विकल्प पार्टी
एजेंडा और घोषणा-पत्र
(राहुल
चिमनभाई मेहता
जी fb.com/mehtarahulc को
विशेष धन्यवाद
क्योंकि इस घोषणा-पत्र
का अधिकाँश भाग
उनके लेख को परिवर्तित
करके बनाया गया
है)
इस घोषणा-पत्र
को मुफ्त डाउनलोड
करने के लिए - brvp.org/manifesto.h.pdf
सूची
1. भूमिका
– भारतीय
राजपत्र
क्या
है
और
उसका
महत्व
3. विकल्प
पार्टी
राईट
टू
रिकॉल-मुख्यमंत्री
आदि
प्रस्तावित
राजपत्र
कैसे
लागू
करेगी
?
4. नागरिक-प्रामाणिक, पारदर्शिता सरकारी वेबसाईट
6. हम
प्रस्तावित
राईट
टू
रिकॉल-विधायक
और
राईट
टू
रिकॉल-मुख्यमंत्री
सरकारी
आदेश
लागू
करवाएंगे
7. न्यायपूर्वक
और
शीग्र
फैसले
आने
के
लिए
और
कोर्ट
का
सिस्टम
सुधरने
के
लिए
जूरी
सिस्टम
8. नागरिकों और सेना के लिए खनिज रोयल्टी (आमदनी) (एम आर सी एम) द्वारा कुछ ही महीनों में गरीबी कम करना
10. स्वदेशी बढ़ाना, अन्यायपूर्ण बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार को कम करना और विदेशी निवेश कम करना
13. गणित,
कानून
आदि
की
शिक्षा
में
सुधार
करना
14. जमीन के रिकॉर्डों
का
सुधार
करना
15. कृषि और राशन कार्ड में सुधार करना
16. राष्ट्रीय
पहचान-पत्र सुधारना
17. महंगाई काम करना, भारतीय रिसर्व बैंक सुधारना
18. नैतिक आदर्शों,
राष्ट्रीय
चरित्र
और
नैतिक
शिक्षा
सुधारना
19. शराब
सेवन
और
नशे
की
लत
और
सम्बंधित
अपराधों
को
कम
करना
20. मॉरिशस,
सिंगापुर
और
फिजी
कर
संधियाँ
आज
ही
रद्द
करें
बिना
देर
किये
21. मुद्रा का विमुद्रीकरण (नोट-बंदी) - समय की बर्बादी और काले धन का सही समाधान
22. आवास
योजना : आवासों
(घरों)
की
कीमतें
घटाना
और
स्थिर
रखना
23.
स्वास्थ्य
: चिकित्सा
सहायता
प्रणाली
(सिस्टम)
सुधारना
24.
जलवायु
परिवर्तन
और
पर्यावरण
सुरक्षा
देश
केन्द्रीय, राज्य
राजपत्र (सरकारी
मैगज़ीन) में क्या
नोटिस छपा है,
उसके अनुसार
चलता है | नेताओं
के भाषणों और नारों
से देश की व्यवस्था
नहीं चलती | भारतीय
राजपत्र में विस्तृत
जानकारी होती है
कि किस अफसर को
क्या कार्य करना
है |
उदाहरण
– 8 नवंबर 2016 को
500, 1000 रुपये के
पुराने नोट बंद
हुए तो केवल प्रधानमंत्री
ने बोला तो नोट
बंद हुए, ऐसा
नहीं है | पुराने
नोट बंद इसीलिए
हुए क्योंकि प्रधानमत्री
ने भारतीय राजपत्र
में ये निर्देश
छपवाया था |
राजपत्र
में जो लिखा जाता
है,
तो वो लागू हो
जाता है | अब आपको
उसको बदलना है,
तो फिर नया मैटर
उसमें डालना होगा.
इसलिए राजपत्र
मुख्य चीज है |
तो नागरिकों
को,
कार्यकर्ताओं
को, पार्टियों
को पहली चीज ये
बतानी चाहिए कि
राजपत्र में क्या
होता है और क्या
नहीं होना चाहिए
| कार्यकर्ताओं,
नागरिकों को
अपने प्रिय नेताओं
और चुनावी उम्मीदवारों
को कहना चाहिए
कि चुनाव पूर्व
अपने वेबसाईट,
ट्विट्टर आदि
द्वारा वे ड्राफ्ट
मांग करें जो वे
राजपत्र में छपवाना
चाहते हैं |
500, 1000 के
नोट बंद होने चाहिए
तो वो भी राजपत्र
में लिखा जायेगा
| अच्छा प्रधानमंत्री
/ मुख्यमंत्री
है, तो भी राजपत्र
का प्रयोग करता
है, बुरा व्यक्ति
है तो भी राजपत्र
का ही प्रयोग करता
है |
आप सबसे
अच्छे विकल्प को
वोट या समर्थन
करें लेकिन आपके, आपके
परिवार - देश की
भलाई के लिए अच्छे
प्रक्रिया.ड्राफ्ट
का बढ़ावा करें
|
जनसेवक
का ये काम होता
है कि वो ऐसी नीतियों
का प्रस्ताव करे
और ऐसी नीतियां
पारित करे जिससे
समाज और देश का
भ्रष्टाचार, अपराध
आदि समस्याओं का
समाधान आये | और
इसकी कोई गारंटी
नहीं है कि चुनाव
जीतने के बाद कोई
व्यक्ति पलट नहीं
जाता है ; इसलिए
केवल वायदे करने
से कोई सकारात्मक
परिवर्तन नहीं
आने वाला है | इसलिए
एक अच्छी पार्टी
का यही नारा और
उदेश्य होना चाहिए
कि पहले हमारा
काम देखो और फिर
हमें वोट और समर्थन
दो |
जनता से
किसी भी प्रकार
का समर्थन लेने
के लिए हमें सबसे
पहले उनको पूरी
प्रस्तावित प्रक्रिया
दिखानी आवश्यक
है | हो सकता है कि
वे उस प्रक्रिया
को पसंद करें या
उस प्रक्रिया पर
अपने सुझाव दें
या उससे भी अच्छी
प्रक्रिया बताएं
| लेकिन बिना प्रक्रिया
दिखाए, लोगों से
समर्थन माँगना
उनके साथ धोखा
है |
विकल्प
पार्टी एकमात्र
पार्टी है जिसने
चुनाव के पूर्व
अपने फेसबुक पेज
और वेबसाईट पर
डाला है कि वो राजपत्र
में क्या छपवाना
चाहती है | पार्टी
ने टी.सी.पी., राईट
टू रिकॉल-विधायक,
राईट टू रिकॉल-मुख्यमंत्री
और निचली अदालतों
में जूरी सिस्टम
को अपने फेसबुक
पेज और वेबसाईट
पर डाला है जो कोई
भी डाउनलोड करके
बाँट कर सकता है
और पार्टी इन पर्चों
को जनता में प्रचार
कर रही है (ड्राफ्ट और शुरुवाती
पर्चों के लिए fb.com/1170674479691346 देखें) | पार्टी
घोषणा-पत्र में
भी इन ड्राफ्ट
का सारांश दिया
गया है इन ड्राफ्ट
के पूरे प्रारूप
के लिंक के साथ
|
इस घोषणा
पत्र में बताये
गए दूसरे प्रस्तावों
के ड्राफ्ट अभी
तैयार नहीं है
और कब तक तैयार
होंगे ये नहीं
बताया जा सकता
| हम
सभी नागरिकों,
कार्यकर्ताओं
को हमारी पार्टी
से जुड़ने और जन-जन
तक अच्छे प्रक्रियाओं
को पहुँचाने और
उन्हें भारतीय
राजपत्र में छपवाने
में मदद करने के
लिए आमंत्रित करते
हैं | कार्यकर्ता
/ नागरिक हमारी
वेबसाईट sms.brvp.org पर वोटर
नम्बर के साथ रजिस्टर
हो सकते हैं और
अपने प्रस्तावित
राजपत्र भी वेबसाईट
पर रजिस्टर करवा
सकते हैं | दूसरे
नागरिक उन मुद्दों
पर अपना समर्थन
या विरोध अपने
वोटर नंबर के साथ
दिखा सकते हैं
| अधिक जानकारी
के लिए कृपया इस
घोषणा पत्र के
आगे के सैक्शन
देखें |
3. विकल्प
पार्टी राईट टू
रिकॉल-मुख्यमंत्री
आदि प्रस्तावित
राजपत्र कैसे लागू
करेगी ?
हमारी
एक नागरिक प्रामाणिक
मीडिया वेबसाईट
– जो कोई भी नागरिक
जांच कर सकता है
– जहाँ हर नागरिक
अपने वोटर नंबर
/ मोबाइल नंबर द्वारा
रजिस्टर हो सकता
है और उचित कोड-एस.एम.एस
भेज कर अपने वोटर
नंबर के साथ अपनी
राय सार्वजानिक
दर्शा सकता है
| इसका डेमो इस साईट
पर देखें - sms.brvp.org
ऊपर
बताये गए पब्लिक
एस.एम.एस. गिनती
सर्वर पर, नागरिक
ड्राफ्ट के रूप
में अपने सुझाव
और शिकायत दे सकते
हैं | यदि कोई ड्राफ्ट
जनहित का होगा
और यदि उसके लिए
पार्टी साईट पर
पर्याप्त वोटर
आई.डी. नंबर समर्थन
(जैसे 5000 पंजीकृत
समर्थन) आयें, तो
पार्टी इसे हर
प्रकार से बढ़ावा
करेगी और प्रधानमंत्री,
मुख्यमंत्री
आदि जनसेवकों से
भी मिलेगी |
हस्ताक्षर
द्वारा समर्थन
की तुलना में, वोटर
आई.डी. नंबर इन्टरनेट
समर्थन प्रामाणिक
है | क्योंकि नागरिक
हस्ताक्षर को स्वयं
जांच नहीं सकते
और न ही हस्ताक्षर
देने वाले को संपर्क
करके और जानकारी
ले सकते हैं जबकि
वोटर आई.डी. नंबर
से पता निकालकर
नागरिक स्वयं संपर्क
करके जांच सकता
है |
यदि
कोई जनसेवक इसको
लागू करने के लिए
कार्य नहीं करना
चाहता, तो उसे
ऐसा करने के लिए
कारण बताना होगा
| जब तक टी.सी.पी. प्रस्ताव
(नागरिक का
प्रामाणिक मीडिया
मंच) लागू नहीं
हो जाता, इस प्रकार
का पब्लिक एस.एम.एस
गिनती सर्वर से
नागरिकों को एक
प्रामाणिक मंच
प्राप्त होगा
|
पार्टी
वेबसाईट पर सारा
डाटा एक्सेल फोर्मैट
में होगा और कोई
भी डाउनलोड कर
सकता है | इसीलिए
यदि किसी कारण
हमारी साईट बंद
हो जाये, तो
भी डाटा नष्ट नहीं
होगा और उसके आगे
भी लोग वोटर नंबर
समर्थन इकठ्ठा
कर सकते हैं |
हम सभी
को बोलते हैं कि
किसी मुद्दे पर
वोटर नंबर समर्थन
को इकठ्ठा करके
एक्सेल शीट पर
डालें और सोशियल
मीडिया पर सभी
के साथ शेयर करें
और दूसरों को भी
ऐसा करने के लिए
कहें | और सभी वोटर
नंबर समर्थन वाली
एक्सेल शीट के
डाटा के डुप्लिकेट
हटा कर डाटा को
इकठ्ठा किया जा
सकता है |
यदि
किसी क्षेत्र में
पर्याप्त संख्या
में लोगों ने इन
प्रस्तावित प्रक्रियाओं
का वोटर आई.डी. नंबर
प्रमाण के साथ
इन्टरनेट पर सार्वजानिक
समर्थन दिखाया
और अपने जनसेवक
से मांग किया तो
उस क्षेत्र में
ये प्रक्रियाएँ
आ जाएँगी और उस
क्षेत्र में भ्रष्टाचार, अपराध
कम हो जायेगा |
उदाहरण
- सूचना आधिकार
अधिनियम सबसे
पहले राजस्थान
में आया था जब हजारों
ने मांग की थी और
फिर पूरे देश में
माँगा गया और पूरे
देश में लागू हो
गया |
4. नागरिक-प्रामाणिक,
पारदर्शिता
सरकारी वेबसाईट
यदि
हम सत्ता में आये, तो
हम नागरिक-प्रामाणिक,
पारदर्शिता
सरकारी वेबसाईट
लागू करेंगे,
जिसमें पब्लिक
पैसों के खर्चे
के बारे में विस्तृत
जानकारी दिखाई
गयी हो, जैसे
नीचे उदाहरण के
साथ बताई गयी है.
और यदि हम सत्ता
में नहीं भी आते,
तो भी हम इन्टरनेट
पर जनसमूह के वोटर
नंबर समर्थन के
आधार पर अफसरों
पर दबाव डालेंगे
कि इस प्रकार की
नागरिक-प्रामाणिक
वेबसाईट बनाएँ.
A. भूमिका
और समस्या
आज देश
में नागरिकों से
टैक्स आदि लिया
जाता है. और नागरिकों
के उस पैसे से प्रशासन
और कोर्ट आदि का
खर्चा चलता है.
और नागरिकों को
सरकार के काम-काज
का आंकलन करना
होता है, जहाँ पर
गडबडी हो, उसकी
शिकायत करनी होती
है ताकि गलत व्यक्ति
गलत नहीं करे. अब
कोई नागरिक या
कोई कार्यकर्ता
तभी सही से आंकलन
कर सकता है जब उसके
पास पर्याप्त जानकारी
हो. लेकिन अधिकतर
देखा जाता है कि
सरकारी दस्तावेजों
को नागरिक देख
भी नहीं सकते.
नागरिकों
के पास विभिन्न
केन्द्रीय और राज्य
के विभागों सूचना
के अधिकार के अफ्सोरों
के पास सूचना प्राप्त
करने के लिए अर्जी
देने का विकल्प
तो है, लेकिन इस
प्रक्रिया की काफी
सीमाएं हैं.
एक उदाहरण
देखते हैं –
2015 में
एक सूचना अधिकार
अर्जी दर्ज हुई
थी जिसमें सलमान
खान के गाडी से
लोगों को मार कर
भाग जाने वाले
मामले पर सरकार
ने कितना खर्चा
किया था, उसकी
विस्तृत जानकारी
मांगी गयी थी. जवाब
आया कि फाइलें
2012 में जल गयी,
इसलिए ये जानकारी
नहीं दी जा सकती
!! और सरकार इस जानकारी
को फिर से प्राप्त
करने में भी असफल
रही है !! और तो और,
अपराधिक तत्व
सूचना अधिकार के
कार्यकर्ताओं
को मार कर भी मामले
को दबाने का प्रयास
करते हैं.
एक दूसरा
उदाहरण देखते हैं
–
आज ये
आम बात है कि रोड
बनता हैं और कुछ
एक-आध साल बाद घटिया
माल डालने के कारण
वो टूट जाता है.
जगह जगह गडडों
के कारण दुर्घटना
होती है और लोगों
की जान भी जाती
है. रोड के टेंडर
को किसको दिया
गया और किस अफसर
ने दिया, ये नागरिकों
को पता नहीं होता.
नागरिकों को ये
भी नहीं पता होता
कि रोड निर्माण
की जांच किन अफसरों
ने की या किन अफसरों
ने कितना पैसा
किस ठेकेदार को
देना मंजूर किया.
इस प्रकार, जानकारी के अभाव
में, नागरिक
/ कार्यकर्ता इस
भ्रष्टाचार को
रोक नहीं पाते
.
भारतीय
जनता इस प्रकार
जानकारी आसानी
से देख नहीं सकती
है. केवल एक ही तरीका
है कि उसे सूचना
अधिकार पाने के
लिए धक्के खाने
पड़े और इसकी भी
कोई गारंटी नहीं
है कि सूचना अधिकार
डालने से जानकारी
सही प्राप्त होगी
या प्राप्त होगी
भी.
