भारतीय भाषाओँ का बढ़ावा – कुछ प्रस्ताव

भारतीय भाषाओँ का बढ़ावा – कुछ प्रस्ताव

A. संक्षिप्त भूमिका

हम अक्सर देखते हैं कि राजनीतिग्य और कार्यकर्ता किसी भाषा पर शोर मचाते हैं. कार्यकर्ता चाहता है कि उसकी प्रिय भाषा को बढ़ावा करे और ये चाहता है कि उसकी प्रिय भाषा दूसरी भाषाओँ पर हावी रहे (वर्चस्व) और प्रशासन, स्कूल, ऑफिस और कोर्ट में प्रयोग हो. लेकिन पहले हम ये समझते हैं कि किसी भाषा के हावी होने के कौनसे कारण हैं.

B. किसी भाषा के वर्चस्व (हावी होना) या गैर-वर्चस्व के कारण

संक्षिप्त में, एक भाषा का दूसरी भाषाओँ पर हावी होने में जो कारण मदद करते हैं, उन्हें दो वर्ग में बांटा जा सकता है – कारण जो उस भाषा की मांग बढ़ाते / कम करते हैं और कारण जो उस भाषा की सप्लाई (पूर्ति)  बढ़ाते / कम करते हैं –

a. भाषा की मांग – कुछ कारण जो किसी भाषा की मांग स्वाभाविक रूप से या कृत्रिम रूप से बढ़ाते हैं – भाषा बोलने वालों की सैनिक और आर्थिक शक्ति, क्या उस भाषा के बोलने वाले प्रशासन और कोर्ट में उच्च पद पर हैं, भाषा के बोलने वालों की जनसंख्या, वैज्ञानिक और तकनिकी सिस्टम जैसे फिल्म, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग आदि में उस भाषा का प्रयोग, और दूसरी बाजार के तत्व.

b. भाषा की सप्लाई – कुछ कारण जो किसी भाषा की सप्लाई बढ़ाते हैं – उस क्षेत्र का शिक्षा प्रणाली जनसमूह को कितने प्रभावशाली तरीके से भाषा के शब्द सिखा पाती है.

हम इन कारण को कुछ उदाहरण के साथ समझते हैं –

a. भाषा की मांग सम्बंधित कारणों के उदाहरण  –

a1. भाषा बोलने वालों की सैनिक और आर्थिक शक्ति – उदाहरण –  एक  समय अंग्रेजों का राज्य पूरी दुनिया में था जिससे अंग्रेजी भाषा का चलन बड़े पैमाने पर फैला. अमेरिका, चीन जैसे देश जो विश्व के बाजार में अपना माल जैसे इलेक्ट्रानिक्स बना कर बेचते हैं, ऐसे देश अपनी भाषा को अधिक प्रभावशाली तरीके से फैला पाते हैं.

a2., a3. किसी भाषा के बोलने वालों का प्रशासन, कोर्ट में पद, भाषा बोलने वालों की जनसंख्या   –

हमारे देश के अधिकतर प्रदानमंत्री उत्तर प्रदेश से रहे हैं जहाँ हिंदी प्रचलित है जिससे पूरे देश में हिंदी का प्रभुत्व बढ़ा. इसके अलावा, हिंदी देश की 60% जनसँख्या द्वारा समझी जा सकती है.

a4. कोई भाषा वैज्ञानिक और तकनिकी सिस्टम जैसे फिल्म, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग आदि में कितनी प्रयोग की जाती है –

पूरी देश और देश के बहार भी बोली-वूड की फिल्में काफी व्यापार करती हैं और फिल्मों द्वारा हिंदी भाषा का बढ़ावा होता है.

a5. दूसरे बाजार के तत्व

दूसरे बाजार के तत्व भी किसी भाषा की मांग बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं . उदाहरण – अंग्रेजी फॉण्ट यूनिकोड फॉण्ट की तुलना में कम बिट जगह लेते हैं, इसीलिए भारतियों भाषाओँ में भेजा गया एस.एम.एस अंग्रेजी में भेजे गए एस.एम.एस. से 2-3 गुना अधिक जगह लेता है. इस कारण से अंग्रेजी या अंग्रेजी लिपि में एस.एम.एस भेजना का प्रचालन है. इसी प्रकार यूनिकोड में लेख-सामग्री गैर-यूनिकोड में लेख-सामग्री से 2-3 गुना अधिक डिस्क की जगह लेते हैं.

b. भाषा की सप्लाई पर प्रभाव डालने वाले कारण का उदाहरण –

इस्राएल में पूरी दुनिया से यहूदी जो अलग-अलग भाषा बोलते थे, वे आकर इस्राएल में बसने लगे. और पुरातन हिब्रू , जो यहूदियों की भाषण थी, उसको कोई बोलता नहीं था और उसमें आजके प्रयोग किये जाने वाले चीजों के लिए शब्द भी नहीं थे. तो इस्राएल के लोगों ने आपस में संपर्क करके एक नयी हिब्रू भाषा बनाई. लेकिन केवल नयी भाषा बनाना पर्याप्त नहीं था. इस्रैलों ने एक पारदर्शी, प्रभावशाली और कम भ्रष्ट शिक्षा प्रणाली बनाई जिसके द्वारा नयी हिब्रू के शब्द इस्राएल के जन-जन तक पहुंचाए गए.

