहीं होतें और कम मेहनती और कम होशियार विद्यार्थियों को सीटें मिल रही हैं | इससे डॉक्टरों का हुनर तेजी से घटेगा आने वाले समय में | ऊपर से, मंत्रियों और अफसरों द्वारा ऐसे टेड़े-मेढ़े कानून बनाये जा रहे हैं जिससे दवा बनाने के उद्योग में मुकाबला कम होगा और इससे दवाओं की कीमत में उछाल आएगा | कौन से राजपत्र अधिसूचना ड्राफ्ट इस समस्या को कम कर सकते हैं ?

हम निम्नलिखित बिंदु प्रस्तावित करते हैं चिकित्सा शिक्षा को सुधरने और दवाओं के दाम कम करने के लिए (ड्राफ्ट अभी तैयार नहीं है):

  1. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मंत्री, राज्य स्वास्थ्य मंत्री, जिला स्वास्थ्य अधिकारी, भारतीय मेडिकल परिषद के अध्यक्ष और राज्य मेडिकल परिषद के अध्यक्ष पर राईट टू रिकॉल : ये शीर्ष अंगों में भ्रष्टाचार कम करने के साथ ही सामान्य क्षमता और पारदर्शिता में सुधार करेगा |
  2. बहुत बार डॉक्टर जानबूझकर महंगी दवायें लिखते हैं जब कि सस्ती दवा उपलब्ध हैं | समाधान ? अगर मरीज जो दवा ले रहा हैं, उसका खुलासा चाहता हैं, तो दवा बेचने वाले रोगी की दवा की सूची के साथ में, रोगी के मोबाइल नंबर और ईमेल आई.डी. की जानकारी दर्ज करेगा | तो मुकाबले में दूसरे कम्पनियाँ, समान दवा की जानकारी सस्ते दाम के साथ भेज सकती हैं |
  3. टी.सी.पी. का उपयोग करके, प्रोडक्ट पेटेंट कानून को हटाना और फिर से प्रोसेस पेटेंट कानून लाना | इससे बहुत सारी छोटी कंपनियों को उत्पादन शुरू करने में मदद मिलेगी और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी (मुकाबला बढ़ेगा) और परिणाम स्वरुप कीमतें घटेंगी |
  4. टी.सी.पी. का उपयोग करके, एक कानून लागू करना कि एक एम.बी.बी.एस. डिग्री पाने वाले व्यक्ति 8 सालों के लिए भारत नहीं छोड़ सकते और डी.एम. डिग्री वाले अगले 2 सालों के लिए देश नहीं छोड़ सकते और एम.डी. अगले 3 सालों के लिए देश नहीं छोड़ सकते |
  5. टी.सी.पी. का उपयोग करके, चिकित्सा में सभी स्व-वित्तीय सीटें (पैसों से खरीदी गयी सीट) समाप्त करें | सभी चिकित्सा महाविद्यालय की शून्य ट्यूशन फीस होगी |
  6. सरकार एक वेबसाईट बनाएगी जिस पर दवा कंपनियां, पंजीकृत डॉक्टर इत्यादि किसी दिए गए ब्रांड नाम के बराबर की दवाई की सलाह दे सकते हैं | इससे रोगी को पता करने में मदद होगी कि डॉक्टर ने एक महंगी दवा या सस्ती दवा लिखी है |