दूसरे
देश आसानी से बहुत
सारी पब्लिक रिकोर्ड
और जानकारी देख
सकते हैं और अपने
लिए और देश के लिए
महत्वपूर्ण निर्णय
ले सकते हैं. लेकिन
भारतीय जनता के
सन्दर्भ में ऐसा
नहीं है. इसीलिए, भारतीय
लोगों को मजबूरी
में या तो अनिर्णायक
रहना पड़ता है या
तो अंध-भक्त बनना
पड़ता है.
अमेरिका
जैसे दूसरे देशों
में,
बहुत से राज्य
जैसे नेब्रास्का
आदि लोकसभा, विधानसभा आदि
में पेश बिल पर
हुई वोटिंग को
भी सार्वजानिक
दिखाते हैं , किसने किस बिल
पर किस प्रकार
वोट किया था, रिकोर्ड का पूरा
इतिहास होता है.
कृपया
देखें –
https://nebraskalegislature.gov/bills/
https://legiscan.com/TX/rollcall/SB4/id/605166
B. तो
समाधान क्या है
?
एक अल्प-कालीन
समाधान यानी जो
किसी भी स्तर पर
अफसर तुरंत लागू
कर सकती है वे ऐसी
नागरिक-प्रामणिक, पारदर्शी
सरकारी वेबसाईट
बनाएँ जिसपर किस
अफसर ने क्या कार्य
किया और किस अफसर
ने किस तिथि पर
कितनी राशि को
किस ठेकेदार के
लिए मंजूर की उसकी
विस्तृत जानकारी
हो. और ये सारी जानकारी
को कोई नागरिक
आसानी से राशि
पारित करने वाले
अफसर के नाम, ठेकेदार का नाम
और तिथि डालकर
ढूँढ सकता है.
इस प्रकार
की वेबसाईट बनने
से नागरिक को हर
प्रकार की जानकारी
प्राप्त करने के
लिए भीख नहीं मांगनी
पड़ेगी और न ही अपनी
जान गवाना पड़ेगा.
आज,
नागरिक ये पता
नहीं लगा सकते
कि उनके द्वारा
दिए गए गवाही या
सबूत एक दिन बाद
या एक महीने बाद
नष्ट कर दिए गए
हैं. लेकिन इस प्रकार
की वेबसाईट रहेगी
तो सबूत और गवाई
को दबाने की भी
सम्भावना न के
बराबर हो जायेगा. अफसर देखेगा
कि सबूत को दबाया
नहीं जा सकता है, अब तो लाखों-करोड़ों
को दिख रहे हैं
और कोई भी आसानी
से जानकारी को
धुंध सकता है,
डाउनलोड कर सकता
है. और गुंडों
को भी समझ में आएगा
कि गवाह ने अपना
बयान सार्वजनिक
कर दिया है – इसीलिए अब गवाह
को मारने से कोई
लाभ नहीं है. इसीलिए
जब सबूत दबेंगे
नहीं तो जिस क्षेत्र
के लिए इस प्रकार
की वेबसाईट बनेगी,
उस क्षेत्र में
भ्रष्टाचार और
अपराध में कमी
आएगी
पास
किये गए भुगतान
की विस्तृत जानकारी
कैसे दिखाई जा
सकती है, इसका एक
उदाहरण यहाँ देखें
–
http://local.ohiocheckbook.com
C. तो
कार्यकर्ता / नागरिक
इस प्रकार के सिस्टम
और कानून लाने
और कम समय में अपने
क्षेत्र और पूरे
देश में भ्रष्टाचार
और अपराध को कम
करने के लिए क्या
कर सकते हैं ?
1. एक
कागज पर मांग लिखकर
उस मांग के लिए
वोटर नंबर / एड्रेस
लेना और उसका फोटो
इन्टरनेट पर डालकर
शेयर करना –
क्योंकि
नागरिक / कार्यकर्ता
पूरे राज्य या
पूरे देश के नागरिकों
के साथ करने की
तुलना में एक जिले
के लोगों के साथ
आसानी से काम कर
सकते हैं, सभी
नागरिक और कार्यकर्ता
इस प्रकार की साईट
को अपने स्थानीय
अफसरों से मांग
कर सकते हैं. हो
सके तो नागरिकों
को अपनी मांग अपने
वोटर नंबर के साथ
सार्वजानिक करनी
चाहिए (वोटर नंबर
नहीं हो तो अपना
पता दे सकते हैं).
हो सकता है कि किसी
नागरिक कि ऐसी
स्थिति नहीं हो
कि वो अपना वोटर
नंबर / पता सार्वजानिक
कर सकता हो लेकिन
वो दूसरों को ऐसा
करने के लिए जरूर
बोल सकता है. यदि
10% नागरिक भी
इस प्रकार मांग
अपने वोटर नंबर
/ पता के साथ सार्वजानिक
मांग करते हैं
तो ये मांग नागरिक-प्रामाणिक
हो जायेगी जिसके
लागू होने की सम्भावना
काफी बढ़ जायेगी.
नागरिक-प्रामाणिक
का मतलब है कि कोई
भी नागरिक समर्थन
डाटा का सैम्पल
लेकर, उनके
पता प्राप्त कर
सकता है और समपर्क
करके जांच सकता
है. इस प्रकार,
नागरिक झूठ को
सच के रूप में पेश
होने से रोक सकता
है.
.
नीचे एक सैम्पल
है कि आप किस प्रकार
एक कागज पर रोड
निर्माण और रोड
सुधार में पारदर्शिता
के लिए वेबसाईट
अपने नगर निगम
के कमिश्नर से
कर सकते हैं. कागज
पर इस प्रकार लिखिए
और उसका फोटो लेकर
उसे इन्टरनेट पर
डाल दीजिए –
.
हम, XYZ के
निवासी, XYZ नगर
के कमिश्नर से
ये मांग करते हैं
कि ऐसी वेबसाईट
बनाएँ जिसमें रोड
की गुणवत्ता और
मरम्मत के बारे
में ये जानकारी
हो ताकि नागरिक
रोड की गुणवत्ता
पर नजर रख सकें
और भ्रष्टाचार
को रोक सकें –
.
1. ठेकों
की बोलियां और
ठेकेदारों की जानकारी
: ठेके किस आधार
पर किसको दिए गए
और अफसर का नाम
जिसने निर्णय लिया
2. सरकारी व्यय
के लिए जारी किए
गए सभी चेक-बुक
की काउंटर पैड
जानकारी – अफसर
का नाम जिसने भुगतान
पास किया गया
3. पिछले ठेके
– पहले बताये
विवरण अनुसार पिछले
वित्तीय वर्षों
से ठेकों और व्यय
वेबसाइट पर शामिल
किए जाने चाहिए
4. अधिक शक्तिशाली
खोज: निवासियों
के लिए ठेकेदार
के भुगतानों का
पता लगाना आसान
हो, ताकि वे
आसानी से ठेकेदार
के स्थान की खोज
कर सकें, कौनसे
अफसर ने भुगतान
को पास किया था
या सड़क में प्रयोग
होने वाली सामग्रियों
की जांच की थी,
उस महीने की
खोज कर सकें जब
भुगतान किया गया
था और निवासी ठेके
और अनुदान में
अंतर कर सकें.
5. सड़क में प्रयोग
होने वाली सामग्रियों
के नमूने की जांच
की डिटेल में रिपोर्ट
– अफसर जिन्होंने
जांच की, उनका
नाम.
.
यदि
आप इस मांग का समर्थन
करते हैं, तो
कृपया नीचे अपना
नाम और वोटर नंबर
डालें (यदि वोटर
नंबर नहीं हो तो
अपना एड्रेस डालें)
ये इन्टरनेट पर
सार्वजानिक रखा
जायेगा ताकि दूसरे
संपर्क करके जांच
सकें और ताकि सरकारी
अफसर ट्रान्सफर
आदि द्वारा फिसल
नहीं सकें और इसकी
लागू होने की सम्भावना
बढ़ जाये. यदि पर्याप्त
वोटर नंबर समर्थन
सार्वजानिक आयेंगे,
तो जहाँ भी सरकारी
अफसर जायेंगे,
नागरिक नको ये
मां न पूरी करने
का अच्छा कारण
देने के लिए कहेंगे
कि क्यों उन्होंने
इस हजारों / लाखों
लोगों की मांग
के लिए कुछ भी नहीं
किया है.
.
इसके
अलावा, XYZ नगर कमिश्नर
को फोन / एस.एम.एस.
करें (मोबाइल नम्बर
-____) और उसको इन
मांगों के बारे
में सूचित करें.
.
सीरियल
नम्बर नाम वोटर नंबर / एड्रेस (पता)
.
2. आप अपने सम्बंधित
अफसर जैसे
नगर निगम कमिश्नर को अधिक
संख्या में फोन या एस.एम.एस कर सकते हैं
3. ट्विट्टर
खाता बनाएँ जिसमें
आपका वोटर नंबर
या पता ट्विट्टर
प्रोफाइल में हो और
उचित अफसरों को
ट्वीट करें उचित
हैश टैग और लिंक
के साथ.
4. अपनी
मांग एस.एम.एस करके
सार्वजानिक अपने
वोटर नंबर के साथ
दिखाएँ – मांग
के लिए एस.एम.एस
को इकठ्ठा करके
सार्वजानिक वोटर
नंबर के साथ दिखाया
जा सकता है. डेमो
के लिए देखें smstoneta.com/hindi
5. वीडियो
जिसमें वोटर नंबर
/ एड्रेस के साथ
ये मांग हो – कार्यकर्ता
वीडियो बना कर
वीडियो को अपलोड
कर सकते हैं जिसमें
ये मांगें हों
और उनका वोटर नंबर
या पता हो
.
हमारा
पूरा प्रस्ताव
विस्तार से पढ़ने
के लिए कृपया ये
लिंक देखें –
अधिक
जानकारी के लिए
कृपया इस ग्रुप
से जुड़ें –
fb.com/groups/rrgindia और इस पेज को फोलो
करें – fb.com/brvparty
5. प्रस्तावित
पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव
प्रणाली = प्रमाणिक
नागरिकों का मीडिया
गरीबी, भ्रष्टाचार,
विदेशी कंपनियों
का एकाधिकार कुछ
ही महीनों में
समाप्त कर सकता
है
आज
के सिस्टम की दुर्दशा - मान
लीजिए, किसी क्षेत्र
में कोई शोषण-भ्रष्टाचार
या अपराध हुआ है
और नागरिक उसकी
10 पेज की शिकायत
लिखवाता है या
गवाही/सबूत
देता है और नागरिक
को शिकायत की कॉपी
मिलती है तो उसे
कोई भ्रष्ट अफसर
अपराधियों के साथ
सांठ-गाँठ करके
आसानी से दबा सकते
हैं | क्योंकि
नागरिक अपनी दर्ज
अर्जी जमा करने
के बाद देख नहीं
सकते | और आज
के सिस्टम में
गवाहों को गलत
तत्व आसानी से
डरा-धमका सकते
हैं ; यहाँ तक
गवाहों को जान
से भी मार दिया
जाता है | क्योंकि
गुंडों को मालूम
है कि अधिक लोगों
को तथ्य की जानकारी
नहीं है और गवाह दबाने/मारने से सबूत
समाप्त हो जायेंगे
|
अब मान लीजिए
कि जिसने शिकायत
लिखाई है उसके
पास या उसके समूह
के पास कोई बड़ा
समाचार पत्र है
जो लाखों घरों
में पहुँच जाता
है और उसमें वो
10 पेज का एक-एक शब्द
डाल देते हैं | अब
यदि लाखों घरों
तक कोई बात का एक-एक
शब्द पहुँच जायेगा
तो जाहिर है, भ्रष्ट
लोगों को उसको
दबाना अधिक कठिन
होगा उसकी तुलना
में कि वो प्रमाण
एक ही दफ्तर में
है और कुछ ही लोगों
को दिख रहा है |
लेकिन समस्या
ये है कि बहुत ही
कम लोग रोज का लाखों-करोड़ों
रुपये खर्च करके
ऐसा समाचार पत्र
खोल सकते हैं जो
लाखों घरों में
जाता हो | इसीलिए
आज सच्ची बात को
दबाना बहुत आसान
है और झूठी बात
को फैलाना बहुत
आसान क्योंकि भ्रष्ट
लोगों के पास मीडिया
मालिक आदि के साथ
संपर्क होता हैं
और आम नागरिक के
पास ऐसा कोई संपर्क
नहीं होता, भ्रष्ट
लोगों की पहुँच
अधिक होती और आम
नागरिक की पहुँच
बहुत कम |
सरल
सा उपाय - यदि
ऐसी प्रक्रिया
आ जाती है जिससे
नागरिक अपनी बात
प्रधानमंत्री,
सांसद, विधायक
आदि नामी जनसेवक
की वेबसाईट पर
भी अपने वोटर आई.डी.
नंबर (मतदाता पहचान
पत्र संख्या) के साथ रख सकता
है, तो आम-नागरिक
की पहुँच बढ़ जायेगी
और दूसरा नागरिक
मतदाता सूची से
पता लगा सकता है
कि ये व्यक्ति
असली है या फर्जी
| और क्योंकि स्टैम्प
पेपर पर व्यक्ति
का पता भी दिया
है, इसलिए नागरिक
स्टैम्प पेपर डलवाने
वाले व्यक्ति से
संपर्क करके और
अधिक जानकारी ले
सकता है या अपना
कोई संदेह पूछ
सकता है | तो फिर,
यदि नागरिक संतुष्ट
हो जाता है और पाता
है कि स्टैम्प
पेपर पर लिखी बात
से सबका भला होगा
तो वो ये बात और
लोगों को बताएगा
और बात फैलेगी
|
यदि
नागरिकों के पास
ये नागरिक-प्रामाणिक
विकल्प है कि वे
अपनी बात, सबूत
या राय अपनी वोटर
आई.डी. नंबर के साथ
सार्वजनिक रूप से
दर्शा सकते हैं, तो
अफसर देखेगा कि
सबूत को दबाया
नहीं जा सकता है,
अब तो लाखों-करोड़ों
को प्रमाण प्राप्त
हो गए हैं | और
गुंडों को भी समझ
में आएगा कि गवाह
ने अपना बयान सार्वजनिक
कर दिया है - इसीलिए
अब गवाह को मारने
से कोई लाभ नहीं
है | इस प्रकार
अपराधियों को सजा
होगी और शोषण-भ्रष्टाचार
भी कम हो जायेगा
और गवाह की भी जान
बच जायेगी |
क्यों
भारत के नागरिकों
को इस कानून की
सबसे ज्यादा जरुरत
है ?
भारतीय
राज व्यवस्था में
सबसे बड़ा दोष यह
है कि नागरिकों
के पास शासकों
के सम्मुख अपनी
स्पष्ट मांग संगठित
रूप से रखने की
कोई नागरिक-प्रामाणिक
प्रक्रिया नहीं
है । उच्च वर्ग
के लोग अपने संपर्क
द्वारा अपनी कोई
बात जनता के सामने
रखना चाहें तो
वे ऐसा मिडिया
के माध्यम से आसानी
से कर सकते हैं, किन्तु
यदि जनता अपनी
कोई मांग या सुझाव
शासन के सम्मुख
रखना चाहे तो उन्हें
अनशन, धरने,
विरोध प्रदर्शन,
हस्ताक्षर अभियान,
ज्ञापन, रास्ता
जाम, नारेबाजी
आदि असंगठित तरीकों
को अपनाने के लिए
मजबूर होना पड़ता
है ।
किन्तु
इन सब तरीकों से
कोई 'नागरिक प्रमाणिक' प्रमाण
पैदा नहीं होता,
मतलब
कोई भी नागरिक
स्वयं संपर्क
करके जांच सके,
ऐसा प्रमाण नहीं
मिल पाता कि कितने
नागरिक किसी विषय
के समर्थन या विरोध
में हैं । नागरिक-प्रामाणिक
नहीं होने से नागरिकों
और अफसरों में
इन प्रक्रियाओं
की विश्वसनीयता
नहीं होती | बिना
किसी ऐसे सार्वजानिक
प्रमाण के जो सभी
जांच सकें, अफसर
पर कोई दबाव नहीं
आता और अफसर आवश्यक
कार्य न करने के
लिए कोई बहाना
देकर आसानी से
फिसल सकता है |
pgportal.gov.in जैसी
सरकारी साईट में
नागरिक के वोटर
आई.डी. नंबर के साथ
शिकायत दर्शाने
का विकल्प भी नहीं
है, जिससे दूसरे
नागरिक ये पता
नहीं लगा सकते
कि शिकायत दर्ज
करने वाला व्यक्ति
असली हैं कि नकली
| फेसबुक, आदि सोशल
मीडिया पर आई.डी.,
लाइक और कमेन्ट
बिकते हैं और बिना
समपर्क साधन के
कोई ये नहीं पता
लगा सकता कि आई.डी.