C. भारतीय भाषाओँ का बढ़ावा करने के लिए हमारे प्रस्ताव

  1. हरेक राज्य के मतदाता टी.सी.पी. मीडिया पोर्टल द्वारा उस राज्य की आधिकारिक भाषा कौनसी होनी चाहिए, उसके बारे में निर्णय कर सकेंगे. हरेक राज्य के मतदाता टी.सी.पी. मीडिया पोर्टल द्वारा 3 भाषा चुनेंगे जो उस राज्य के स्कूलों में पढाई जानी चाहिए और जो उस राज्य के सरकारी दफ्तरों और कोर्ट में प्रयोग होनी चाहिए. कृपया टी.सी.पी. मीडिया पोर्टल के बारे में अधिक जानने के लिए लिंक देखें –  यहाँ.
  2. दो भाषों में स्कूल की पुस्तकें और सरकारी दस्तावेज – जब टी.सी.पी. मीडिया पोर्टल द्वारा, राज्य के मतदाता ये निर्णय कर लेते हैं कि कौनसी भाषों का अधिकारिक रूप से प्रयोग होगा, तो स्कूल की पुस्तकों को दो भाषा वाली बनाया जा सकता है जिसमें एक पेज पर लेख-सामग्री एक भाषा में होगा और उसके बाद वाले पन्ने पर वोही लेख-सामग्री दूसरी भाषा में होगी. इसी प्रकार सरकारी दस्तावेज जैसे कानून आदि भी होंगे.
  3. हमने 100% भारतियों द्वारा स्वदेशी निर्माण का बढ़ावा करने के लिए कुछ प्रस्ताव किये हैं. कृपया इसकी अधिक जानकारी का लिंक देखें यहाँ.

शिक्षा सुधार

गणित, कानून आदि की शिक्षा में सुधार करना

टी.सी.पी. (प्रस्तावित नागरिक प्रामाणिक मीडिया पोर्टल) द्वारा कार्यकर्ता निम्नलिखित पर जनता की राय इकठ्ठा कर सकते हैं :

  1. प्रस्तावित टी.सी.पी. का उपयोग करके इन कानूनों को राजपत्र में छपवाया जाये – जिला शिक्षा अधिकारी, राज्य शिक्षा मंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री और विश्वविधालय उपकुलपति आदि पर राईट टू रिकॉल की प्रक्रिया
  2. गणित और अन्य महत्वपूर्ण विषयों की शिक्षा में सुधार हेतु टी.सी.पी. का उपयोग करके सात्य प्रणाली कानून को राजपत्र में छपवाया जाये
  3. कानून की शिक्षा छटवीं कक्षा से देना शुरू किया जाए ; कर-कानूनों की शिक्षा जिसमें आय विवरण भरने की जानकारी हो, दी जाए
  4. सभी को हथियारों के प्रयोग की शिक्षा भी दी जाए
  5. सब्सिडी (आर्थिक सहायता) कॉलेजों के बजाय सीधे छात्रों को दी जाए
  6. सभी विषयों जैसे गणित, विज्ञान, भूगोल, कानून-ड्राफ्ट आदि के लिए दो भाषाओं (अंग्रेजी, हिंदी या क्षेत्रीय भाषा) में पुस्तकें दी जायें
  7. यदि छात्र चाहें तो उन्हें वैकल्पिक परीक्षाएँ अंग्रेजी में देने की अनुमति दी जाए

कृपया जानकारी के लिए का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय 30 देखें या हमसे संपर्क करें |

व्यसन सुधारना

शराब सेवन और नशे की लत और सम्बंधित अपराधों को कम करना 

आजकल, बहुत से मुख्मंत्री इस समस्या का हल शराबबंदी और यहाँ तक की हलकी औषध जैसे भांग आदि को बंद करके निकाल रहे हैं. लेकिन इसका नतीजा सिर्फ मेथानोल मिली हुई शराब की अवैध तस्करी और अवैध बिक्री होता है जिसका परिणाम ऐसी मिलावटी शराब का सेवन करने वालों की मौत और भयंकर बीमारी होता हैं जबकि राज्य नशा-मुक्ति केन्द्रों की हालत बहुत खराब है.

अफीम, हशिस और अन्य कम नशे वाली औषधियां, मानसिक रोगों की औषध की जरुरत को कम करती हैं |

अफीम दर्द निवारक दवायों की भी जरुरत को कम करता है. इसलिए दवा बनाने वाली कंपनियों के मालिकों ने प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों को रिश्वत देकर अफीम, हशिस के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा किया और फिर उन्होंने सांसदों को पैसा देकर अफीम और हशिस को बंद करने का कानून बनवाया. अफीम और हशिस पर बैन से पुलिसवालों, मंत्रियों और जजों आदि को मिलने वाला घूस का पैसा भी पहले से बढ़ जाता है. इसका दुष्प्रभाव ये हुआ कि अफीम और हशिस का दाम 100 गुना बढ़ गया और तब अफीम की लत वाले व्यक्ति को चोरी जैसे अपराधों का सहारा लेना पड़ा और इसका नतीजा अफीम खरीदने के लिए हिंसा करना.

लेकिन यदि अफीम को कानूनी मान्यता दे दी जाए, तो अफीम चाय और कॉफी से भी सस्ती हो जायेगी और किसी को अफीम खरीदने के लिए हिंसा का सहारा नहीं लेना पड़ेगा. अफीम पर प्रतिबन्ध लगने से ज्यादा हानिकारक ड्रग्स जैसे स्मैक आदि का अधिक इस्तेमाल होता है क्योंकि ये प्रति घन सेंटीमीटर मात्रा में ज्यादा नशा देती है. और क्यों मात्रा का घन सेंटीमीटर एक कारक बन जाता है ? क्योंकि जब किसी वास्तु पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो फेरीवाले (बेचनेवाले) का फायदा क्यूबिक सेंटीमीटर मात्रा पर ज्यादा निर्भर करता है और ढुलाई लागत पर नहीं. स्मैक आदि जैसे नशीले पदार्थ क्यूबिक सेंटीमीटर में कम स्थान लेते हैं और इसलिए ये फेरीवाले के लिए अफीम से ज्यादा सस्तें होतें है. इससे नशेबाजों का स्वास्थ्य और भी खराब हो जाता हैं और दवा बेचने वाली कंपनियों की बिक्री बढ़ जाती हैं. इसके अलावा, अफीम पर रोक लगने से तम्बाकू की बिक्री और कैंसर बढ़ जाता है | इससे दवा बेचने वाली कंपनियों की बिक्री और बढ़ जाती हैं. इसलिए कुल मिलाकर, अफीम पर रोक से केवल दवा बेचने वाली कंपनियों, भ्रष्ट पुलिसवालों, जजों, मंत्रियों को फायदा होता और नशेबाजों को यह बर्बाद कर देता है और समाज में अपराध की दर भी बढ़ती है.

