अनुसूचित जाति (दलित), अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) और अन्य पिछड़ा वर्ग के गरीब लोगों के समर्थन द्वारा आरक्षण घटाना और आरक्षण की जरूरत कम करना

आरक्षण का उद्देश्य समाज के उन वर्गों को ऊपर उठाना है जो सदियों से दबाए गए हैं और आज भी दबाए जा रहें हैं. क्योंकि अगर यहाँ व्यक्ति के किसी विशेष जाति या परिवार में जन्म होने के कारण, संपर्क (संचार) के माध्यमों में, शिक्षा, नौकरियों और अन्य अवसरों में बहुत ज्यादा असमानता होगी, तब पूरा समाज भुगतेगा और वहाँ योग्यता नहीं होगी.

हालाँकि, आरक्षण का प्रावधान संविधान में सिर्फ एक सीमित समय के लिए ही रखा गया था और हर 10 साल या उसके बाद आरक्षण पर फिर से विचार किया जाना था. इसका मतलब है कि जनसेवकों का काम था कि वे ऐसी नीतियाँ बनाएँ जिससे आरक्षण की जरुरत कम या समाप्त हो जायेगी लेकिन अब तक ऐसी कोई नीति नहीं बनायी गयीं.

एक अन्य सच्चाई ये भी है कि 10% से भी कम विद्यार्थी जनसँख्या 12वीं कक्षा भी पास नहीं हैं. तो आरक्षण का लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुँचता, ये सिर्फ आरक्षित जातियों के क्रीमी लेयर (उन जाति-समाज के उच्च वर्ग) तक पहुंचा है.

इसका समाधान क्या है ?

आरक्षण घटाने का पहला कदम : आरक्षण की जरुरत घटाना – गरीबी कम करने के लिए, शिक्षा सुधार के लिए और शीघ्र और न्याय संगत मुकदमों के लिए उचित राजपत्र अधिसूचना छपवाकर

प्रस्तावित “नागरिक और सेना के लिए खनिज आमदनी” कानून ड्राफ्ट से गरीबी कम होगी (जानकारी के लिए smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 5 देखें). और शिक्षा में प्रस्तावित बदलाव जैसे कि राईट टू रिकॉल-जिला शिक्षा अधिकारी आदि, शिक्षा में दलितों और ऊंची जातियों के बीच का अंतर और भी घटा देगा (जानकारी के लिए smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 30 देखें). और मंदिरों और धार्मिक संस्थानों के लिए प्रस्तावित कानून दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को भी घटा देगा  (देखें  tinyurl.com/HinduSashakt). आगे ये प्रस्तावित किया गया है कि सभी प्रकार के इंटर-व्यू (साक्षात्कार) पुलिस, सरकारी बैंको, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, न्यायपालिका, सरकारी वकील और अन्य सेवाओं के शुरुवाती भर्ती के स्तर से समाप्त किया जायेगा और ये भी नौकरी में दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को घटा देगा. ये और भ्रष्टाचार को कम करने के सभी राजपत्र सूचनाएं समाज में गुणवत्ता बढ़ाएंगे.

आरक्षण घटाने का दूसरा कदम: “भत्ता (अलग से मिलने वाला धन) बनाम आरक्षण” की प्रणाली

1. हम एक प्रशासनिक प्रणाली का समर्थन करते हैं जिसे आर्थिक-विकल्प (आर्थिक-चुनाव या पैसों का भुगतान) भी कहते हैं गरीब अनुसूचित दलित, अनुसूचित आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग के समर्थन (हां) द्वारा आरक्षण कम करना.

किसी उपजाति का कोई भी सदस्‍य जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अथवा अन्‍य पिछड़े वर्ग का हो, वह तहसीलदार के कार्यालय जाकर अपना सत्‍यापन (जांच) करवाकर आर्थिक-विकल्प के लिए आवेदन कर सकता है. इस आर्थिक-विकल्प में निम्‍नलिखित बातें (तथ्‍य) हैं –