असली है या नकली
| लेकिन टी.सी.पी.
में नागरिक की
राय पहचान पत्र
संख्या के साथ
मुख्यमंत्री या
प्रधानमंत्री
वेबसाईट पर आएगी
; कोई भी नागरिक
वोटर आई.डी. राय
वाले डाटा का सैम्पल
लेकर, वोटर कार्ड
नंबर से राय देने
वाले व्यक्तियों
का पता निकालकर
उनसे संपर्क करके
स्वयं पता लगा
सकता हैं कि डाटा
सही है कि नहीं
|
जिन
लोगों के पास इन्टरनेट
नहीं भी है, वे भी
इस प्रक्रिया का
उपयोग कर सकेंगे,
कलक्टर दफ्तर या
निश्चित सरकारी
दफ्तर जाकर और
अपनी अर्जी प्रधानमंत्री
वेबसाईट पर स्कैन
करवाकर | क्योंकि
इस प्रक्रिया में
कोई भी व्यक्ति
कभी भी अपनी राय
बदल सकता है, ये
प्रक्रिया पैसों,
गुंडों, मीडिया
द्वारा या अन्य
किसी भी प्रकार
से प्रभावित नहीं
कि जा सकेगी | प्रक्रिया
नागरिक-प्रामाणिक
होने से कोई भी
नागिक स्वयं जांच
सकता है कि सच क्या
है, क्या नहीं |
इस प्रस्तावित
प्रक्रिया के लागू
होने से प्रस्तावों
को आसानी से दबाया
नहीं जा सकता है
और दूसरे जनहित
के प्रक्रियाओं
की आने की सम्भावना
बढ़ जायेगी जिससे
गरीबी और शोषण-भ्रष्टाचार
को कुछ ही महीनों
में कम किया जा
सकता है | इसके बारे
में अधिक इस लिंक
में पढ़ सकते हैं
– smstoneta.com/prajaadhinbharat विशेषकर
चैप्टर 1, 5, 6, 21, 22, प्रश्नोत्तरी
| अकसर पूछे
जाने वाले प्रश्नों
के लिए कृपया ये
लिंक देखें – righttorecall.info/004.h.htm या हमसे
समपर्क करें
ये प्रक्रिया
वैकल्पिक है और
सुरक्षित है | आप
चाहें तो अपना
नाम गुप्त रखकर
किसी मित्र या
ईमानदार अफसर को
एफिडेविट अपने
नाम से दर्ज करने
के लिए कह सकते
हैं | क्योंकि पारदर्शी
शिकायत प्रणाली
(टी.सी.पी.) लागू होने
से कोई भी भ्रष्ट
पोलिस, जज और नेता
के विरुद्ध सबूत
की कॉपी जमा करवा
सकता है और उन सबूतों
को दबाना अधिक
कठिन हो जायेगा,
इसीलिए पोलिस,
जज और नेता गुंडों
की मदद करने से
डरेंगे | और इसीलिए,
गुंडा गुंडागर्दी
कम कर देगा |
पारदर्शी
शिकायत-प्रस्ताव
प्रणाली = प्रमाणिक
नागरिकों का मीडिया
= Citizen`s
Verifiable Transparent Complaint Procedure (TCP ; टी.सी.पी.)
का सारांश
¨
(1) जनता का
जांचा जा सकने
वाला मीडिया – कोई
भी नागरिक अपनी
बात को 20 रुपये
एफिडेविट पर रखकर,
प्रधानमंत्री
(या मुख्यमंत्री)
वेबसाईट पर अपने
वोटर आई.डी नंबर
के साथ, कलेक्टर
आदि निश्चित सरकारी
दफ्तर पर जाकर
पूरा स्कैन करवा
सकता है, ताकि बिना
लॉग-इन कोई भी इसे
देख सकता है |
¨
(2)
दर्ज एफिडेविट
पर नागरिक का वोटर
आई.डी. समर्थन / विरोध – (2.1) कोई भी मतदाता
धारा-1 द्वारा
दर्ज अर्जी या
एफिडेविट पर अपनी
हाँ / ना प्रधानमंत्री
(या मुख्यमंत्री)
वेबसाईट पर, अपने
वोटर आई.डी. नंबर
के साथ दर्ज करवा
सकता है पटवारी
आदि सरकारी दफ्तर
जाकर और 3 रुपया
शुल्क देकर (एस.एम.एस.
सिस्टम आने पर
शुल्क 5 पैसे)
¨
(2.2) सुरक्षा
धारा – (जिसके कारण
आम-नागरिक ये सुनिश्चित
कर सकते हैं कि
ये प्रक्रिया पैसों
से, गुंडों से या
मीडिया द्वारा
प्रभावित नहीं
की जा सकती) – नागरिक
किसी भी दिन अपनी
हाँ या न, बिना किसी
शुल्क के रद्द
कर सकता है
¨
(3) राय-संख्या
बाध्य नहीं – यह
हाँ या ना अधिकारी,
मंत्री, न्यायाधीश,
सांसद, विधायक,
आदि पर अनिवार्य
नहीं होगा | उनका
निर्णय अंतिम होगा
|
Ø
बस ये इतना
ही है । आसान शब्दों
में कहें तो 'यदि
कोई मतदाता अपना
कोई प्रस्ताव/सुझाव/शिकायत
आदि एफिडेविट अपने
मतदाता पहचान
पत्र संख्या के
साथ प्रधानमंत्री
या मुख्यमंत्री
वेबसाईट या अन्य
सरकार द्वारा निश्चित
वेबसाईट पर स्कैन
करके रखना
चाहता है, तो निश्चित
शुल्क लेकर उसे
ऐसा करने दिया
जाए'
कृपया
पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव
प्रणाली की पूरी
प्रक्रिया इस लिंक
पर पढ़ें - tinyurl.com/BrvpTcpDraft या
हमसे संपर्क करें
|
6. हम प्रस्तावित
राईट टू रिकॉल-विधायक
और राईट टू रिकॉल-मुख्यमंत्री
सरकारी आदेश लागू
करवाएंगे
राईट
टू रिकॉल प्रक्रिया
का मतलब उस क्षेत्र
के नागरिक उस पद
के अफसर को कभी
भी बदल सकते हैं
| इस प्रक्रिया
को नागरिक स्वयं
शुरू कर सकते हैं
| नौकरी जाने के
डर से 99% अफसर अपना
कार्य सुधार देते
हैं और जो अपना
कार्य नहीं सुधारते,
उन्हें अच्छे लोगों
से बदल दिया जाता
है | ध्यान दीजिए,
ये प्रक्रिया
अफसरों के व्यवहार
को सुधार देती
है | और अक्सर देखा
गया है कि जो लोग
अपना कार्य सुधार
देते हैं, जनता
उनको दुबारा भी
चुनती है ; इस प्रकार
ये प्रक्रिया स्थिरता
को भी बढ़ाती है
| अधिकतर इन प्रक्रियाओं
को लाने के लिए
कोई भी संशोधन
की आवश्यकता नहीं
है, केवल मुख्यमंत्री
/ प्रधानमंत्री
द्वारा सरकारी
आदेश की आवश्यकता
है
भारत
में भ्रष्टाचार
के विरुद्ध कुछ
कानूनों में से
एक कानून जिसका
प्रस्ताव रखा है
– राईट टू रिकाल-विधायक
का सारांश
1.जनता
का जांचा जा सकने
वाला मीडिया [जिला
कलेक्टर, मुख्यमंत्री
के लिए निर्देश] – कोई भी नागरिक
अपनी बात को मुख्यमंत्री
वेबसाईट पर अपने
वोटर आई.डी नंबर
के साथ, कलेक्टर
आदि अन्य मुख्यमंत्री
द्वारा बताये गए
दफ्तर पर जाकर
20 रुपये प्रति
पन्ना के एफिडेविट
देकर स्कैन करवा
सकता है, ताकि
बिना लॉग-इन कोई
भी इसे देख सकता
है |
स्पष्टीकरण
- इस प्रक्रिया
द्वारा नागरिक
अपने क्षेत्र के
अफसरों के कार्य
प्रमाण सहित दूसरे
नागरिकों को बता
सकते हैं ताकि
नागरिक प्रमाण
के आधार पर निर्णय
कर सकें कि कौन
अच्छा कार्य कर
रहे हैं और कौन
बुरा कार्य कर
रहे हैं |
2.विधायक
उम्मीदवार पद के
लिए पंजीकरण [जिला
कलेक्टर के लिए
निर्देश] 25 वर्ष
से अधिक भारत का
कोई भी नागरिक
जिला कलेक्टर को
एक विधायक के चुनाव
के बराबर भुगतान
करके खुद को विधायक
के लिए उम्मीदवार
के रूप में रजिस्टर
करवा कर अपना नाम
मुख्यमंत्री वेबसाईट
पर रखवा सकता है |
3.नागरिकों
द्वारा स्वीकृति
(मंजूरी) [तलाटी/पटवारी
या उसके क्लर्क
को निर्देश] (1.3.1) भारत
का कोई भी नागरिक
तलाटी (लेखपाल, पटवारी, ग्राम
अधिकारी) कार्यालय
में जाकर मात्र
5 रुपये शुल्क का भुगतान
करके, विधायक
पद के लिए अधिकतम
पांच व्यक्तियों
पर अनुमोदन या स्वीकृति दे
सकता है | तलाटी
उसे रसीद देगा
जिस पर उसका मतदाता-पहचान-संख्या,
अंगुली के छाप
और व्यक्तियों
के नाम जिसे उसने
मंजूरी (अनुमोदन)
दी है लिखी होगी | (सुरक्षित
मेसेज (एस.एम.एस.)
सिस्टम आने पर
शुल्क 1 रूपया
होगा) | वह पटवारी
मुख्यमंत्री के
वेबसाइट पर नागरिक
के मतदाता-पहचान-पत्र
संख्या सहित उसके
द्वारा चुने गए व्यक्तियों के
नाम डाल देगा |
(1.3.2) सुरक्षा
धारा (जिसके
कारण आम-नागरिक
ये सुनिश्चित कर
सकते हैं कि ये
प्रक्रिया पैसों
से, गुंडों
से या मीडिया द्वारा
प्रभावित नहीं
की जा सकती) नागरिक
किसी भी दिन बिना
किसी शुल्क, अपना
अनुमोदन रद्द कर
सकता है |
4.विधायक
उम्मीदवार नया
विधायक कब बन सकता
है [विधायक को निर्देश]
यदि किसी विधायक
क्षेत्र की मतदाता
संख्या 2 लाख से
कम है और किसी भी
उम्मीदवार को वर्तमान विधायक से कुल मतदाता संख्या
के 10% अधिक अनुमोदन
हो या उस क्षेत्र
के सभी मतदाताओं
के 50% मतदाताओं
का समर्थन है, तो
मौजूदा विधायक
7 दिनों
में इस्तीफा दे सकता है और सबसे अधिक
समर्थन पाने वाले
उम्मीदवार का
बढ़ावा कर सकता
है (या उसे ऐसा करने की जरूरत
नहीं है) | यदि
विधायक क्षेत्र
की मतदाता संख्या
2 लाख से अधिक
है और किसी
विधायक उम्मीदवार
के मौजूदा विधायक
से कम से कम (कुल
मतदाता संख्या
की) 5% अधिक स्वीकृति
हैं, तो वर्तमान
विधायक इस्तीफा
दे सकता है |
5.पुराने
विधायक पर अविश्वास
प्रस्ताव और नए
विधायक का चुनाव [विधानसभा
अध्यक्ष, दूसरे
विधायकों को निर्देश]
यदि 1.4
धारा के अनुसार
स्तिथि है और वर्तमान
विधायक 7 दिनों
में इस्तीफा नहीं
देता है, तो
विधानसभा अध्यक्ष
प्रस्ताव बुला
सकता है विधानसभा
में, उस विधायक
को निकालने के
लिए या ऐसा करना
उसके लिए नहीं
जरूरी है | विधानसभा
अध्यक्ष का फैसला
अंतिम होगा | दूसरे
विधायक, उस
विधायक को निकालने
के लिए प्रस्ताव
स्वीकृत कर सकते
हैं या उन्हें
ऐसा करने के लिए
कोई जरूरत
नहीं है |
[चुनाव आयोग को
निर्देश] यदि विधायक
इस्तीफा दे देता
है या निकाला जाता
है, चुनाव आयोग
नियम अनुसार नए
चुनाव करवा सकती
है | अगले चुनावों
में, निकाला
गया विधायक चुनाव
लड़ सकता है |
पूरा
ड्राफ्ट tinyurl.com/BrvpRtrMLA पर
देखें या हमसे
संपर्क करें
निकम्मे
सरकारी नौकरों
को अच्छे लोगों
से बदलने के अलावा,
ये प्रक्रियाएँ
आम-नागरिकों द्वारा
किसी ईमानदार सरकारी
नौकर को पद पर बनाये
रखने के लिए भी
प्रयोग किये जा
सकते हैं यदि नागरिकों
को लगता है कि वो
किसी अफसर द्वारा
गलत तरीके से निकाला
गया था |
इसी तरह, दूसरे
राष्ट्रीय/राज्य
स्तर पद जैसे प्रधान-मंत्री,
मुख्यमंत्री,
मंत्री, पार्षद, महापौर,
सरपंच आदि पर राईट
टू रिकॉल / राईट
टू रिप्लेस की
प्रक्रिया-ड्राफ्ट
की रूप-रेखा होगी
| केवल `विधायक`
शब्द को प्रधानमंत्री,
मुख्यमंत्री
आदि से बदल दें
| अलग-अलग प्रक्रियाओं
के लिए सीमा रेखा
क्या हो प्रस्तावित
पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव
प्रणाली के उपयोग
से, क्षेत्र
के बहुमत मतदाताओं
के सहमति द्वारा
निर्णय लिया जायेगा
| (प्रक्रिया ड्राफ्ट
देखें – tinyurl.com/BrvpTcpDraft)
जिन जनसेवक
पदों पर करोड़ों
आम-नागरिक अपनी
स्वीकृति (मंजूरी)
देंगे जैसे प्रधानमन्त्री,
मुख्यमंत्री, आदि., किसी
उम्मीदवार के पास
वर्तमान जनसेवक
से कम से कम 2% ज्यादा स्वीकृति
हों (सारे मतदाताओं
के), तो वो नया
जनसेवक बन सकता
है | यदि जनसेवक
पद के आधीन 10-20 लाख मतदाता हों
जैसे विधायक, सांसद,
आदि तो उम्मीदवार
को नया जनसेवक
बनने के लिए वर्तमान
जनसेवक से कम से
कम 5% अधिक मतदाता
स्वीकृति की आवश्यकता