क्या चरस को कानूनी मान्यता देने से अपराध घटेंगे या बढ़ेंगे ? एक सच्चे उदहारण के रूप में, नीदरलैंड ने अफीम को कानूनी मान्यता दे दी और इससे गंभीर अपराधियों की संख्या जनवरी-2002 में 14,000 से कम होकर जनवरी-2009 में 12,000 हो गयी. नीदरलैंड विश्व के कुछ ऐसे देशों में से है जहाँ उच्च सुरक्षा वाले जेलों को अब बंद किया जा रहा है.

नीदरलैंड मॉडल पुर्तगाल जैसे दूसरे देशों ने भी अपनाया और उन्हें भी समान परिणाम मिले. नीदरलैंड आदि देशों ने अफीम को कानूनी मान्यता देने के साथ साथ नशा मुक्ति केन्द्रों में सुधार किया.

तो क्या हमें अफीम को कानूनी मान्यता देनी चाहिए? हम टी.सी.पी. (प्रस्तावित नागरिक प्रामाणिक मीडिया पोर्टल) द्वारा इस मुद्दे पर जनता का मत लेने का प्रस्ताव करते हैं. जब अफीम की कानूनी-मान्यता जनता मत के लिए रखी जाएगी, अधिकाँश नागरिक महसूस करेंगे कि अफीम पर रोक नशेबाजों के सेहत को खराब कर रही है और गैर नशेबाजों की संपत्ति और जीवन पर खतरा बढ़ा देती है. इसलिए अधिकतर नशेबाज हां पर सहमत होंगे और ऐसा ही उनके परिवार के सदस्य और गैर नशेबाज करेंगे. और तब बिना किसी घृणा (बदनामी) के अभियान के ही अफीम कानूनी रूप से वैध हो जाएगी.

कानून-निर्माण प्रक्रिया सुधार

कानून बनाने (के कार्य) में समस्‍याएं

अभी, कानून-बनाने की प्रक्रिया में मूल रूप से दो समस्याएं हैं –

  1.   पहली समस्‍या : सांसद, विधायक आदि वैसे कानून नहीं बनाते जैसा हम नागरिक चाहते हैं. उदाहरण : सांसदगण `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ कानून लागू करने से मना/इनकार करते हैं, जिस कानून से हम आम लोगों को `आई.आई.एम.ए.`प्‍लॉट, हवाई अड्डों आदि जैसे सरकारी प्‍लॉटों से जमीन का किराया मिल सकता था. इसी प्रकार, सांसदों ने प्रजा अधीन – सुप्रीम-कोर्ट के जज, प्रजा अधीन – हाई-कोर्ट के जज, प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन-मुख्यमंत्री  आदि कानून लागू करने से मना/इनकार कर दिया है.
  2.   सांसद वैसे कानून बनाते हैं जो नागरिकगण नहीं चाहते है. उदाहरण – जब बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनियां सांसदों को घूस देती हैं तो सांसद पेटेंट कानून लागू करते हैं जो दवाइयों की कीमत कई गुना बढ़ा देती है.

क्‍यों सांसद, विधायक ऐसा बर्ताव करते हैं ? केवल भ्रष्‍टाचार के कारण, इसका और कोई कारण नहीं है. सांसद और विधायक कुछ कानूनों को पास न करने के लिए घूस लेते हैं और कुछ कानूनों को पास/पारित करने के लिए घूस लेते हैं. नागरिकों के पास उन्‍हें झेलते के अलावा और कोई चारा नहीं है क्‍योंकि नागरिक इन्‍हें हटा नहीं कर सकते और ना ही कानून आदि ही बदल सकते हैं.

पहली समस्‍या का समाधान

यदि टी.सी.पी. (प्रस्तावित नागरिक प्रामाणिक मीडिया पोर्टल) प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री द्वारा भारतीय राजपत्र में डाल दिया जाता है, तो नागरिक आपस में प्रभावशाली तरीके से दूसरे नागरिकों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं और आम्म-राय पर सहमति बना सकते हैं कि उन्हें राजपत्र में क्या चाहिए और उन्हें राजपत्र में क्या नहीं चाहिए.

टी.सी.पी, राईट टू रिकॉल – प्रधानमंत्री और राईट टू रिकॉल – सांसद कानून पहली समस्‍या का समाधान कर देते हैं. यदि सांसद कानून बनाने/लागू करने पर राजी नहीं होते तो टी.सी.पी. का प्रयोग करके नागरिक प्रधानमंत्री/सांसदों को उस कानून को लागू करने के लिए बाध्‍य कर सकते हैं. और राईट टू रिकॉल – प्रधानमंत्री, राईट टू रिकॉल – सांसद का प्रयोग करके नागरिक उन प्रधानमंत्री व सांसदों को निकाल सकते हैं, जो सहयोग नहीं कर रहे हैं. इसलिए, यह समस्‍या कि सांसद `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’  , प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि जैसे कानून लागू नहीं कर रहे हैं, का समाधान ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ से हो सकता है.

दूसरी समस्‍या का समाधान

कई बार, हम देखते हैं कि बहु-राष्‍ट्रीय कम्‍पनियां आदि सांसदों को घूस दे देती हैं और कानून पास करवा लेती हैं. उदाहरण – 2005 में, भ्रष्ट सांसदों ने ऐसे पेटेंट कानून पारित किये जिनसे दवाइयों की कीमत बढ़ गयी और उस कानून को पारित करने के लिए नागरिकों से कोई भी स्वीकृति नहीं ली गयी थी.

इस समस्‍या को कम करने के लिए हम क्‍या प्रस्‍ताव कर रहा हैं ?

कानून बनाने में, कोई भी कानून प्रधानमंत्री के अनुमोदन के बिना शायद ही कभी पारित होता है. सर्वाधिक भ्रष्‍ट कानून भी प्रधानमंत्री के सहयोग से ही पास होता है। आज की स्‍थिति के अनुसार, प्रधानमंत्री नागरिकों की परवाह नहीं करते क्‍योंकि नागरिकों के पास प्रधानमंत्री को हटाने/बदलने की कोई प्रक्रिया नहीं है। इसलिए राईट टू रिकॉल – प्रधानमंत्री कानून प्रधानमंत्री को भ्रष्‍ट कानूनों को पास करने से रोकेगा. और राईट टू रिकॉल – सांसद (कानून) सांसदों को भी भ्रष्‍ट कानून पारित करने से रोकेगा.