  • उस व्यक्ति का अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग का दर्जा बना रहेगा
  • उसे समायोजित मुद्रास्‍फीति (महंगाई दर के अनुसार एडजस्ट किया गया) (इनफ्लेशन एडजस्‍टेड) अनुसार 1200 रूपए हर साल मिलेगा जब तक कि वह अपने आर्थिक-विकल्‍प के चयन को रद्द नहीं कर देता
  • जब तक उसे पैसे का भुगतान होता रहेगा, तब तक वह आरक्षण कोटे में आवेदन नहीं कर सकता
  • जिस दिन से वह अपने आर्थिक-विकल्प को रद्द कर देगा, उस दिन से वह आरक्षण के लाभ के लिए योग्य माना जाएगा
  • जिन्होंने आर्थिक-विकल्‍प लिया है, उनकी संख्‍या के आधार पर आरक्षित पदों की संख्‍या में कमी की जाएगी
  • इसके लिए पैसा सभी जमीनों पर टैक्स (कर) की वसूली से आएगा कहीं और से नहीं

2. उदाहरण – मान लीजिए कि भारत की आबादी 100 करोड़ है जिसमें से 14 प्रतिशत अर्थात 14 करोड़ लोग अनुसूचित जाति के हैं. इसलिए यदि किसी कॉलेज में 1000 सीटें हैं तो उनमें से 140 सीटें आरक्षित रहेंगी. अब मान लीजिए, इन 14 करोड़ लोगों में से लगभग 6 करोड़ लोग आर्थिक-विकल्‍प का रास्‍ता अपनाते हैं तो उनमें से प्रत्‍येक को हर महीने 100 रूपए मिलेगा और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 6 प्रतिशत कम हो जाएगा अर्थात यह 8 प्रतिशत रह जाएगा.

अधिकतर गरीब दलितों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता और जैसे जैसे दलितों में संपन्न और धनिक संख्या में बढ़ते जा रहें हैं, गरीब दलितों के लिए अवसर और कम हो गये हैं. आर्थिक-विकल्प एक ऐसा सिस्टम बनाता है जिसके द्वारा गरीब दलित भी आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं. इनमें से अधिकांश आर्थिक-विकल्प को चुनेंगे (जो कि आरक्षण में दिए जाने वाले सामाजिक विकल्प से विपरित है). इससे आरक्षण घटेगा.

आरक्षण घटाने का तीसरा कदम: पहले अपना-कोटा

एक व्यक्ति को सीट पहले उसके अपने कोटा में और फिर सामान्य कोटा में ही मिलेगी; तो अगर वह सामान्य मेरिट सूची में भी है, तब भी उसे सामान्य मेरिट सूची में सीट नहीं मिलेगी लेकिन अपनी मेरिट सूचि में सीट मिलेगी. तो मान लो किसी जगह 100 सीटें हैं जिसमें 14 सीटें अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित हैं. अब सोचिये 1000 छात्र एक परीक्षा के लिए आवेदन करतें हैं जिसमें से 100 अनुसूचित जाती से हैं. अब शीर्ष 100 में 3 अनुसूचित जाती के हैं. तब इन 3 अनुसूचित जाती को सीट अनुसूचित जाती के कोटा में मिलेगी और अनुसूचित जाती की अलग मेरिट सूचि में उनकी सीटें 11 होगी.

तो आर्थिक विकल्प के द्वारा, आरक्षण कोटा 50% से घटकर शायद 10% या और भी कम हो सकता है. अब बहुत से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग किसी भी तरह से मेरिट सूचि में आ जाते हैं और तब प्रभाविक आरक्षण और भी कम, शायद 5% हो जायेगा.

चौथा बदलाव : अधिक पिछड़े को ऊँची प्राथमिकता देना

ऐसे समुदाय जिनका प्रशासन में कम प्रतिनिधित्व (भागेदारी) है उन्हें ज्यादा सीटें मिलेंगी जब तक उनका प्रतिनिधित्व सामान स्तर पर नहीं आ जाता. इसके लिए हमें एक पूर्ण जाति जनगणना की आवश्यकता है. एक बार पूर्ण जाति जनगणना हो जाती है, हर एक उपजाति का देश के प्रशासन में प्रतिशत प्रतिनिधित्व निकाला जायेगा और सबसे कम प्रतिनिधित्व करने वाली उपजाति को ऊँची प्राथमिकता मिलेगी (पहला अवसर) जब तक उस उपजाति का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं हो जाता.

अधिक जानकारी के लिए, कृपया smstoneta.com/prajaadhinbharat का अध्याय 36 देखें या हमसे संपर्क करें.