होगी (सारे मतदाताओं
के) | यदि
जनसेवक पद के आधीन
10 लाख या कम मतदाता
हों (सारे मतदाताओं
के) जैसे पार्षद,
सरपंच आदि, तो उम्मीदवार
को नया जनसेवक
बनने के लिए वर्तमान
जनसेवक से कम से
कम 10 % अधिक मतदाता
स्वीकृति की आवश्यकता
होगी | राईट टू रिकॉल-मुख्यमंत्री
ड्राफ्ट - tinyurl.com/BrvpRtrCM
कुछ पक्षपात-विरोधी
राईट टू रिकॉल
प्रक्रियाओं की
विशेष धाराएं
राष्ट्रीय/राज्य
स्तर के पदों के
सरकारी अफसर, जो
चुने नहीं जाते,
उन अफसरों को आम-नागरिकों
द्वारा बदले जाने
वाली प्रक्रियाओं
के धाराओं में
ये सुरक्षा धाराएं
जोड़नी हैं, ताकि जातिवाद
या कोई और पक्षपात ना हो –
6. राज्य के
सारे नागरिक-मतदाताओं
के 51% से अधिक अनुमोदन/स्वीकृति
को पाने के बाद, मुख्यमंत्री
ये कानून को किसी
जिले के
लिए 4 साल
के लिए रोक कर सकता है और अपने
पसंद के अफसर को
रख सकता है |
7. पूरे भारत
के सारे नागरिक-मतदाताओं
के 51% से अधिक
अनुमोदन हों तो, प्रधानमंत्री
इस क़ानून को किसी
राज्य में 4 साल तक रोक लगा
सकता है और उस राज्य के सारे जिलों
में अपनी पसंद
के अफसर रख सकता
है |
7. न्यायपूर्वक
और शीग्र फैसले
आने के लिए और कोर्ट
का सिस्टम सुधरने
के लिए जूरी सिस्टम
जूरी
सिस्टम में जज
के बदले 15 से 1500 नागरिक, जिन्हें
जूरी सदस्य कहा
जाता है, वे फैसले
करते हैं | ये 15 से 1500 नागरिक
लाखों की मतदाता
सूची में से लॉटरी
से मतलब क्रम-रहित
तरीके से चुने
जाते हैं और हर
मामले में नए जूरी
सदस्य फैसला करते
हैं | जूरी सिस्टम
में जज सिस्टम
की तुलना में, सेटिंग
करना बहुत कठिन
होता है, इसीलिए
कोर्ट मामलों का
फैसला जूरी सिस्टम
में जल्दी और न्यायपूर्वक
आता है | जूरी सिस्टम
में फैसले कुछ
हफ्तों में आते
हैं – सालों साल
नहीं लगते |
जज सिस्टम
की तुलना में जूरी
सिस्टम में सेटिंग
क्यूँ कठिन है,
उसका उदाहरण - मान
लीजिए, एक पेशेवर
अपराधी और उसकी
गैंग पर साल में
100 कोर्ट के मामले
दर्ज होते हैं
| अब ये 100 मामले
5-6 जज के पास जायेंगे
जिन्हें सभी लोग
जानते हैं | अपराधी
या उसका आदमी जज
के रिश्तेदार वकील
के पास जा सकता
है और सलाह लेने
के बहाने चेक द्वारा
जज के लिए रिश्वत
दे सकता है | बदले
में जज, मामले को
लटका देते हैं
और अपराधी को गवाह
खरीदने/तोड़ने के
लिए समय मिल जाता
है | जज सिस्टम में
यदि जज पैसे ले
लेता है और अपराधी
के पक्ष में निर्णय
नहीं करता, तो उस जज को आगे
रिश्वत नहीं मिलेगी
| यदि जज अपराधी
का काम कर देता
है लेकिन अपराधी
उसको पैसे नहीं
देता, तो जज
अपने सभी मित्र
जजों को बोल देगा
कि इस अपराधी का
कोई काम नहीं करना
क्योंकि ये काम
करने के बाद भी
पैसे नहीं देता
| इस प्रकार,
जज सिस्टम में
अपराधी और जज की
सेटिंग आसानी से
हो जाती है
अब यदि
जूरी सिस्टम लागू
है जज सिस्टम के
बदले, तो 5-6 जज के
बदले 1500 व्यक्ति
उन 100 कोर्ट मामलों
का फैसला करेंगे
| ये जूरी सदस्य
कम से कम 10 सालों
तक दोहराए नहीं
जाते | जूरी मंडल
सुबह 10 बजे से
शाम 5 बजे तक
एक ही मामले को
सुनता है | अपराधी
को अंतिम क्षण
तक ये नहीं मालूम
होगा कि कौनसे
लोग निर्णय करने
के लिए चुने जायेंगे
| किसी तरह उसे पता
भी चल जाये, तो जूरी सदस्य और
अपराधी के बीच
में सेटिंग करना
बहुत कठिन है |
आरोपी
तथा उन 15 या अधिक
जूरी सदस्यों को
ये निश्चित करना
कठिन होगा कि उन्हें
फैसले के पहले
रिश्वत का लेन-देन
करना चाहिए या
बाद में | यदि
आरोपी ये कहता
है कि वो रिहाई
के बाद रिश्वत
देगा, तो जूरी-सदस्य
उस आरोपी के ऊपर
विश्वास नहीं कर
पायेंगे और यदि
जूरी सदस्य ये
कहता है कि रिश्वत
पहले और रिहाई
बाद में तो वह आरोपी
जूरी सदस्यों के
ऊपर विश्वास नहीं
कर सकेगा | इसलिए,
जूरी सिस्टम
में मामला लटकाया
नहीं जाता और फैसला
जल्दी ही, कुछ
ही हफ़्तों में
आ जाता है | अधिक
जानकारी के लिए
लिंक – smstoneta.com/prajaadhinbharat/chapter-21/
| प्रश्नोत्तरी
– righttorecall.info/004.h.htm या हमसे संपर्क
करें |
प्रस्तावित
निचली अदालतों
में जूरी सिस्टम
प्रक्रिया का सारांश (प्रधानमंत्री
अध्यादेश द्वारा)
1. जनता
का जांचा जा सकने
वाला मीडिया [जिला कलेक्टर,
प्रधानमंत्री
के लिए निर्देश]
– कोई भी नागरिक
अपनी बात को प्रधानमंत्री
वेबसाईट पर अपने
वोटर आई.डी नंबर
के साथ, कलेक्टर
आदि अन्य प्रधानमंत्री
द्वारा बताये गए
दफ्तर पर जाकर
20 रुपये प्रति
पन्ना के एफिडेविट
देकर स्कैन करवा
सकता है, ताकि बिना
लॉग-इन कोई भी इसे
देख सकता है | स्पष्टीकरण-
इस प्रक्रिया द्वारा
नागरिक दूसरे नागरिकों
को सबूत आदि अपनी
बात दिखा सकते
हैं ताकि भ्रष्ट
अफसर सबूत आदि
दबा नहीं सकें
|
2. नागरिकों
द्वारा बदले जा
सकने वाला जूरी
प्रशासक [मुख्यमंत्री
के लिए निर्देश]
– मुख्यमंत्री
हर जिले में एक
जूरी प्रशासक नियुक्त
करेंगे । ये नागरिकों
द्वारा किसी भी
दिन बदले जा सकेंगे
| नौकरी जाने के
डर के कारण, 99% अधिकारी अपना
व्यवहार सुधार
देंगे और अपना
कार्य सही से करें
और जो सही से से
नहीं करेंगे उनको
अच्छे लोगों से
बदल दिया जायेगा
|
3. महाजूरी
मंडल और जूरी का
गठन [जूरी
प्रशासक, महाजूरी
मंडल के लिए निर्देश]
– सभी हत्या, बलात्कार,
भ्रष्टाचार, गो-हत्या, मिलावट के मामलों
और विवाह झगडों
में जूरी प्रशासक
क्रम-रहित तरीके
से महाजूरी मंडल
के लिए 30 सदस्य
चुनेगा जिनमें
हर तीस दिन बाद
10 सदस्य नए सदस्यों
से बदले जायेंगे
| महाजूरी मंडल
प्रथम दृष्टया
सबूत के अनुसार
निर्णय करेंगे
कि जूरी द्वारा
सुनवाई होनी चाहिए
कि नहीं | जूरी प्रशासक
हर मामले के लिए
क्रम-रहित तरीके
से मामले के अनुसार
15 से 1500 सदस्य
चुनेगा |
4. जूरी
सदस्यों द्वारा
सुनवाई और फैसला [कोर्ट मुकदमा
अध्यक्ष के लिए
निर्देश] सुनवाई
11 बजे सुबह से
लेकर 5 बजे शाम
तक चलेगी । हर पक्ष
बारी-बारी अपना
पक्ष रखेगा | मुकदमा
कम से कम 2 दिनों
तक चलेगा ; सुनवाई
कब समाप्त होगी
जूरी सदस्य बहुमत
अनुसार निर्णय
करेंगे | सुनवाई
के बाद जूरी कम
से कम दो घंटे विचार
करेगी | हर जूरी
सदस्य दण्ड की
वह मात्रा बताएगा
जो वह उपयुक्त
समझता है । और यह
कानूनी दंड सीमा
से अधिक नहीं होनी
चाहिए । मुकदमा
अध्यक्ष दण्ड
की मात्राओं को
बढ़ते क्रम में
सजाएगा और जो सजा/अर्थदंड
कम से कम 2/3 बहुमत
जूरी सदस्यों द्वारा
बताई गयी दंड से
अधिक नहीं हो, घोषित होगी
उदहारण
- यदि 15
सदस्य जूरी की
बढ़ते क्रम में
दंड मात्राएं
400, 400, 400, 500, 500, 600, 700, 800, 1000, 1000, 1200, 1200, 1400, 1500,
1500 रुपये हैं तो
500 रुपये दंड
की मात्रा घोषित
होगी क्योंकि ये
2/3 जूरी सदस्यों
द्वारा दिए गए
दंड से अधिक नहीं
है |
पूरे
ड्राफ्ट के लिए
कृपया ये लिंक
देखें - tinyurl.com/BrvpRtrJury या हमसे
संपर्क करें |
8. नागरिकों
और सेना के लिए
खनिज रोयल्टी
(आमदनी) (एम आर
सी एम) द्वारा कुछ ही
महीनों में गरीबी
कम करना
नागरिकों
और सेना के लिए
खनिज आमदनी (एम.आर.सी.एम)
का ड्राफ्ट एक
ऐसी प्रशासनिक
प्रक्रिया बताता
है जो एक राष्ट्रीय
स्तर का अफसर (जो नागरिकों
द्वारा बदला जा
सकेगा) को अधिकार
देगा कि वो पब्लिक
जमीनों के किराये
और खदानों की आमदनी
को सीधे नागरिकों
के बैंक खाते में
जमा करवा सकता
है | ये कानून
नागरिकों को देश
के प्राकृतिक संसाधनों
पर उनके वास्तविक
अधिकार और विरासत
के हिस्से का पैसा
देगा | ये कानून
लागू होने पर कुछ
ही महीनों में
गरीबी दूर होगी
और सेना शक्तिशाली
होगी और हर व्यक्ति
को सामाजिक सुरक्षा
देगा |
ये
पैसा कितना होगा
? ये इसपर निर्भर
करता है कि उस समय
जमीन का किराया
कितना होगा और
उस समय खनिज रोयल्टी
(आमदनी) कितनी होगी
– अंदाज से ये राशि
प्रति व्यक्ति
प्रति महीना 200 रुपये से 800 रुपये तक हो सकती
है |
अथर्वेद
कहता है : अहम रस्थ्रिम
वसुनम संगामी अर्थात
मैं राष्ट्र सभी
प्राकृतक संसाधनों
का मालिक हूँ | अमेरिका
के दूसरे राष्ट्रपति,
थॉमस जैफरसन ने
कहा था -
“ये एक विवादस्पद
प्रश्न है कि क्या
किसी भी प्रकार
की संपत्ति की
उत्पत्ति सिर्फ
प्रकृति से हुई
हैं... इसे उन लोगों
ने माना है जिन्होंने
इस विषय को गंभीरता
से लिया है कि एक
एकड़ भूमि में अलग
संपत्ति पर भी
एक व्यक्ति विशेष
का प्राकृतिक अधिकार
नहीं है | एक सर्वव्यापी
कानून के अनुसार,
दरअसल, कोई भी चल
या अचल (संपत्ति)
सभी जन का सामान
रूप से उस पर मालिकाना
हक है | जिसका इस
संपत्ति पर अभी
कब्जा है, अभी के
लिए वो संपत्ति
उसकी है, लेकिन
जब वो ये कब्जा
छोड़ देता है, तो
उसकी मालिकाना
हक समाप्त हो जाता
है...” 1813 में थॉमस
जैफरसन इसॉक मैकफरसन
को कहते हुए |
अधिक
जानकारी के लिए,
कृपया देखें – अध्याय 5, smstoneta.com/prajaadhinbharat
आरक्षण
का उद्देश्य समाज
के उन वर्गों को
ऊपर उठाना है जो
सदियों से दबाए
गए हैं और आज भी
दबाए जा रहें हैं | क्योंकि
अगर यहाँ व्यक्ति
के किसी विशेष
जाति या परिवार
में जन्म होने
के कारण, संपर्क
(संचार) के माध्यमों
में, शिक्षा, नौकरियों
और अन्य अवसरों
में बहुत ज्यादा
असमानता होगी,
तब पूरा समाज भुगतेगा
और वहाँ योग्यता
नहीं होगी |
हालाँकि,
आरक्षण का प्रावधान
संविधान में सिर्फ
एक सीमित समय के
लिए ही रखा गया
था और हर 10 साल या
उसके बाद आरक्षण
पर फिर से विचार
किया जाना था | इसका
मतलब है कि जनसेवकों
का काम था कि वे
ऐसी नीतियाँ बनाएँ
जिससे आरक्षण की
जरुरत कम या समाप्त
हो जायेगी लेकिन
अब तक ऐसी कोई नीति
नहीं बनायी गयीं |
एक अन्य
सच्चाई ये भी है
कि 10% से भी कम विद्यार्थी
जनसँख्या 12वीं
कक्षा भी पास नहीं
हैं | तो आरक्षण
का लाभ जरूरतमंदों
तक नहीं पहुँचता,
ये सिर्फ आरक्षित
जातियों के क्रीमी
लेयर (उन जाति-समाज
के उच्च वर्ग) तक
पहुंचा है |
इसका
समाधान क्या है
?