इसके अलावा, प्रस्तावित कानूनों में से एक कानून है कि जूरी की सहमति से सांसद तथा प्रधानमंत्री स्वेच्छा से अपने पर पब्लिक में नार्को जांच करवाने की मांग कर सकते हैं.  यह कानून सांसदों/प्रधानमंत्री द्वारा घूस लेकर कानून पास करने में भयंकर रूकावट पैदा करेगा.

इसके अलावा, मान लीजिए, सांसद और प्रधानमंत्री अभी भी बहु-राष्‍ट्रीय कम्‍पनियों से घूस लेकर या अन्‍य कारणों से किसी भ्रष्‍ट कानून को पारित करने का साहस करते हैं, तो राईट टू रिकॉल – सुप्रीम कोर्ट जज और राईट टू रिकॉल – हाई कोर्ट जज कानून इस बात की संभावना बढ़ा देगा कि सुप्रीम कोर्ट के जज और हाई कोर्ट के जज ऐसे कानून को तत्‍काल रद्द कर देंगे क्‍योंकि उन्‍हें भी यह चिन्‍ता रहेगी कि ऐसा न करने पर नागरिक उन्‍हें ही हटा/बदल देंगे.

टी.सी.पी. स्‍वयं ही इस बात की संभावना कम कर देता है कि सांसद और विधायक घूस लेकर किसी कानून को लागू भी करेंगे. क्‍योंकि मान लीजिए, कोई कम्‍पनी किसी कानून को लागू कराने के लिए हर सांसद को 1 करोड़ रूपए घूस देती है जिसका कुल योग 800 करोड़ रूपया होता है. अगले ही दिन, नागरिक टी.सी.पी. का प्रयोग करके उस कानून को रद्द कर सकते हैं और इस प्रकार वह कम्‍पनी अपने सभी 800 करोड़ रूपए से हाथ धो बैठेगी और वास्‍तव में उसे कुछ भी नहीं मिलेगा.

इन सभी सुरक्षा उपायों को देखते हुए, इस बात की संभावना अब नहीं रह जाती है कि सांसद घूस लेकर कानूनों को लागू करेंगे.

अधिक जानकारी के लिए कृपया ये लिंक देखें – For more details, please see smstoneta.com/prajaadhinbharat और tinyurl.com/NarcoJury

सामाजिक सुरक्षा

नागरिकों और सेना के लिए खनिज आमदनी (एम.आर.सी.एम) का ड्राफ्ट एक ऐसी प्रशासनिक प्रक्रिया बताता है जो एक राष्ट्रीय स्तर का अफसर (जो नागरिकों द्वारा बदला जा सकेगा) को अधिकार देगा कि वो पब्लिक जमीनों के किराये और खदानों की आमदनी को सीधे नागरिकों के बैंक खाते में जमा करवा सकता है . ये कानून नागरिकों को देश के प्राकृतिक संसाधनों पर उनके वास्तविक अधिकार और विरासत के हिस्से का पैसा देगा. ये कानून लागू होने पर कुछ ही महीनों में गरीबी दूर होगी और सेना शक्तिशाली होगी और हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा देगा.

ये पैसा कितना होगा ? ये इसपर निर्भर करता है कि उस समय जमीन का किराया कितना होगा और उस समय खनिज रोयल्टी (आमदनी) कितनी होगी – अंदाज से ये राशि प्रति व्यक्ति प्रति महीना 200 रुपये से 800 रुपये तक हो सकती है.

अथर्वेद कहता है : अहम रस्थ्रिम वसुनम संगामी अर्थात मैं राष्ट्र सभी प्रक्रित्रिक संसाधनों का मालिक हूँ. अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति, थॉमस जैफरसन ने कहा था –

“ये एक विवादस्पद प्रश्न है कि क्या किसी भी प्रकार की संपत्ति की उत्पत्ति सिर्फ प्रकृति से हुई हैं… इसे उन लोगों ने माना है जिन्होंने इस विषय को गंभीरता से लिया है कि एक एकड़ भूमि में अलग संपत्ति पर भी एक व्यक्ति विशेष का प्राकृतिक अधिकार नहीं है. एक सर्वव्यापी कानून के अनुसार, दरअसल, कोई भी चल या अचल (संपत्ति) सभी जन का सामान रूप से उस पर मालिकाना हक है . जिसका इस संपत्ति पर अभी कब्जा है, अभी के लिए वो संपत्ति उसकी है, लेकिन जब वो ये कब्जा छोड़ देता है, तो उसकी मालिकाना हक समाप्त हो जाता है…” 1813 में इसॉक मैकफरसन को थॉमस जैफरसन कहते हुए.

अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें – brvp.org/mrcmparcha.kendra और brvp.org/mrcmparcha.rajya

नैतिक मूल्य सुधारना

नैतिक आदर्शों, राष्ट्रीय चरित्र और नैतिक शिक्षा सुधारना

आज, जन्म से एक नागरिक देखता है और सीखता है कि भ्रष्ट कम मीडिया साधन और कम कनेक्शन वाले व्यक्ति द्वारा जमा किये गए सबूत, शिकायत आदि को आसानी से दबा सकते हैं । नागरिक देखता है कि भ्रष्ट आसानी से भ्रष्ट पुलिस,भ्रष्ट जजों और भ्रष्ट नेताओं आदि के साथ सांठ गाँठ कर सकते हैं | इस सांठ-गाँठ की मदद से भ्रष्ट अपना कम निकलवा लेते हैं और उनको सज़ा नहीं होती | और जब तक वे मर नहीं जाते हैं उन पर मामलें सालो के लिए चलते रहते हैं । तो,एक युवा नागरिक सीखता है कि ईमानदार होना से भ्रष्ट होना अधिक फायदेमंद है |