आरक्षण
घटाने का पहला
कदम : आरक्षण की
जरुरत घटाना - गरीबी
कम करने के लिए,
शिक्षा सुधार के
लिए और शीघ्र और
न्याय संगत मुकदमों
के लिए उचित राजपत्र
अधिसूचना छपवाकर
प्रस्तावित
“नागरिक और सेना
के लिए खनिज आमदनी”
कानून ड्राफ्ट
से गरीबी कम होगी
(जानकारी के लिए
smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 5 देखें) | और
शिक्षा में प्रस्तावित
बदलाव जैसे कि
राईट टू रिकॉल-जिला
शिक्षा अधिकारी
आदि, शिक्षा में
दलितों और ऊंची
जातियों के बीच
का अंतर और भी घटा
देगा (जानकारी
के लिए smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय
30 देखें) | और मंदिरों
और धार्मिक संस्थानों
के लिए प्रस्तावित
कानून दलितों के
साथ हो रहे भेदभाव
को भी घटा देगा (देखें tinyurl.com/HinduSashakt) | आगे
ये प्रस्तावित
किया गया है कि
सभी प्रकार के
इंटर-व्यू (साक्षात्कार)
पुलिस, सरकारी
बैंको, भारतीय
रिजर्व बैंक, भारतीय
स्टेट बैंक, न्यायपालिका,
सरकारी वकील और
अन्य सेवाओं के
शुरुवाती भर्ती
के स्तर से समाप्त
किया जायेगा और
ये भी नौकरी में
दलितों के साथ
हो रहे भेदभाव
को घटा देगा | ये
और भ्रष्टाचार
को कम करने के सभी
राजपत्र सूचनाएं
समाज में गुणवत्ता
बढ़ाएंगे |
आरक्षण
घटाने का दूसरा
कदम: “भत्ता (अलग
से मिलने वाला
धन) बनाम आरक्षण”
की प्रणाली
हम एक
प्रशासनिक प्रणाली
का समर्थन करते
हैं जिसे आर्थिक-विकल्प
(आर्थिक-चुनाव
या पैसों का भुगतान)
भी कहते हैं गरीब
अनुसूचित दलित,
अनुसूचित आदिवासी
और अन्य पिछड़ा
वर्ग के समर्थन
(हां) द्वारा आरक्षण
कम करना |
1. किसी
उपजाति का कोई
भी सदस्य जो अनुसूचित
जाति, अनुसूचित
जनजाति अथवा अन्य
पिछड़े वर्ग का
हो, वह तहसीलदार
के कार्यालय जाकर
अपना सत्यापन
(जांच) करवाकर आर्थिक-विकल्प
के लिए आवेदन कर
सकता है । इस आर्थिक-विकल्प
में निम्नलिखित
बातें (तथ्य) हैं
-
·
उस व्यक्ति
का अनुसूचित जाति, अनुसूचित
जनजाति और अन्य
पिछड़े वर्ग का
दर्जा बना रहेगा
·
उसे समायोजित
मुद्रास्फीति
(महंगाई दर के
अनुसार एडजस्ट
किया गया) (इनफ्लेशन
एडजस्टेड) अनुसार
1200 रूपए हर साल
मिलेगा जब तक कि
वह अपने आर्थिक-विकल्प
के चयन को रद्द
नहीं कर देता
·
जब तक उसे
पैसे का भुगतान
होता रहेगा, तब
तक वह आरक्षण कोटे
में आवेदन नहीं
कर सकता
·
जिस दिन से
वह अपने आर्थिक-विकल्प
को रद्द कर देगा,
उस दिन से वह आरक्षण
के लाभ के लिए योग्य
माना जाएगा
·
जिन्होंने
आर्थिक-विकल्प
लिया है, उनकी
संख्या के आधार
पर आरक्षित पदों
की संख्या में
कमी की जाएगी
·
इसके लिए पैसा
सभी जमीनों पर
टैक्स (कर) की वसूली
से आएगा कहीं और
से नहीं ।
2. उदाहरण – मान लीजिए कि
भारत की आबादी
100 करोड़ है जिसमें
से 14 प्रतिशत अर्थात
14 करोड़ लोग अनुसूचित
जाति के हैं । इसलिए
यदि किसी कॉलेज
में 1000 सीटें हैं
तो उनमें से 140 सीटें
आरक्षित रहेंगी
। अब मान लीजिए, इन
14 करोड़ लोगों में
से लगभग 6 करोड़
लोग आर्थिक-विकल्प
का रास्ता अपनाते
हैं तो उनमें से
प्रत्येक को हर
महीने 100 रूपए मिलेगा
और अनुसूचित जाति
के लिए आरक्षण
6 प्रतिशत कम हो
जाएगा अर्थात यह
8 प्रतिशत रह
जाएगा ।
अधिकतर
गरीब दलितों को
आरक्षण का लाभ
नहीं मिल पाता
और जैसे जैसे दलितों
में संपन्न और
धनिक संख्या में
बढ़ते जा रहें हैं,
गरीब दलितों के
लिए अवसर और कम
हो गये हैं | आर्थिक-विकल्प
एक ऐसा सिस्टम
बनाता है जिसके
द्वारा गरीब दलित
भी आरक्षण का लाभ
उठा सकते हैं | इनमें
से अधिकांश आर्थिक-विकल्प
को चुनेंगे (जो
कि आरक्षण में
दिए जाने वाले
सामाजिक विकल्प
से विपरित है) | इससे
आरक्षण घटेगा |
आरक्षण
घटाने का तीसरा
कदम: पहले अपना-कोटा
एक व्यक्ति
को सीट पहले उसके
अपने कोटा में
और फिर सामान्य
कोटा में ही मिलेगी;
तो अगर वह सामान्य
मेरिट सूची में
भी है, तब भी उसे
सामान्य मेरिट
सूची में सीट नहीं
मिलेगी लेकिन अपनी
मेरिट सूचि में
सीट मिलेगी | तो
मान लो किसी जगह
100 सीटें हैं जिसमें
14 सीटें अनुसूचित
जाती के लिए आरक्षित
हैं | अब सोचिये
1000 छात्र एक परीक्षा
के लिए आवेदन करतें
हैं जिसमें से
100 अनुसूचित
जाती से हैं | अब
शीर्ष 100 में 3 अनुसूचित
जाती के हैं | तब
इन
3 अनुसूचित जाती
को सीट अनुसूचित
जाती के कोटा में
मिलेगी और अनुसूचित
जाती की अलग मेरिट
सूचि में उनकी
सीटें 11 होगी |
तो आर्थिक
विकल्प के द्वारा,
आरक्षण कोटा 50% से
घटकर शायद 10% या और
भी कम हो सकता है | अब
बहुत से अनुसूचित
जाति, अनुसूचित
जनजाति और अन्य
पिछड़ा वर्ग के
लोग किसी भी तरह
से मेरिट सूचि
में आ जाते हैं
और तब प्रभाविक
आरक्षण और भी कम,
शायद 5% हो जायेगा |
चौथा
बदलाव : अधिक पिछड़े
को ऊँची प्राथमिकता
देना
ऐसे
समुदाय जिनका प्रशासन
में कम प्रतिनिधित्व
(भागेदारी) है
उन्हें ज्यादा
सीटें मिलेंगी
जब तक उनका प्रतिनिधित्व
सामान स्तर पर
नहीं आ जाता | इसके
लिए हमें एक पूर्ण
जाति जनगणना की
आवश्यकता है | एक
बार पूर्ण जाति
जनगणना हो जाती
है, हर एक उपजाति
का देश के प्रशासन
में प्रतिशत प्रतिनिधित्व
निकाला जायेगा
और सबसे कम प्रतिनिधित्व
करने वाली उपजाति
को ऊँची प्राथमिकता
मिलेगी (पहला अवसर)
जब तक उस उपजाति
का प्रतिनिधित्व
पर्याप्त नहीं
हो जाता |
अधिक
जानकारी के लिए,
कृपया smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय
36 देखें या हमसे
संपर्क करें
क्या
हमें सभी बहुराष्ट्रीय
कंपनियों का विरोध
करना चाहिए? नहीं
| तो हमें
कौन सी बहुराष्ट्रीय
कंपनियों का विरोध
कहाँ करना चाहिए
और क्यों?
बहुत
सी विदेशी कंपनियां
जैसे माइक्रोसॉफ्ट,
ओरेकल, इंटेल, मोटोरोला
और हजारों ऐसी
कंपनियां सही तरीके
से सम्पतियों की
रचना करती हैं,
लेकिन कई भ्रष्ट
बहुराष्ट्रीय
कंपनियां जिनमें कुछ
भारतीय शीर्ष कंपनियां
भी शामिल हैं, बैंक,
खनिज, प्रिंट मीडिया,
टीवी चैनलों आदि
को कब्जे में लेने
के एजेंडे पर कार्य
करती हैं और व्यापार
और समाज में अपना
एकाधिकार जमाती
हैं | ऐसी कम्पनियां
देश में सम्पत्तियो
की रचना नहीं बल्कि
उनका हरण करती
हैं |
यहाँ
तक कि अच्छी बहुराष्ट्रीय
कंपनियां अपने
एकाधिकार से रक्षा
क्षेत्र में भी,
गहरे संकट में
डाल सकती हैं | उदाहरण
के लिए, मान लीजिए
कि हम एक अमेरिकी
कंपनी जैसे नोर्टेल
से संचार के उपकरण
आयत करते हैं (विदेश से मंगवाते
हैं) | इन उपकरणों
में ये कंपनियां
जिन रेडियो-रिसीवर
का प्रयोग करती
हैं उन्हें सिग्नल
भेजकर निष्क्रिय
किया जा सकता है | अगर
इन उपकरणों का
उपयोग भारत में
होता है तब अमेरिका-भारत
युद्ध के दौरान
अमेरिका, भारत
के पूरे दूरसंचार
नेटवर्क को मात्र
एक बटन दबाकर बंद
कर सकता है और पूरी
भारतीय सेना अंधी
और बहरी हो जायेगी
यानी सेना में
अंदर संपर्क साधन
बंद हो जायेगा
और हम युद्ध हार
जायेंगे | इसलिए
उच्च तकनीक से
सम्बंधित ऐसे उपकरण
जिससे हमारी सुरक्षा
प्रभावित हो, हमें
अच्छी बहुराष्ट्रीय
कंपनियों से भी
आयत नहीं करने
चाहिए |
भ्रष्ट
लॉबियों (कंपनियों
का समूह) द्वारा
प्रायोजित और बिकाऊ
मीडिया द्वारा
प्रचारित “मेक
इन इंडिया” या तथाकथित
(कहे जाने वाला)
“पूर्ण स्वदेशी”
उत्पादन वास्तव
में केवल पुर्जो
को विदेश से आयात
करके उन्हें भारत
में जोड़ना है और
अधिकतर असेम्ब्ली
लाइन और उनके कल
पुर्जे विदेशों
से मंगाए जाते
है | मतलब, हम अपनी
मूलभूत जरूरतों
के लिए भ्रष्ट
लॉबियों पर निर्भर
हैं | इस निर्भरता
का लाभ उठाकर ये
भ्रष्ट लॉबियाँ
उद्योगपतियों,
नेताओं, मंत्रियों
आदि को ब्लैकमेल
करके अपने लिए
लाभदायक कानून
आदि अपना काम “लड्डू
या डंडा” तरीके
से करवाती हैं
(मतलब यदि उद्योगपति,
नेता, मंत्री आदि
इन लॉबियाँ के
अनुसार कानून बनाते
है तो इन्हें इनाम
दिया जायेगा और
अगर नहीं करते
है तो इन्हें कष्ट
झेलने होंगे) |
अत: हमें
ऐसे सरकारी आदेश
(राजपत्र अधिसूचना)
की जरुरत है जो
कि संपत्ति तथा
समृद्धि की संरचना
करने वाली कंपनियों
को व्यापार की
अनुमति दे और भ्रष्ट
बहुराष्ट्रीय
कंपनियों के मालिक
जो सिर्फ एकाधिकार
जमाते हैं उन्हें
रोकें और साथ में
हमें ऐसी राजपत्र
अधिसूचना भी चाहिए
जो अच्छी कंपनियों
से सुरक्षा में
होने वाले नुक्सान
को भी कम कर सके |
हमें
भ्रष्ट बहुराष्ट्रीय
कंपनियों के नियंत्रण
को कम करने के लिए
क्या उपाय करने
चाहिए ?
इसके
लिए जरुरी है कि
हम अपनी उत्पादकता
और तकनिकी कुशलता
को बढ़ाएँ तथा
यह भी सुनिश्चित
करें कि बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों के देश
में बढ़ते प्रभाव
को कम किया जा सके
|
अपनी
ताकत और उत्पादकता
बढ़ाने के लिए हमें
राईट टू रिकॉल
प्रक्रियाँ, जूरी
सिस्टम, वेल्थ
टकस (संपत्ति-कर)
द्वारा टैक्स संग्रह
प्रभावशाली बनाना
आदि कानूनों को
राजपत्र में छपवाने
की जरुरत है, जिससे
हम अदालतों में,
पुलिस में और राजनीती
में अन्याय को
कम कर सकें और उनकी
कार्यकुशलता में
वृद्धि हो | साथ
में हमें ऐसी राजपत्र
अधिसूचना भी चाहिए
जो भारत में भ्रष्ट
बहुराष्ट्रीय
कंपनियों के भारत
में बढ़ते प्रभाव
पर लगाम लगा सकें |
ध्यान
देने योग्य बात
ये है कि सिर्फ
ऐसे तरीके जिनका
लक्ष्य भ्रष्ट
बहुराष्ट्रीय
कंपनियों को भारत
से निकालना है
और भारत की कमजोरियों
को सुधारना नहीं
है फेल हो जायेंगे
जब बहुराष्ट्रीय
कंपनियों के मालिक
अमेरिकी सेना भेजेंगे |
उदहारण
के लिए, मान लीजिए
कि हम कानून बनाकर
सभी बहुराष्ट्रीय
कंपनियों जैसे
कोको-कोला या मेकडॉनाल्ड
आदि को भगा देते
हैं और कानून बनाकर
हम सभी मिशनरीज़
पर भी प्रतिबन्ध
(बैन) लगा देते हैं
लेकिन जब बहुराष्ट्रीय
कंपनियों के मालिक
अपनी कंपनियों
के व्यापार हितों
के लिए अमेरिकी
सेना भेजेंगे,
तब कोई कानूनी
ड्राफ्ट मदद नहीं
करेगा | ऐसी
परिस्थिति में
सिर्फ हथियार ही
हमारी मदद करेंगे
और हम तब तक हथियारों
का निर्माण नहीं
कर सकते हैं जब
तक हमारी न्याय
व्यवस्था, पुलिस
और प्रशासन में
भ्रष्टाचार और
अन्याय कम नहीं
होता | तो केवल
वे ही कानून लाना
जिनसे भ्रष्ट बहुराष्ट्रीय
कंपनियों को भारत
से बहार निकाला
जा सके हमारी सुरक्षा
और स्वदेशी को
बढ़ावा करने के
लिए अपर्याप्त
हैं |
पूरी
जानकारी के लिए
tinyurl.com/SwadeshiBadhao और
fb.com/notes/674053689310742 देखें
या हमसे संपर्क
करें |
क्यों
सभी चुनाव सुधार
बेकार हैं राईट
टू रिकॉल सांसद,
राईट टू रिकॉल
विधायक के बिना
?
हम अक्सर
चुनाव सुधार के
बारे में बात करते
हैं जिससे कि बुरे
व्यक्ति के चुन
कर आने की सम्भावना
घटे और अच्छे व्यक्ति
के चुन कर आने की
संभावना बढ़े | लेकिन
जब तक हमारे पास
राईट टू रिकॉल
नहीं है, इसकी संभावना
ज्यादा बनी रहती
है कि अगला चुनकर
आने वाला व्यक्ति
भ्रष्ट हो जायेगा | तो
सबसे जरुरी और
महत्वपूर्ण कार्य
है राईट टू रिकॉल-सांसद,
राईट टू रिकॉल-विधायक आदि | लेकिन
तब एक सवाल आता
है : वर्तमान सांसद
कभी भी राईट टू
रिकॉल के कानून
नहीं बनायेगे क्योंकि
ये उनके आर्थिक
हितों के विरुद्ध
जाता है, तब क्या
हम अगले चुनाव
आने तक इन्तेज़ार
करेंगे और सांसदों
को बदलेंगे?