नैतिक मूल्यों, राष्ट्रीय चरित्र और नैतिक शिक्षा में सुधार तभी होगा यदि पुलिस, अदालतों में कम अन्याय और तेजी के साथ मामलों का निपटारा होता है । एक ऐसा देश, जहां पुलिस और अदालत जानबूझकर मामलों में देरी और अन्यायपूर्वक करते है, वहाँ नैतिकता कम रहेगी, चाहे कितना भी प्रचार किया और सिखाया जाता है । एक बार जब हम आमजन सुनिश्चित करेंगे कि पुलिस / अदालत निर्दोष लोगों को परेशान नहीं कर रहे हैं और दोषी को छोड़ते हैं, अपराध, भ्रष्टाचार, पक्षपात और अत्याचार कम हो जायेगा, नैतिक मूल्यों और नैतिक शिक्षा में अपने आप सुधार होगा ।

हम भारत में नैतिक शिक्षा में सुधार करने के लिए निम्नलिखित राजपत्र ड्राफ्ट प्रस्ताव कर रहे हैं-

  1. पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव प्रणाली – यह नागरिक मीडिया पोर्टल के द्वारा नागरिक यदि चाहे तो अपने सबूत, शिकायत आदि की कॉपी अपने मतदाता संख्या के साथ, प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर रख सकतें हैं | इससे यह सुनिश्चित होगा कि जमा किये गए सबूत, शिकायत आदि को आसानी से दबाया नहीं जा सके । अगर यह कानून राजपत्र में डाला जाता है, तो लोगों को सीख मिलेगी कि बुरे काम जैसे अपराध, भ्रष्टाचार करने पर वे जनता में सबूत के साथ बेनकाब हों सकते हैं और उन्हें बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा । पिछले भाग में इस प्रस्ताव की अधिक जानकारी देखें ।
  2. जूरी सिस्टम, जजों पर राईट टू रिकॉल – इससे फैसले जल्दी और न्यायपूर्ण आयेंगे । यह व्यक्ति को सिखायेगा कि कानून तोड़ने और समाज को नुकसान पहुँचाने पर सजा मिलेगी और व्यक्ति के लिए एक नुकसान होगा ।
  3. राईट टू रिकॉल पुलिस प्रमुख, पुलिसकर्मियों पर जूरी सिस्टमनौकरी जाने के डर के कारण पोलिस-कर्मी जमा किये गए सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे और सही से जांच करेंगे |
  4. मंत्रियों की तरह अन्य महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर रिकॉल – यह नागरिक को सिखायेगा कि अनैतिक व्यवहार करने से नौकरी जा सकती है |
  5. कानून को विषय के रूप में सिखाना – कानून-ड्राफ्ट को छात्रों के लिए एक विषय के रूप में सिखाना चाहिए | किस काक्षसे कानून सिकाने की शुरुवात होगी, माता-पिता की स्वीकृति से निर्णय किया जायेगा । इससे छात्र को यह जानने में और तय करने में मदद मिलेगी कि कौन सा कानून नैतिक है और कौन सा अनैतिक है ताकि वे सरकारी कर्मचारियों को अनैतिक कानूनों को हटाने के लिए निर्देश कर सकें ।

कृपया अधिक जानकारी के लिए का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय 66 देखें या हमसे संपर्क करें

पोलिस सुधार

भारतीय राजनीती विकल्प पार्टी निम्नलिखित प्रशासनिक बदलाव पुलिस में प्रस्तावित करती हैं :

  1. ऐसे कानून लागू करना जिससे नागरिकगण जिला पुलिस कमिश्नर को बदल सकें
  2. पुलिस कर्मचारियों पर जूरी सिस्टम : नागरिकों कों एक पुलिसकर्मी को निकलने और जुर्माना लगाने का अधिकार
  3. जमीनों पर संपत्ति-कर का उपयोग करके, पुलिस कर्मचारियों की संख्या तीन गुना करना
  4. जमीनों पर संपत्ति-कर का उपयोग करके, पुलिस कर्मचारियों की तनख्वाह दोगुना करना
  5. राष्ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली बनाना जिससे अपराधियों को पकड़ने और उनका रिकॉर्ड रखने में सुधार हो
  6. सभी अपराधिक रिकॉर्ड और सभी पुलिस थानों का कंप्यूटरीकरण करना
  7. सभी पुलिसकर्मियों, हवलदार से लेकर डी.आई.जी. तक की संपत्ति और उनके नजदीकी रिश्तेदारों की संपत्ति का इन्टरनेट पर खुलासा करना

कृपया जानकारी के लिए का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय 22 देखें या हमसे संपर्क करें