देखिये,
इसमें हमें अगले
5 साल तक नुक्सान
होता रहेगा और
इससे केवल वर्तमान
सांसदों को फायदा
होगा -क्योंकि
वह अगले 5 साल तक
बिना किसी चिंता
के रिश्वत लेते
रहेंगे और आगे
चुनकर आने वाले
सांसदों के बिक
जाने की संभावना
भी ज्यादा रहेगी | इसलिए
इसका समाधान है
कि एक व्यापक जन
आंदोलन खड़ा किया
जाए जिसमें नागरिकों
से कहा जाए कि वे
वर्तमान प्रधानमंत्री,
मुख्मंत्रियों
को टी.सी.पी., जो
कि एक नागरिकों
का प्रामाणिक,
जांचा जा सकने
मीडिया सिस्टम
है, उसको राजपत्र
में छापने के लिए
मजबूर करें | एक
बार प्रधानमंत्री,
मुख्यमंत्री टी.सी.पी.,
राजपत्र में छापने
के लिए मजबूर हो
गये, नागरिक प्रधानमंत्री,
सभी मुख्यमंत्रियों,
सुप्रीम कोर्ट
के जजों आदि पर
राईट टू रिकॉल
कानून सिर्फ कुछ
महीनों में ला
सकते हैं और निम्नलिखित
प्रस्तावों को
भी लागू कर सकते
हैं -
1. प्रधानमंत्री,
मुख्यमंत्री, महापौर,
सरपंच का सीधा
चुनाव करवाना
2. इलेक्ट्रोनिक
वोटिंग मशीन (मतदान
यन्त्र) को प्रतिबंधित
करना और कागजी
मतदान पत्रों का
प्रयोग फिर से
शुरू करना
3. एक ही
दिन चुनाव आयोजित
करना
4. चुनाव
फॉर्म भरने की
प्रक्रिया को आसान
करना
5. संपन्न
उम्मीदवारों के
लिए चुनावी जमानत
राशि बढ़ाना
6. उन नागरिक
मतदाताओं की संख्या
बढ़ाना जो किसी
उमीदवार को स्वीकृति
देने के लिए जरुरी
है ताकि उमीदवार
को मान्यता मिल
सके और चुनाव लड़ने
की अनुमति मिल
सके
7. उम्मीदवारों
की संख्या सीमित
करना
8. तत्काल
निर्णायक मतदान
(इंस्टेंट रन-ऑफ
वोटिंग) जिसे अधिक
पसंद (प्राथमिकता)
अनुसार मतदान भी
कहते हैं
9. उमीदवारों
का उम्मीदवारी
वापसी लेने के
विकल्प को समाप्त
करना
10. राज्यसभा
में चुनाव और राज्यसभा
में सामान अनुपात
वाला प्रतिनिधित्व
11. पार्टी
में आंतरिक लोकतंत्र
अधिक
जानकारी के लिए
smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 40 देखें या हमसे
संपर्क करें |
भारतीय
राजनीती विकल्प
पार्टी निम्नलिखित
प्रशासनिक बदलाव
पुलिस में प्रस्तावित
करती हैं :
1. ऐसे
कानून लागू करना
जिससे नागरिकगण
जिला पुलिस कमिश्नर
को बदल सकें
2. पुलिस
कर्मचारियों पर
जूरी सिस्टम : नागरिकों
कों एक पुलिसकर्मी
को निकलने और जुर्माना
लगाने का अधिकार
3. जमीनों
पर संपत्ति-कर
का उपयोग करके,
पुलिस कर्मचारियों
की संख्या तीन
गुना करना
4. जमीनों
पर संपत्ति-कर
का उपयोग करके,
पुलिस कर्मचारियों
की तनख्वाह दोगुना
करना
5. राष्ट्रीय
पहचान-पत्र प्रणाली
बनाना जिससे अपराधियों
को पकड़ने और उनका
रिकॉर्ड रखने में
सुधार हो
6. सभी
अपराधिक रिकॉर्ड
और सभी पुलिस थानों
का कंप्यूटरीकरण
करना
7. सभी
पुलिसकर्मियों,
हवलदार से लेकर
डी.आई.जी. तक की संपत्ति
और उनके नजदीकी
रिश्तेदारों की
संपत्ति का इन्टरनेट
पर खुलासा करना
कृपया
जानकारी के लिए
का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय
22 देखें या हमसे
संपर्क करें |
टी.सी.पी.
द्वारा कार्यकर्ता
निम्नलिखित पर
जनता की राय इकठ्ठा
कर सकते हैं :
1. प्रस्तावित
टी.सी.पी. का उपयोग
करके इन कानूनों
को राजपत्र में
छपवाया जाये - जिला
शिक्षा अधिकारी,
राज्य शिक्षा मंत्री,
केंद्रीय शिक्षा
मंत्री और विश्वविधालय
उपकुलपति आदि पर
राईट टू रिकॉल
की प्रक्रिया
2. गणित
और अन्य महत्वपूर्ण
विषयों की शिक्षा
में सुधार हेतु
टी.सी.पी. का उपयोग
करके सात्य प्रणाली
कानून को राजपत्र
में छपवाया जाये
3. कानून
की शिक्षा छटवीं
कक्षा से देना
शुरू किया जाए
; कर-कानूनों की
शिक्षा जिसमें
आय विवरण भरने
की जानकारी हो,
दी जाए
4. सभी
को हथियारों के
प्रयोग की शिक्षा
भी दी जाए
5. सब्सिडी
(आर्थिक सहायता)
कॉलेजों के बजाय
सीधे छात्रों को
दी जाए
6. सभी
विषयों जैसे गणित,
विज्ञान, भूगोल,
कानून-ड्राफ्ट
आदि के लिए दो भाषाओं
(अंग्रेजी, हिंदी
या क्षेत्रीय भाषा)
में पुस्तकें दी
जायें
7. यदि
छात्र चाहें तो
उन्हें वैकल्पिक
परीक्षाएँ अंग्रेजी
में देने की अनुमति
दी जाए
कृपया
जानकारी के लिए
का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय
30 देखें या हमसे
संपर्क करें |
1. सभी भू-स्वामी
मालिकों के नामों
(व्यक्तिगत और
ट्रस्ट) और उनकी
जमीन अधिग्रहण
की जानकारी नेट
पर रखना |
उदहारण के लिए-
अगर कोई यह जानना
चाहता है कि श्रीमान
X जिनका
वोटर नंबर ऐसा
है, कितनी और कैसी
संपत्ति के मालिक
हैं, तो यह जानकारी
सभी को दिखनी चाहिए
और कोई भी उस जानकारी
को खोज सकता है
इससे जनता जान
पायेगी कि किसके
पास कितनी जमीन
और संपत्ति है
और अधिकारियों
को काली संपत्ति
और बेनामी संपत्ति
का पता लगाने में
मदद मिलेगी |
2. “टोर्रेंस सिस्टम”
के सामान एक भू-रिकॉर्ड
सिस्टम लागू करें
3. मालिकों और उनके
रिश्तेदारों को
बिक्री की सूचना
आदि ईमेल या एस.एम.एस.
से मिले
4. जमीन / फ्लैट बिक्री
बीमा करना
कृपया जानकारी
के लिए rtrg.in/67 देखें या हमसे
संपर्क करें |
1. राष्ट्रीय
/ राजकीय कृषि मंत्री
और राष्ट्रीय
/ राजकीय सिंचाई
मंत्री पर राईट
टू रिकॉल कृषि
और सिंचाई में
भ्रष्टाचार कम
करेगा |
2. राईट
टू रिकॉल-कृषि
मंत्री कोल्ड स्टोरेज
की संख्या और वेयरहाउस
में सुधार करेगा | इससे
अन्न की बर्बादी
कम होंगी |
3. समर्थन
मूल्यों में वृद्दि
करें | इससे
किसानों को नहर
के रख रखाव और पानी
के शुल्क भरने
में सहायता होंगी |
4. कृषि
के लिए पानी का
मीटर लगाना और
पानी पर सब्सिडी
हटाना, पानी की
बर्बादी को कम
करेगा, पानी की
आपूर्ति सुधरेगा
और पानी के कटाव
को भी कम करेगा |
5. हानिकारक
कीटनाशकों को प्रतिबंधित
करें और सभी कीटनाशकों
पर आर्थिक छूट
रद्द करें | समर्थन
मूल्यों में वृद्दि
करने से बड़ी हुई
कीमतों से सुरक्षा
मिलेगी |
6. सभी
कृषि उत्पादों
जिसमें बासमती,
माँस, अंडे, दूध,
कपास आदि शामिल
हों, का निर्यात
प्रतिबंधित हो |
7. जत्रोपा
खेती को प्रतिबंधित
करें | हमारे
पास अन्न पैदा
करने के लिए पर्याप्त
जमीन और पानी नहीं
हैं और 4-अंक बौद्धिक
स्तर वाले लोग
ऐसी फसल की खेती
चाहते हैं जिससे
कार मलिकों को
डीजल सस्ते में
मिल सके |
8. चिकन,
अंडो और मांस उत्पादन
को दी जाने वाली
सभी आर्थिक छूट
बंद हो | इससे
इन्हें पालने के
लिए लगने वाली
अनाज की खपत आदि
कम होंगी, क्योंकि
1 किलोग्राम माँस
के लिए जितना पानी/जमीन
चाहिए इतना ही
बराबर 20 किलोग्राम
गेंहूँ के लिए
चाहिए |
9. रासायनिक
खाद पर आर्थिक
सहायता (सब्सिडी)
20% प्रति वर्ष की
दर से समाप्त करें
और समर्थन मूल्य
बढ़ाएँ जिससे किसान
को जैविक खाद की
कीमत की भरपाई
कर सकें |
10. डीजल
पर आर्थिक सहायता
(सब्सिडी) 20% प्रति
वर्ष की दर से समाप्त
करें | समर्थन
मूल्य बढ़ाएँ जिससे
बढ़ी हुई कीमतों
की भरपाई हों |
11. बिजली
पर सभी आर्थिक
सहायता (सब्सिडी)
20% प्रति वर्ष की
दर से समाप्त करें | समर्थन
मूल्य बढ़ाएँ जिससे
बढ़ी हुई कीमतों
की भरपाई हों |
12. ट्रेक्टरों
पर आर्थिक सहायता
(सब्सिडी) 20% प्रति
वर्ष की दर से समाप्त
करें और समर्थन
मूल्य बढ़ाएँ जिससे
किसान कों ट्रेक्टर
और/या बैलों को
खरीदने के लिए
जो खर्च सहना पड़ेगा,
उसकी भरपाई हों |
13. राईट
टू रिकॉल-जिला
आपूर्ति अधिकारी
कानून लाकर राशन
कार्ड प्रणाली
सुधारें और नागरिकों
को राशन कार्ड
मालिक बदलने का
विकल्प दिया जाए |
14. राशन
कार्ड प्रणाली
में दालों को जोड़ें |
15. राशन
कार्ड प्रणाली
में देसी गाय के
दूध को जोड़ें |
16. 2% कृषि
भूमि कर (टैक्स)
लगाएं 5 एकड़ से ऊपर
जमीन वाले प्रति
किसान परिवार के
सदस्य पर | किसान
परिवार सदस्य वह
व्यक्ति मन जायेगा
जिसकी गैर-कृषि
आय प्रति वर्ष
रू 2,00,000 से कम
होंगी और वह उस
गाँव में उसी भूमि
पर कम से कम उस साल
में 180 दिन निवास
कर रहा हों | इससे
अनुपस्थित जमींदारी
कम होंगी और अनुपस्थित
जमींदारी में गिरावट
से प्रति एकड़ उत्पत्ति
में वृद्दि से
होगी |
17. नागरिक
आपूर्ति (राशन
कार्ड) मंत्री
और जिला आपूर्ति
अधिकारी पर राईट
टू रिकॉल राशन
कार्ड विभाग में
भ्रष्टाचार कम
करेगा |
18. नागरिक
आपूर्ति (राशन
कार्ड) विभाग के
सभी रिकॉर्डों
का सम्पूर्ण कंप्यूटरीकरण
और इन रिकॉर्डों
को नेट पर रखना
19. राशन
कार्ड दुकानों
को उपभोगताओं के
साथ एस.एम.एस. द्वारा
जोड़ना
20. मानवों
के खाने योग्य
अनाज का उपयोग
जानवरों के भोजन
के लिए प्रतिबंधित
करना
21. मिलावट
के आरोपी वाले
मामलों के लिए
जूरी सुनवाई और
तुरंत और न्यायपूर्ण
फैसले के लिए आरोपी
पर जूरी सदस्यों
की सहमति से पब्लिक
में नार्को टेस्ट
लेना
22. दूध
की थैली/डिब्बे
पर स्पष्ट लेबल
होगा कि दूध गाय
का है या भैंस का | साथ
में यह भी लिखा
होगा कि दूध “ देसी
गाय” का है या “गीर
गाय” या “जर्सी गाय”
का |
23. दूध
की थैली / डिब्बे
पर स्पष्ट लेबल
होगा कि दूध में
प्रोटीन और वसा
की मात्रा और भारतीय
मेडिकल कौंसिल
के अनुसार उस वसा
लेवल से दिल के
दौरे की संभावना
भी लिखी होंगी | इस
तरह से भैंस के
दूध की खपत में
कमी भी आएगी |
24. शहरों
में 10,000 से 30,000 तक की
आबादी वाले हर
बस्ती में कम से
कम एक गौशाला जरुर
होनी चाहिए | इस
तरह शहरों में
हर एक वार्ड में
1-2 गौशाला हो जाएगी
|
25. राशन
कार्ड दुकानों
के माध्यम से रियायती
दरों पर गाय का
दूध बेचना (राशन
कार्ड दुकानों
के माध्यम से लगभग
100 मिली देसी गाय
का दूध प्रति व्यक्ति
प्रति दिन उसके
कीमत और 7% मुनाफे
के साथ खरीदा जायेगा
और 50% कम मूल्य पर
बेचा जायेगा)
26. राशन
कार्ड दुकान मालिक
खाना और दूध घर
पर पहुंचा सके
ऐसी व्यवस्था लाना | उपभोगता
कीमत नकद या किसी
वास्तु द्वारा
भुगतान कर सकेगा |
कृपया
जानकारी के लिए
का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय
44.4 देखें या हमसे
संपर्क करें |
1. एक धारा
छापना कि अगर कोई
गैर-नागरिक पहचान-पत्र
के लिए आवेदन करता
है तो उसे कारावास
या मृत्यु दंड
दिया जायेगा
2. एक व्यक्ति
के पहचान पत्र
को उसके माता-पिता
और नजदीकी रिश्तेदारों
के पहचान पत्र
से जोड़ना
3. एक व्यक्ति
के पहचान पत्र
को मालिक के पहचान
पत्र और काम की
जगह से जोड़ना
4. राष्ट्रीय
पहचान-पत्र प्रणाली
के सदस्यों पर
जूरी द्वारा मुक़दमा
चलाना
5. एक व्यक्ति
के पहचान पत्र
को बैंक खाते, पैन
कार्ड और डी.एन.ए.
कोष से जोड़ना
जब कभी
भी खर्च उठने में
समर्थ हों, सभी
नागरिकों के डी.एन.ए.
छाप पहचान-पत्र
सिस्टम में जोड़ना
चाहिए | शुरुवात
में, सभी सरकारी
कर्मचारियों और
फिर सभी नागरिकों
को डी.एन.ए. छाप देना
आवश्यक बना देना
चाहिए जो रू 10 लाख
प्रति वर्ष से
ज्यादा कमाते हों,
फिर जो नागरिक
रू 5 लाख प्रति वर्ष
कमाते हों, फिर
सभी नागरिक जो
रू 2 लाख प्रति वर्ष
कमाते हों और फिर
सभी नागरिकों को
उनकी राशि और समय
के अनुसार |
ऐसे
कदमों से अवैध
घुसपैठियों का
पकड़ने और बहार
निकलने में मदद
मिलेगी | इससे
कर-चोरी करने वालों
को पकड़ने और सज़ा
देने में मदद मिलेगी |
कृपया
जानकारी के लिए
का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय
31 देखें या हमसे
संपर्क करें
(1) महंगाई
का असली कारण क्या
है ?
उत्तर
1 -
सामान्य
तौर पर महंगाई
तभी बढ़ती है जब
रुपये (एम 3) बनाये
जाते हैं लोन,आदि
के रूप में और भ्रष्ट
अमीरों को दिए
जाते हैं, जिससे
प्रति नागरिक रुपये
की मात्रा बढ जाती
है और रुपये की
कीमत घाट जाती
है और दूसरे चीजों
की कीमत बढ जाती
है जैसे खाद्य
पदार्थ/खाना-पीना,
तेल आदि |
भारतीय
रिसर्व बैंक के
आंकडो के अनुसार, प्रति
नागरिक रुपये की
मात्रा (देश में
चलन में कुल नोट, सिक्कों और सभी
प्रकार के जमा
राशि का कुल जोड़
को कुल नागरिकों
की संख्या से भाग
किया गया) सन् 1950 में
लगभग 65 रू. थी और सन्
2011 में लगभग 50,000 रू. प्रति
नागरिक थी |
===========
हर वस्तु
की कीमत एक दुसरे
से सम्बंधित है
और मांग और आपूर्ति
के अनुसार (सप्लाई)
निर्धारित (पक्का)
होती है |
इसे
एक उदहारण से समझिए | आसानी
से समझने के लिए,
मान लीजिए, केवल
एक बाज़ार है और
कुछ नहीं | बाज़ार
में, एक बेचनेवाला
है जो 10 रू. प्रति
किलो आलू बेचता
है और एक खरीददार
है जिसके पास 100 रू.
हैं | अब मान
लीजिए, अगली स्थिति
में, बेचनेवाले
के पास 10 किलो की
जगह 20 किलो आलू है,
क्या आलू की कीमत
घटेगी या बढ़ेगी
?
सरल
सा अनुमान - यह घटेगी
क्योंकि आलू की
सप्लाई बढ़ गयी
थी
|
एक और
स्थिति में, मान
लो उस व्यापारी
के पास 10 किलो आलू
है पर अब दो खरीददार
हैं और हर एक के
पास 100 रू. हैं | क्या
आलू की कीमत घटेगी
या बढ़ेगी ?
सरल
सा अनुमान - आलू
की कीमत बढ़ेगी
क्योंकि रुपयों
की सप्लाई बढ़ गयी
है और रुपए की कीमत
घटेगी और अन्य
वस्तुओं जिनमें
शामिल है खाने-पीने
का सामान, पेट्रोल,
गैस आदि की कीमतें
बढ़ेगी |
वास्तविकता
में यही हों रहा
है
|
(2) ये रूपये
कौन बनाता है और
ये रूपये कहाँ
से आते हैं (रूपये
= एम3 देश में सभी
नोट, सीके और सभी
प्रकार की राशि
का जोड़) ?
उत्तर
2 -
रिसर्व
बैंक के पास लाइसेंस
हैं रुपयों को
बनाने का और अनुसूचित
बैंक के पास भी
(बैंक जिनको रिसर्व
बैंक ने लाइसेंस
दिया है रुपयों
को बनाने का जमा
राशि के रूप में) | कोई
गोल्ड स्टेंडर्ड
अभी नहीं है (कि
जितना सोना है,
उतना ही पैसा बना
सकते हैं), क्योंकि
वो कई दशक पहले
पूरी दुनिया में
रद्द हों चूका
था | रिसर्व
बैंक गवर्नर (रिसर्व
बैंक राज्यपाल)
सरकार के निर्देशों
पर रुपयों का निर्माण
करता है |
केवल
रिसर्व-बैंक ही
नोट छाप सकती है
और सिक्के बना
सकती है लेकिन
अनुसूचित बैंक
जैसे भारतीय स्टेट
बैंक, आई.सी. आई.सी.आई
, आदि भी रूपये का
निर्माण (एम3) जमाराशि
के रूप कर सकते
हैं
|
रुपयों
की सप्लाई बढ़ने
से रूपये का दाम
काम हों जाता है
और ये अन्य सामान
जैसे खाने-पीने
का सामान, पेट्रोल,
गैस आदि की कीमतें
बढ़ा देता है और
ये सामान्य मंहगाई
का मुख्य कारण
है
|
(3) रिसर्व
बैंक और अनुसूचित
बैंक रूपये क्यों
बनाते हैं ?
उत्तर
3 -
वे ऐसा
अमीर और भ्रष्ट
लोगों के लिए करते
हैं
| मुझे एक उदहारण
देने दीजिए | मान लीजिए एक
अमीर कंपनी है
जिसकी सांठ-गाँठ
रिसर्व बैंक गवर्नर,
वित्त मंत्री आदि
के साथ है | वे
एक सरकारी बैंक
से रू. 1000 करोड़ का
कर्ज लेते हैं
और वापस रू. 200 करोड़
चूका देते हैं
| और क्योंकि
उनकी सांठ-गाँठ
है, वे वित्त मंत्री,
रिसर्व बैंक गवर्नर
आदि को कहेंगे
कि वे उनको हिस्सा
(रिश्वत) देंगे
और बदले में वे
उनकी कंपनी को
दिवालिया घोषित
करवा दे |
तो कंपनी
को दिवालिया घोषित
कर दिया जाता है | अब
यदि बैंक ये रू.
800 करोड़ का घाटा लोगों
के सामने घोषित
कर देता है, तब बैंक
भी दिवालिया घोषित
हों जायेगा और
बैंक के ग्राहक
को भी अपनी जमा
राशि खोनी पड़ेगी
और ग्राहक, जो आम
नागरिक मतदाता
हैं, शोर करेंगे
और सरकार को लोगों
का गुस्सा झेलना
पड़ेगा | इस स्थिति
से बचने के लिए,
सरकार रिसर्व बैंक
गवर्नर / अनुसूचित
बैंकों को 800 करोड़
रूपये बनाने के
लिए कहती है | ये ज्यादा रुपयों
की सप्लाई, जब बाज़ार
में आती है तो रूपये
की कीमत घट जाती
है और समान की कीमत
बढ़ जाती है |
(4) इसे
रोकने का समाधान
क्या है ? हमें सरकार
को हटा देना चाहिए
या हमें अच्छी
नीतियां बनाने
की जरुरत है ?
उत्तर
4 - ये अमीरों
के लिए रूपये का
अवैध निर्माण कांग्रेस
के और बीजेपी के
भी शासनकाल से
हो रहा था | इसीलिए
किसी एक सरकार
को हटाकर दूसरी
सरकार लाना समस्या
का समाधान नहीं
है |
इसके
समाधान निम्नलिखित
है -
(a) वित्त
मंत्री और रिसर्व
बैंक गवर्नर पर
राईट टू रिकॉल
- वर्तमान में, रिसर्व
बैंक गवर्नर सरकार
के निर्देशों पर
अमीरों के लिए
रुपयों का निर्माण
भ्रष्ट रूप से
करता है | एक
बार रिसर्व बैंक
गवर्नर और वित्त
मंत्री की कुर्सी
सीधे जनता के प्रति
जवाबदेह होगी,
ये ऐसा कुछ नहीं
करेंगे | कृपया
राईट टू रिकॉल-रिसर्व बैंक
गवर्नर की प्रक्रिया
smstoneta.com/prajaadhinbharat के अध्याय 9 में
देखें |
(b) रिसर्व
बैंक गवर्नर रुपयों
का निर्माण सिर्फ
तब ही कर सकेगा
जब भारत के 51% नागरिक
उसे स्वीकृति प्रदान
करेंगे | इसके
लिए हमें पारदर्शी
शिकायत / प्रस्ताव
प्रणाली चाहिए
(smstoneta.com/prajaadhinbharat के अध्याय 1 में
देखें) |
कृपया
smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 23 भी
देखें और ‘मंहगाई
के असली कारण’ जानने
के लिए smstoneta.com/prajaadhinbharat/faq4 देखें |
आज, जन्म
से एक नागरिक देखता
है और सीखता है
कि भ्रष्ट कम मीडिया
साधन और कम कनेक्शन
वाले व्यक्ति द्वारा
जमा किये गए सबूत, शिकायत
आदि को आसानी से
दबा सकते हैं ।
नागरिक देखता है
कि भ्रष्ट आसानी
से भ्रष्ट पुलिस, भ्रष्ट
जजों और भ्रष्ट
नेताओं आदि के
साथ सांठ गाँठ
कर सकते हैं | इस
सांठ-गाँठ की मदद
से भ्रष्ट अपना
कम निकलवा लेते
हैं और उनको सज़ा
नहीं होती | और जब
तक वे मर नहीं जाते
हैं उन पर मामलें
सालो के लिए चलते
रहते हैं । तो, एक
युवा नागरिक सीखता
है कि ईमानदार
होना से भ्रष्ट
होना अधिक फायदेमंद
है |
नैतिक
मूल्यों, राष्ट्रीय
चरित्र और नैतिक
शिक्षा में सुधार
तभी होगा यदि पुलिस, अदालतों
में कम अन्याय
और तेजी के साथ
मामलों का निपटारा
होता है । एक ऐसा
देश, जहां
पुलिस और अदालत
जानबूझकर मामलों
में देरी और अन्यायपूर्वक
करते है, वहाँ नैतिकता
कम रहेगी, चाहे
कितना भी प्रचार
किया और सिखाया
जाता है । एक बार
जब हम आमजन सुनिश्चित
करेंगे कि पुलिस
/ अदालत निर्दोष
लोगों को परेशान
नहीं कर रहे हैं
और दोषी को छोड़ते
हैं, अपराध, भ्रष्टाचार, पक्षपात
और अत्याचार कम
हो जायेगा, नैतिक
मूल्यों और नैतिक
शिक्षा में अपने
आप सुधार होगा
।
हम भारत
में नैतिक शिक्षा
में सुधार करने
के लिए निम्नलिखित
राजपत्र ड्राफ्ट
प्रस्ताव कर रहे
हैं-
1. पारदर्शी
शिकायत-प्रस्ताव
प्रणाली - यह नागरिक
मीडिया पोर्टल
के द्वारा नागरिक
यदि चाहे तो अपने
सबूत, शिकायत आदि
की कॉपी अपने मतदाता
संख्या के साथ, प्रधानमंत्री
की वेबसाइट पर
रख सकतें हैं | इससे
यह सुनिश्चित होगा
कि जमा किये गए
सबूत, शिकायत
आदि को आसानी से
दबाया नहीं जा
सके । अगर यह कानून राजपत्र
में डाला जाता
है, तो लोगों को
सीख मिलेगी कि
बुरे काम जैसे
अपराध, भ्रष्टाचार
करने पर वे जनता
में सबूत के साथ
बेनकाब हों सकते
हैं और उन्हें
बहुत बड़ा नुकसान
हो जाएगा । पिछले
भाग में इस प्रस्ताव
की अधिक जानकारी
देखें ।
2. जूरी
सिस्टम, जजों पर
राईट टू रिकॉल – इससे
फैसले जल्दी और
न्यायपूर्ण आयेंगे
। यह व्यक्ति को
सिखायेगा कि कानून
तोड़ने और समाज
को नुकसान पहुँचाने
पर सजा मिलेगी
और व्यक्ति के
लिए एक नुकसान
होगा ।
3. राईट
टू रिकॉल पुलिस
प्रमुख, पुलिसकर्मियों
पर जूरी सिस्टम – नौकरी
जाने के डर के कारण
पोलिस-कर्मी जमा
किये गए सबूतों
से छेड़छाड़ नहीं
करेंगे और सही
से जांच करेंगे
|
4. मंत्रियों
की तरह अन्य महत्वपूर्ण
सरकारी पदों पर
रिकॉल - यह नागरिक
को सिखायेगा कि
अनैतिक व्यवहार
करने से नौकरी
जा सकती है |
5. कानून
को विषय के रूप
में सिखाना - कानून-ड्राफ्ट
को छात्रों के
लिए एक विषय के
रूप में सिखाना
चाहिए | किस काक्षसे
कानून सिकाने की शुरुवात
होगी, माता-पिता
की स्वीकृति से
निर्णय किया जायेगा
। इससे छात्र को
यह जानने में और
तय करने में मदद
मिलेगी कि कौन
सा कानून नैतिक
है और कौन सा अनैतिक
है ताकि वे सरकारी
कर्मचारियों को
अनैतिक कानूनों
को हटाने के लिए
निर्देश कर सकें
।
कृपया
अधिक जानकारी के
लिए का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय
66 देखें या हमसे
संपर्क करें
आजकल,
बहुत से मुख्मंत्री
इस समस्या का हल
शराबबंदी और यहाँ
तक की हलकी औषध
जैसे भांग आदि
को बंद करके निकाल
रहे हैं | लेकिन
इसका नतीजा सिर्फ
मेथानोल मिली हुई
शराब की अवैध तस्करी
और अवैध बिक्री
होता है जिसका
परिणाम ऐसी मिलावटी
शराब का सेवन करने
वालों की मौत और
भयंकर बीमारी होता
हैं जबकि राज्य
नशा-मुक्ति केन्द्रों
की हालत बहुत खराब
है |
अफीम,
हशिस और अन्य कम
नशे वाली औषधियां,
मानसिक रोगों की
औषध की जरुरत को
कम करती हैं |
अफीम
दर्द निवारक दवायों
की भी जरुरत को
कम करता है | इसलिए
दवा बनाने वाली
कंपनियों के मालिकों
ने प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों
को रिश्वत देकर
अफीम, हशिस के खिलाफ
एक आंदोलन खड़ा
किया और फिर उन्होंने
सांसदों को पैसा
देकर अफीम और हशिस
को बंद करने का
कानून बनवाया | अफीम
और हशिस पर बैन
से पुलिसवालों, मंत्रियों
और जजों आदि को
मिलने वाला घूस
का पैसा भी पहले
से बढ़ जाता है | इसका
दुष्प्रभाव ये
हुआ कि अफीम और
हशिस का दाम 100 गुना
बढ़ गया और तब अफीम
की लत वाले व्यक्ति
को चोरी जैसे अपराधों
का सहारा लेना
पड़ा और इसका नतीजा
अफीम खरीदने के
लिए हिंसा करना |
लेकिन
यदि अफीम को कानूनी
मान्यता दे दी
जाए, तो अफीम चाय
और कॉफी से भी सस्ती
हो जायेगी और किसी
को अफीम खरीदने
के लिए हिंसा का
सहारा नहीं लेना
पड़ेगा | अफीम
पर प्रतिबन्ध लगने
से ज्यादा हानिकारक
ड्रग्स जैसे स्मैक
आदि का अधिक इस्तेमाल
होता है क्योंकि
ये प्रति घन सेंटीमीटर
मात्रा में ज्यादा
नशा देती है | और
क्यों मात्रा का
घन सेंटीमीटर एक
कारक बन जाता है
? क्योंकि जब किसी
वास्तु पर प्रतिबंध
लगाया जाता है
तो फेरीवाले (बेचनेवाले)
का फायदा क्यूबिक
सेंटीमीटर मात्रा
पर ज्यादा निर्भर
करता है और ढुलाई
लागत पर नहीं | स्मैक
आदि जैसे नशीले
पदार्थ क्यूबिक
सेंटीमीटर में
कम स्थान लेते
हैं और इसलिए ये
फेरीवाले के लिए
अफीम से ज्यादा
सस्तें होतें है | इससे नशेबाजों
का स्वास्थ्य और
भी खराब हो जाता
हैं और दवा बेचने
वाली कंपनियों
की बिक्री बढ़ जाती
हैं | इसके
अलावा, अफीम पर
रोक लगने से तम्बाकू
की बिक्री और कैंसर
बढ़ जाता है | इससे
दवा बेचने वाली
कंपनियों की बिक्री
और बढ़ जाती हैं | इसलिए
कुल मिलाकर, अफीम
पर रोक से केवल
दवा बेचने वाली
कंपनियों, भ्रष्ट
पुलिसवालों, जजों,
मंत्रियों को फायदा
होता और नशेबाजों
को यह बर्बाद कर
देता है और समाज
में अपराध की दर
भी बढ़ती है |
क्या
चरस को कानूनी
मान्यता देने से
अपराध घटेंगे या
बढ़ेंगे ? एक सच्चे
उदहारण के रूप
में, नीदरलैंड
ने अफीम को कानूनी
मान्यता दे दी
और इससे गंभीर
अपराधियों की संख्या
जनवरी-2002 में 14,000 से
कम होकर जनवरी-2009
में 12,000 हो गयी | नीदरलैंड
विश्व के कुछ ऐसे
देशों में से है
जहाँ उच्च सुरक्षा
वाले जेलों को
अब बंद किया जा
रहा है |
नीदरलैंड
मॉडल पुर्तगाल
जैसे दूसरे देशों
ने भी अपनाया और
उन्हें भी समान
परिणाम मिले | नीदरलैंड
आदि देशों ने अफीम
को कानूनी मान्यता
देने के साथ साथ
नशा मुक्ति केन्द्रों
में सुधार किया |
तो क्या
हमें अफीम को कानूनी
मान्यता देनी चाहिए?