कृषि सुधारना

कृषि और राशन कार्ड में सुधार करना

  1. राष्ट्रीय / राजकीय कृषि मंत्री और राष्ट्रीय / राजकीय सिंचाई मंत्री पर राईट टू रिकॉल कृषि और सिंचाई में भ्रष्टाचार कम करेगा
  2. राईट टू रिकॉल-कृषि मंत्री कोल्ड स्टोरेज की संख्या और वेयरहाउस में सुधार करेगा | इससे अन्न की बर्बादी कम होंगी
  3. समर्थन मूल्यों में वृद्दि करें | इससे किसानों को नहर के रख रखाव और पानी के शुल्क भरने में सहायता होंगी
  4. कृषि के लिए पानी का मीटर लगाना और पानी पर सब्सिडी हटाना, पानी की बर्बादी को कम करेगा, पानी की आपूर्ति सुधरेगा और पानी के कटाव को भी कम करेगा
  5. हानिकारक कीटनाशकों को प्रतिबंधित करें और सभी कीटनाशकों पर आर्थिक छूट रद्द करें | समर्थन मूल्यों में वृद्दि करने से बड़ी हुई कीमतों से सुरक्षा मिलेगी
  6. सभी कृषि उत्पादों जिसमें बासमती, माँस, अंडे, दूध, कपास आदि शामिल हों, का निर्यात प्रतिबंधित हो
  7. जत्रोपा खेती को प्रतिबंधित करें | हमारे पास अन्न पैदा करने के लिए पर्याप्त जमीन और पानी नहीं हैं और 4-अंक बौद्धिक स्तर वाले लोग ऐसी फसल की खेती चाहते हैं जिससे कार मलिकों को डीजल सस्ते में मिल सके
  8. चिकन, अंडो और मांस उत्पादन को दी जाने वाली सभी आर्थिक छूट बंद हो | इससे इन्हें पालने के लिए लगने वाली अनाज की खपत आदि कम होंगी, क्योंकि 1 किलोग्राम माँस के लिए जितना पानी/जमीन चाहिए इतना ही बराबर 20 किलोग्राम गेंहूँ के लिए चाहिए
  9. रासायनिक खाद पर आर्थिक सहायता (सब्सिडी) 20% प्रति वर्ष की दर से समाप्त करें और समर्थन मूल्य बढ़ाएँ जिससे किसान को जैविक खाद की कीमत की भरपाई कर सकें
  10. डीजल पर आर्थिक सहायता (सब्सिडी) 20% प्रति वर्ष की दर से समाप्त करें | समर्थन मूल्य बढ़ाएँ जिससे बढ़ी हुई कीमतों की भरपाई हों
  11. बिजली पर सभी आर्थिक सहायता (सब्सिडी) 20% प्रति वर्ष की दर से समाप्त करें. समर्थन मूल्य बढ़ाएँ जिससे बढ़ी हुई कीमतों की भरपाई हों
  12. ट्रेक्टरों पर आर्थिक सहायता (सब्सिडी) 20% प्रति वर्ष की दर से समाप्त करें और समर्थन मूल्य बढ़ाएँ जिससे किसान कों ट्रेक्टर और/या बैलों को खरीदने के लिए जो खर्च सहना पड़ेगा, उसकी भरपाई हों
  13. राईट टू रिकॉल-जिला आपूर्ति अधिकारी कानून लाकर राशन कार्ड प्रणाली सुधारें और नागरिकों को राशन कार्ड मालिक बदलने का विकल्प दिया जाए
  14. राशन कार्ड प्रणाली में दालों को जोड़ें
  15. राशन कार्ड प्रणाली में देसी गाय के दूध को जोड़ें
  16. 2% कृषि भूमि कर (टैक्स) लगाएं 5 एकड़ से ऊपर जमीन वाले प्रति किसान परिवार के सदस्य पर | किसान परिवार सदस्य वह व्यक्ति मन जायेगा जिसकी गैर-कृषि आय प्रति वर्ष रू 2,00,000 से कम होंगी और वह उस गाँव में उसी भूमि पर कम से कम उस साल में 180 दिन निवास कर रहा हों. इससे अनुपस्थित जमींदारी कम होंगी और अनुपस्थित जमींदारी में गिरावट से प्रति एकड़ उत्पत्ति में वृद्दि से होगी
  17. नागरिक आपूर्ति (राशन कार्ड) मंत्री और जिला आपूर्ति अधिकारी पर राईट टू रिकॉल राशन कार्ड विभाग में भ्रष्टाचार कम करेगा
  18. नागरिक आपूर्ति (राशन कार्ड) विभाग के सभी रिकॉर्डों का सम्पूर्ण कंप्यूटरीकरण और इन रिकॉर्डों को नेट पर रखना
  19. राशन कार्ड दुकानों को उपभोगताओं के साथ एस.एम.एस. द्वारा जोड़ना
  20. मानवों के खाने योग्य अनाज का उपयोग जानवरों के भोजन के लिए प्रतिबंधित करना
  21. मिलावट के आरोपी वाले मामलों के लिए जूरी सुनवाई और तुरंत और न्यायपूर्ण फैसले के लिए आरोपी पर जूरी सदस्यों की सहमति से पब्लिक में नार्को टेस्ट लेना
  22. दूध की थैली/डिब्बे पर स्पष्ट लेबल होगा कि दूध गाय का है या भैंस का. साथ में यह भी लिखा होगा कि दूध “ देसी गाय” का है या “गीर गाय” या “जर्सी गाय” का
  23. दूध की थैली / डिब्बे पर स्पष्ट लेबल होगा कि दूध में प्रोटीन और वसा की मात्रा और भारतीय मेडिकल कौंसिल के अनुसार उस वसा लेवल से दिल के दौरे की संभावना भी लिखी होंगी | इस तरह से भैंस के दूध की खपत में कमी भी आएगी
  24. शहरों में 10,000 से 30,000 तक की आबादी वाले हर बस्ती में कम से कम एक गौशाला जरुर होनी चाहिए | इस तरह शहरों में हर एक वार्ड में 1-2 गौशाला हो जाएगी
  25. राशन कार्ड दुकानों के माध्यम से रियायती दरों पर गाय का दूध बेचना (राशन कार्ड दुकानों के माध्यम से लगभग 100 मिली देसी गाय का दूध प्रति व्यक्ति प्रति दिन उसके कीमत और 7% मुनाफे के साथ खरीदा जायेगा और 50% कम मूल्य पर बेचा जायेगा)
  26. राशन कार्ड दुकान मालिक खाना और दूध घर पर पहुंचा सके ऐसी व्यवस्था लाना | उपभोगता कीमत नकद या किसी वास्तु द्वारा भुगतान कर सकेगा

कृपया जानकारी के लिए का smstoneta.com/prajaadhinbharat अध्याय 44.4 देखें या हमसे संपर्क करें

पब्लिक पैसों के खर्चे में पारदर्शिता

नागरिक-प्रामाणिक, पारदर्शिता सरकारी वेबसाईट

यदि हम सत्ता में आये, तो हम नागरिक-प्रामाणिक, पारदर्शिता सरकारी वेबसाईट लागू करेंगे, जिसमें पब्लिक पैसों के खर्चे के बारे में विस्तृत जानकारी दिखाई गयी हो, जैसे नीचे उदाहरण के साथ बताई गयी है. और यदि हम सत्ता में नहीं भी आते, तो भी हम इन्टरनेट पर जनसमूह के वोटर नंबर समर्थन के आधार पर अफसरों पर दबाव डालेंगे  कि इस प्रकार की नागरिक-प्रामाणिक वेबसाईट बनाएँ.