हम टी.सी.पी. द्वारा
इस मुद्दे पर जनता
का मत लेने का प्रस्ताव
करते हैं | जब अफीम
की कानूनी-मान्यता
जनता मत के लिए
रखी जाएगी, अधिकाँश
नागरिक महसूस करेंगे
कि अफीम पर रोक
नशेबाजों के सेहत
को खराब कर रही
है और गैर नशेबाजों
की संपत्ति और
जीवन पर खतरा बढ़ा
देती है | इसलिए
अधिकतर नशेबाज
हां पर सहमत होंगे
और ऐसा ही उनके
परिवार के सदस्य
और गैर नशेबाज
करेंगे | और तब
बिना किसी घृणा (बदनामी)
के
अभियान के ही अफीम
कानूनी रूप से
वैध हो जाएगी |
मॉरिशस,
सिंगापुर, फिजी
की टैक्स-संधियाँ
काले धन के निवेश
और काले धन को सफेद
में बदलने का एक
बड़ा रास्ता है | इन
संधियों के कारण
जिन कंपनियों का
इन देशों में प्रमुख
कार्यालय है उन्हें
कम टैक्स चुकाना
पड़ता है उन कंपनियों
की तुलना में जिनके
प्रमुख कार्यालय
भारत में है | इसका
परिणाम स्वदेशी
उद्योगों का अन्यायपूर्ण
शोषण है चाहे वे
कितने ही प्रभावशाली
(सक्षम) क्यों ना
हों |
अधिक
जानकारी के लिए
कृपया tinyurl.com/StopMauritiusRoute देखें
काले
धन की निर्माण
भ्रष्टाचार, अपराध
और टैक्स-चोरी
के कारण होता है | अधिकांश
काला धन, काली जमीन,
काला सोना और विदेशो
में ली गयी संपत्तियों
जैसे काली विदेशी
मुद्रा और काली
विदेशी जमीन, के
रूप में होता है | अप्पू
एस्थोसे सुरेश
ने 12 नवम्बर 2016 के
बिकाऊ हिंदुस्तान
टाइम्स अखबार के
एक लेख में ये लिखा
है कि वित्तीय
वर्ष 2012-13 के बाद से
जितनी भी टैक्स
छापेमारी हुई हैं,
टैक्स चोरों के
यहाँ से, छुपी हुई
आय में से 6% से भी
कम नकद में वसूली
गयी है |
यदि
भारत सरकार सभी
नोटों को भी बंद
कर दे और केवल 1 रूपये
का सिक्का भी चलाये,
तब भी भ्रष्टाचार
पहले जैसा ही रहेगा
!!! क्योंकि यदि माध्यम
बाधा बनता है तो
भ्रष्ट लोग और
आतंकवादी बिट-कॉइन,
चांदी, सोना या
डॉलर का इस्तेमाल
करने लगेंगे |
ऐसे
अनेकों माध्यम
हैं जिन्हें ना
भारत सरकार खोज
सकती है और शायद
भगवान भी नहीं
खोज सकते |
तो समाधान
है ऐसे कानून बनाना
जिनसे प्रशासनिक
अधिकारी / पुलिस
अधिकारी / जज / मंत्री
की रिश्वत वसूलने
और आतंकवादियों
की जाली नोट बनाने
की क्षमता कम हो | माध्यम
को रोकना केवल
लोगों को अन्य
माध्यम बदलने पर
प्रेरित करेगा |
कृपया
समाधानों और अधिक
जानकारी के लिए
smstoneta.com/prajaadhinbharat के अध्याय 1,6, 25, 41 देखें
|
समाधान
-
1) सभी
संपत्ति (व्यक्तिगत
और ट्रस्ट) और उनकी
भू-स्वामित्व की
जानकारी नाम और
वोटर संख्या द्वारा
नेट पर खोजी जा
सके
उदहारण
के लिए - अगर कोई
यह जानना चाहता
है कि श्रीमान
X जिनका वोटर
नंबर इस प्रकार
है, कितनी और कैसी
संपत्ति के मालिक
हैं, तो यह जानकारी
सभी को दिखेगी
और कोई भी ऐसी समान
जानकारी को खोज
सकता है |
हमें ऐसी व्यवस्था
चाहिए जिससे कोई
भी व्यक्ति भूमि
विभाग की वेबसाइट
पर जाकर किसी व्यक्ति
के नाम/पद/वोटर
आई डी के आधार पर
सर्च करके यह जान
सके कि अमुक व्यक्ति
के पास कितनी कृषि
भूमि है, कितने
प्लॉट्स है, कितनी
निर्मित इमारते
है,
कितनी जमीन
विरासत से मिली
है,
कितनी जमीन
शहरी क्षेत्र में
है,
अमुक व्यक्ति
ऐसे कितने ट्रस्ट/कंपनियों
में जुड़ा हुआ है
जिनके पास भूमि
है,
कितनी भूमि
इसे सरकारी अनुदान
में मिली है, इन
जमीनों को कब खरीदा
गया था तथा इनकी
रजिस्ट्री किस
मूल्य पर हुयी
थी। साथ ही अमुक
व्यक्ति के नजदीकी
रक्त सम्बन्धियो
के खाते भी अमुक
व्यक्ति के खाते
के साथ एसोसिएट
होने चाहिए, ताकि
किसी व्यक्ति के
पूरे परिवार की
संपत्ति देखी जा
सके। दूसरे शब्दो
में देश की हर इंच
भूमि का रिकार्ड
सार्वजनिक किया
जाए ताकि इसे व्यक्ति
के आधार पर देखा
जा सके ।
इससे
जनता जान पायेगी
कि किसके पास कितनी
जमीन और संपत्ति
है और अधिकारियों
को काली संपत्ति
और बेनामी संपत्ति
का पता लगाने में
मदद मिलेगी |
2) भूमि
की बिक्री सिर्फ
उचित नीलामी द्वारा
हो - इस प्रस्तावित
क़ानून के अनुसार, किसी
संपत्ति के बिक्री
तय होने के 30 दिवस के भीतर
कोई तीसरा पक्ष
(पार्टी) बिक्री
मूल्य पर 25% अधिक
भुगतान करके उस
भूखंड को खरीद
सकेगा, जिसमें
से 20% राशि पहले
वाला खरीददार प्राप्त
करेगा तथा बाकी
राशि सरकार के
खाते में जमा होगी
|
जब एक
व्यक्ति जमीन या
संपत्ति एक खरीददार
A को बेचता है, वह
जमीन के नाम का
ट्रान्सफर 30 दिनों
के लिए पेंडिंग
होगा (रुका
हुआ) | यदि कोई
तीसरा पक्ष इन
30 दिनों के अन्दर
जमीन के बिक्री
मूल्य से 25% से ऊपर
राशि का भुगतान
करता है, तब जमीन
अधिकारी बिक्री
मूल्य का 120% खरीददार
को दे देगा और तीसरे
पक्ष का नाम अगले
संभावित मालिक
के रूप में दर्ज
करेगा | और उसकी
बोली लेने के बाद,
वह अगले 30 दिनों
तक अन्य बोली की
प्रतीक्षा करेगा
जो पिछली बोली
से 25% राशि ज्यादा
होगी | अंतिम
खरीददार मालिक
घोषित केवल तभी
किया जायेगा जब
अंतिम बोली लगने
के 30 दिन बाद
कोई अन्य बोली
नहीं आती है | अत: इस तरह से जमीनों
में काले नकदी
की मात्रा गिरकर
20% हो जाएगी |
कृपया
अधिक जानकारी mygov.in/comment/98364831 में
देखें
3) प्रस्तावित
प्रभावशाली संपत्ति-कर - नकद
मुद्रा आदि की
तुलना में जमीन
छुपाना आसान नहीं
है, इसलिए प्रभावशाली
संपत्ति-कर वसूलने
में ज्यादा सक्षम
है और इनकम टैक्स
और अन्य प्रकार
के टैक्स की तुलना
में ज्यादा कर
वसूली देगा | संपत्ति-कर
जमीन की जमाखोरी
कम करेगा और जमीन
की कीमत भी घटाएगा,
विकास बढाता है
और बेरोजगारी कम
करता है | कैसे?
मान
लीजिये एक व्यक्ति
ने जमाखोरी के
लिए 10 फ्लैट ख़रीदे | मान
लीजिये, हर एक फ्लैट
20 लाख रुपयों का
है | तो फिर, प्रभावशाली
संपत्ति-कर कानून
के अनुसार, उसको 1 या 2
फ्लैट पर संपत्ति-कर
देने से छूट मिल
जायेगी, लेकिन
बाकी फ्लैट पर
उसको 1% दर से
1.6 लाख रुपये
टैक्स देना होगा
|
प्रभावशाली
संपत्ति-कर भूमि
की जमाखोरी रोकता
है और इससे भूमि
का दाम कम हो जाता
है | क्यूंकि भूमि
किसी भी उद्योग
और व्यापार को
शुरू करने के लिए
मुख्य तत्व होती
है, भूमि के कम दाम
के कारण छोटे-मोटे
धंदे पनपते हैं
और धंधों की संख्या
भी बढ़ती है और रोजगार
भी बढ़ता है | दूसरे
शब्दों में, प्रभावशाली
संपत्ति-कर किसी
प्रकार से भी नुकसानदायक
नहीं है |
प्रभावशाली
संपत्ति-कर उन
व्यक्तियों को
कोई भी हानि नहीं
पहुंचाता जो भूमि
और संपत्ति की
जमाखोरी नहीं कर
रहे हैं और अपनी
संपत्ति का उद्योग, व्यापार
के लिए उपयोग कर
रहे हैं क्यूंकि
दिए गए आय-कर और
कर्मचारियों के
लिए वेतन की संपत्ति-कर
में से छूट होगी
|
अधिक
जानकारी के लिए
tinyurl.com/SampattiKar देखें
प्रस्तावित
प्रभावशाली संपत्ति
कर और प्रस्तावित
नागरिक और सेना
के लिए खनिज आमदनी
राजपत्र अधिसूचना
भूमि की जमाखोरी
को रोकेंगे और
इससे जमीन के दाम
कम हो जायेंगे
| जब जमीनों की कीमतें
कम होंगी, तो घरों
की कीमत और घरों
का किराया भी कम
होगा. फिर जो झुग्गियों
में रहते हैं, वे
एक बेड रूम हाल
किचेन के फ्लैट
में जा सकेंगे
| और यदि जमीन के
दम गिरते हैं, उद्योगों
(व्यापारों) की
संख्या बढ़ेगी
(क्योंकि जैसे
जैसे जमीन की कीमत
गिरेगी, कारीगरों
के लिए अपना व्यापार
शुरू करना आसान
होगा), और हम आम-नागरिकों
के पास ज्यादा
रोजगार और बेहतर
वेतन होगा |
कृपया
प्रस्तावित प्रभावशाली
संपत्ति-कर और
प्रस्तावित नागरिक
और सेना के लिए
खनिज आमदनी की
अधिक जानकारी के
लिए smstoneta.com/prajaadhinbharat के अध्याय
5, 25 देखें |
आजकल, चिकित्सा
शिक्षा बिखर रही
है और स्वास्थ्य
सेवाओं के दाम
दिन ब दिन बढ़ रहे
हैं | स्व-वित्तीय
संस्थानों में
बढोत्तरी के कारण, बहुत
से होशियार विद्यार्थी
दाखिला लेने में
समर्थ नहीं होतें
और कम मेहनती और
कम होशियार विद्यार्थियों
को सीटें मिल रही
हैं | इससे
डॉक्टरों का हुनर
तेजी से घटेगा
आने वाले समय में
| ऊपर से, मंत्रियों
और अफसरों द्वारा
ऐसे टेड़े-मेढ़े
कानून बनाये जा
रहे हैं जिससे
दवा बनाने के उद्योग
में मुकाबला कम
होगा और इससे दवाओं
की कीमत में उछाल
आएगा | कौन से
राजपत्र अधिसूचना
ड्राफ्ट इस समस्या
को कम कर सकते हैं
?
हम निम्नलिखित
बिंदु प्रस्तावित
करते हैं चिकित्सा
शिक्षा को सुधरने
और दवाओं के दाम
कम करने के लिए
(ड्राफ्ट अभी तैयार
नहीं है):
1. राष्ट्रीय
स्वास्थ्य मंत्री, राज्य
स्वास्थ्य मंत्री, जिला
स्वास्थ्य अधिकारी, भारतीय
मेडिकल परिषद के
अध्यक्ष और राज्य
मेडिकल परिषद के
अध्यक्ष पर राईट
टू रिकॉल : ये शीर्ष
अंगों में भ्रष्टाचार
कम करने के साथ
ही सामान्य क्षमता
और पारदर्शिता
में सुधार करेगा
|
2. बहुत
बार डॉक्टर जानबूझकर
महंगी दवायें लिखते
हैं जब कि सस्ती
दवा उपलब्ध हैं
| समाधान ? अगर
मरीज जो दवा ले
रहा हैं, उसका
खुलासा चाहता हैं, तो
दवा बेचने वाले
रोगी की दवा की
सूची के साथ में, रोगी
के मोबाइल नंबर
और ईमेल आई.डी. की
जानकारी दर्ज करेगा
| तो मुकाबले
में दूसरे कम्पनियाँ, समान
दवा की जानकारी
सस्ते दाम के साथ
भेज सकती हैं |
3. टी.सी.पी.
का उपयोग करके, प्रोडक्ट
पेटेंट कानून को
हटाना और फिर से
प्रोसेस पेटेंट
कानून लाना | इससे
बहुत सारी छोटी
कंपनियों को उत्पादन
शुरू करने में
मदद मिलेगी और
प्रतिस्पर्धा
बढ़ेगी (मुकाबला
बढ़ेगा) और परिणाम
स्वरुप कीमतें
घटेंगी |
4. टी.सी.पी.
का उपयोग करके, एक
कानून लागू करना
कि एक एम.बी.बी.एस.
डिग्री पाने वाले
व्यक्ति 8 सालों
के लिए भारत नहीं
छोड़ सकते और डी.एम.
डिग्री वाले अगले
2 सालों के लिए देश
नहीं छोड़ सकते
और एम.डी. अगले 3 सालों
के लिए देश नहीं
छोड़ सकते |
5. टी.सी.पी.
का उपयोग करके, चिकित्सा
में सभी स्व-वित्तीय
सीटें (पैसों से
खरीदी गयी सीट)
समाप्त करें | सभी
चिकित्सा महाविद्यालय
की शून्य ट्यूशन
फीस होगी |
6. सरकार
एक वेबसाईट बनाएगी
जिस पर दवा कंपनियां, पंजीकृत
डॉक्टर इत्यादि
किसी दिए गए ब्रांड
नाम के बराबर की
दवाई की सलाह दे
सकते हैं | इससे
रोगी को पता करने
में मदद होगी कि
डॉक्टर ने एक महंगी
दवा या सस्ती दवा
लिखी है |
एक वायु
प्रदूषण सूचक
(चिन्ह), पी.एम.10
(ऐसे कण जिनका व्यास/डायामीटर
10 माइक्रोमीटर
या उससे कम है), 1,680
माइक्रोग्राम
प्रति क्यूबिक
मीटर के साथ, विश्व
में दिल्ली के
अन्दर सबसे ज्यादा
है |
पेरिस
में - जब पी.एम.10, हवा
के कणों में 80 माइक्रोग्राम
प्रति क्यूबिक
मीटर से अधिक थे, पेरिस
में 10 साल में सबसे
खराब वायु प्रदूषण
माना गया था, पब्लिक
ट्रांसपोर्ट को
शुल्क-रहित कर
दिया था |
हमारे
जल और भूमि दुनिया
के अन्य देशों
की तुलना में सबसे
अधिक प्रदूषित
हैं | क्यों
?
क्योंकि
अन्य देशों के
पास अच्छे सिस्टम
जैसे जूरी सिस्टम, विभिन्न
पदों पर राईट टू
रिकॉल आदि हैं, जो
कंपनियों को भ्रष्ट
अधिकारीयों के
साथ सांठ-गाँठ
बनाने से और भ्रष्टाचार-विरोधी
कानूनों को तोड़ने
से रोकते हैं | क्योंकि
नौकरी से बदलने
का कानून ये सुनिश्चित
करेगा कि 99% अधिकारी
अपना बर्ताव सुधार
लें और भ्रष्टाचार-विरोधी
कानूनों को तोड़ने
वाली कंपनियों
के खिलाफ कार्यवाही
करें | जूरी
सिस्टम, जिसमें
15-1500 नागरिक क्रमरहित
तरीके से चुने
जाते हैं जो जजों
के स्थान पर फैसला
देते हैं, जिससे
मामलों की सुनवाई
जल्दी और न्यायपूर्ण
होती है, नागरिकों
द्वारा कम समय
में सजा होने का
एक भय पैदा कर देता
है |
रिकॉल
प्रक्रियाओं और
जूरी सिस्टम पर
अधिक जानकारी के
लिए कृपया smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 6, 21
देखें |