A. भूमिका और समस्या

आज देश में नागरिकों से टैक्स आदि लिया जाता है. और नागरिकों के उस पैसे से प्रशासन और कोर्ट आदि का खर्चा चलता है. और नागरिकों को सरकार के काम-काज का आंकलन करना होता है, जहाँ पर गडबडी हो, उसकी शिकायत करनी होती है ताकि गलत व्यक्ति गलत नहीं करे. अब कोई नागरिक या कोई कार्यकर्ता तभी सही से आंकलन कर सकता है जब उसके पास पर्याप्त जानकारी हो. लेकिन अधिकतर देखा जाता है कि सरकारी दस्तावेजों को नागरिक देख भी नहीं सकते.

नागरिकों के पास विभिन्न केन्द्रीय और राज्य के विभागों सूचना के अधिकार के अफ्सोरों के पास सूचना प्राप्त करने के लिए अर्जी देने का विकल्प तो है, लेकिन इस प्रक्रिया की काफी सीमाएं हैं.

एक उदाहरण देखते हैं –

2015 में एक सूचना अधिकार अर्जी दर्ज हुई थी जिसमें सलमान खान के गाडी से लोगों को मार कर भाग जाने वाले मामले पर सरकार ने कितना खर्चा किया था, उसकी विस्तृत जानकारी मांगी गयी थी. जवाब आया कि फाइलें 2012 में जल गयी, इसलिए ये जानकारी नहीं दी जा सकती !! और सरकार इस जानकारी को फिर से प्राप्त करने में भी असफल रही है !! और तो और, अपराधिक तत्व सूचना अधिकार के कार्यकर्ताओं को मार कर भी मामले को दबाने का प्रयास करते हैं.

एक दूसरा उदाहरण देखते हैं –

आज ये आम बात है कि रोड बनता हैं और कुछ एक-आध साल बाद घटिया माल डालने के कारण वो टूट जाता है. जगह जगह गडडों के कारण दुर्घटना होती है और लोगों की जान भी जाती है. रोड के टेंडर को किसको दिया गया और किस अफसर ने दिया, ये नागरिकों को पता नहीं होता. नागरिकों को ये भी नहीं पता होता कि रोड निर्माण की जांच किन अफसरों ने की या किन अफसरों ने कितना पैसा किस ठेकेदार को देना मंजूर किया. इस प्रकार, जानकारी के अभाव में, नागरिक / कार्यकर्ता इस भ्रष्टाचार को रोक नहीं पाते

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http://www.business-standard.com/article/news-ani/gst-bill-unanimously-passed-in-parliament-443-members-in-ls-vote-in-favour-116080801634_1.html

भारतीय जनता इस प्रकार जानकारी आसानी से देख नहीं सकती है. केवल एक ही तरीका है कि उसे सूचना अधिकार पाने के लिए धक्के खाने पड़े और इसकी भी कोई गारंटी नहीं है कि सूचना अधिकार डालने से जानकारी सही प्राप्त होगी या प्राप्त होगी भी.

दूसरे देश आसानी से बहुत सारी पब्लिक रिकोर्ड और जानकारी देख सकते हैं और अपने लिए और देश के लिए महत्वपूर्ण निर्णय ले सकते हैं. लेकिन भारतीय जनता के सन्दर्भ में ऐसा नहीं है. इसीलिए, भारतीय लोगों को मजबूरी में या तो अनिर्णायक रहना पड़ता है या तो अंध-भक्त बनना पड़ता है.

अमेरिका जैसे दूसरे देशों में, बहुत से राज्य जैसे नेब्रास्का आदि लोकसभा, विधानसभा आदि में पेश बिल पर हुई वोटिंग को भी सार्वजानिक दिखाते हैं , किसने किस बिल पर किस प्रकार वोट किया था, रिकोर्ड का पूरा इतिहास होता है.

कृपया देखें –

https://nebraskalegislature.gov/bills/

https://legiscan.com/TX/rollcall/SB4/id/605166

B. तो समाधान क्या है ?

एक अल्प-कालीन समाधान यानी जो किसी भी स्तर पर अफसर तुरंत लागू कर सकती है वे ऐसी नागरिक-प्रामणिक, पारदर्शी सरकारी वेबसाईट बनाएँ जिसपर किस अफसर ने क्या कार्य किया और किस अफसर ने किस तिथि पर कितनी राशि को किस ठेकेदार के लिए मंजूर की उसकी विस्तृत जानकारी हो. और ये सारी जानकारी को कोई नागरिक आसानी से राशि पारित करने वाले अफसर के नाम, ठेकेदार का नाम और तिथि डालकर ढूँढ सकता है.

इस प्रकार की वेबसाईट बनने से नागरिक को हर प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए भीख नहीं मांगनी पड़ेगी और न ही अपनी जान गवाना पड़ेगा. आज, नागरिक ये पता नहीं लगा सकते कि उनके द्वारा दिए गए गवाही या सबूत एक दिन बाद या एक महीने बाद नष्ट कर दिए गए हैं. लेकिन इस प्रकार की वेबसाईट रहेगी तो सबूत और गवाई को दबाने की भी सम्भावना न के बराबर हो जायेगा. अफसर देखेगा कि सबूत को दबाया नहीं जा सकता है, अब तो लाखों-करोड़ों को दिख रहे हैं और कोई भी आसानी से जानकारी को धुंध सकता है, डाउनलोड कर सकता है. और गुंडों को भी समझ में आएगा कि गवाह ने अपना बयान सार्वजनिक कर दिया है – इसीलिए अब गवाह को मारने से कोई लाभ नहीं है. इसीलिए जब सबूत दबेंगे नहीं तो जिस क्षेत्र के लिए इस प्रकार की वेबसाईट बनेगी, उस क्षेत्र में भ्रष्टाचार और अपराध में कमी आएगी

पास किये गए भुगतान की विस्तृत जानकारी कैसे दिखाई जा सकती है, इसका एक उदाहरण यहाँ देखें  –

http://local.ohiocheckbook.com

C. तो कार्यकर्ता / नागरिक इस प्रकार के सिस्टम और कानून लाने और कम समय में अपने क्षेत्र और पूरे देश में भ्रष्टाचार और अपराध को कम करने के लिए क्या कर सकते हैं ?

1. एक कागज पर मांग लिखकर उस मांग के लिए वोटर नंबर / एड्रेस लेना और उसका फोटो इन्टरनेट पर डालकर शेयर करना –

क्योंकि नागरिक / कार्यकर्ता पूरे राज्य या पूरे देश के नागरिकों के साथ करने की तुलना में एक जिले के लोगों के साथ आसानी से काम कर सकते हैं, सभी नागरिक और कार्यकर्ता इस प्रकार की साईट को अपने स्थानीय अफसरों से मांग कर सकते हैं. हो सके तो नागरिकों को अपनी मांग अपने वोटर नंबर के साथ सार्वजानिक करनी चाहिए (वोटर नंबर नहीं हो तो अपना पता दे सकते हैं). हो सकता है कि किसी नागरिक कि ऐसी स्थिति नहीं हो कि वो अपना वोटर नंबर / पता सार्वजानिक कर सकता हो लेकिन वो दूसरों को ऐसा करने के लिए जरूर बोल सकता है. यदि 10% नागरिक भी इस प्रकार मांग अपने वोटर नंबर / पता के साथ सार्वजानिक मांग करते हैं तो ये मांग नागरिक-प्रामाणिक हो जायेगी जिसके लागू होने की सम्भावना काफी बढ़ जायेगी. नागरिक-प्रामाणिक का मतलब है कि कोई भी नागरिक समर्थन डाटा का सैम्पल लेकर, उनके पता प्राप्त कर सकता है और समपर्क करके जांच सकता है. इस प्रकार, नागरिक झूठ को सच के रूप में पेश होने से रोक सकता है.
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नीचे एक सैम्पल है कि आप किस प्रकार एक कागज पर रोड निर्माण और रोड सुधार में पारदर्शिता के लिए वेबसाईट अपने नगर निगम के कमिश्नर से कर सकते हैं. कागज पर इस प्रकार लिखिए और उसका फोटो लेकर उसे इन्टरनेट पर डाल दीजिए –
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हम, XYZ के निवासी, XYZ नगर के कमिश्नर से ये मांग करते हैं कि ऐसी वेबसाईट बनाएँ जिसमें रोड की गुणवत्ता और मरम्मत के बारे में ये जानकारी हो ताकि नागरिक रोड की गुणवत्ता पर नजर रख सकें और भ्रष्टाचार को रोक सकें –

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1. ठेकों की बोलियां और ठेकेदारों की जानकारी : ठेके किस आधार पर किसको दिए गए और अफसर का नाम जिसने निर्णय लिया
2. सरकारी व्यय के लिए जारी किए गए सभी चेक-बुक की काउंटर पैड जानकारी – अफसर का नाम जिसने भुगतान पास किया गया
3. पिछले ठेके – पहले बताये विवरण अनुसार पिछले वित्तीय वर्षों से ठेकों और व्यय वेबसाइट पर शामिल किए जाने चाहिए
4. अधिक शक्तिशाली खोज: निवासियों के लिए ठेकेदार के भुगतानों का पता लगाना आसान हो, ताकि वे आसानी से ठेकेदार के स्थान की खोज कर सकें, कौनसे अफसर ने भुगतान को पास किया था या सड़क में प्रयोग होने वाली सामग्रियों की जांच की थी, उस महीने की खोज कर सकें जब भुगतान किया गया था और निवासी ठेके और अनुदान में अंतर कर सकें.
5. सड़क में प्रयोग होने वाली सामग्रियों के नमूने की जांच की डिटेल में रिपोर्ट – अफसर जिन्होंने जांच की, उनका नाम.
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यदि आप इस मांग का समर्थन करते हैं, तो कृपया नीचे अपना नाम और वोटर नंबर डालें (यदि वोटर नंबर नहीं हो तो अपना एड्रेस डालें) ये इन्टरनेट पर सार्वजानिक रखा जायेगा ताकि दूसरे संपर्क करके जांच सकें और ताकि सरकारी अफसर ट्रान्सफर आदि द्वारा फिसल नहीं सकें और इसकी लागू होने की सम्भावना बढ़ जाये. यदि पर्याप्त वोटर नंबर समर्थन सार्वजानिक आयेंगे, तो जहाँ भी सरकारी अफसर जायेंगे, नागरिक नको ये मां न पूरी करने का अच्छा कारण देने के लिए कहेंगे कि क्यों उन्होंने इस हजारों / लाखों लोगों की मांग के लिए कुछ भी नहीं किया है.
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इसके अलावा, XYZ  नगर कमिश्नर को फोन / एस.एम.एस. करें (मोबाइल नम्बर -____) और उसको इन मांगों के बारे में सूचित करें.
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सीरियल नम्बर                          नाम                                                                            वोटर नंबर / एड्रेस (पता)
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2.आप अपने सम्बंधित अफसर जैसे नगर निगम कमिश्नर को अधिक संख्या में फोन या एस.एम.एस कर सकते हैं
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3. ट्विट्टर खाता बनाएँ जिसमें आपका वोटर नंबर या पता ट्विट्टर प्रोफाइल में हो और उचित अफसरों को ट्वीट करें उचित हैश टैग और लिंक के साथ.<
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4. अपनी मांग एस.एम.एस करके सार्वजानिक अपने वोटर नंबर के साथ दिखाएँ – मांग के लिए एस.एम.एस को इकठ्ठा करके सार्वजानिक वोटर नंबर के साथ दिखाया जा सकता है. डेमो के लिए देखें smstoneta.com/hindi
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5. वीडियो जिसमें वोटर नंबर / एड्रेस के साथ ये मांग हो  – कार्यकर्ता वीडियो बना कर वीडियो को अपलोड कर सकते हैं जिसमें ये मांगें हों और उनका वोटर नंबर या पता हो

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हमारा पूरा प्रस्ताव विस्तार से पढ़ने के लिए कृपया ये लिंक देखें –

fb.com/notes/1601170163309300

अधिक जानकारी के लिए कृपया इस ग्रुप से जुड़ें –

fb.com/groups/rrgindia और इस पेज को फोलो करें – fb.com/brvparty