शराब सेवन और नशे की लत और सम्बंधित अपराधों को कम करना 

आजकल, बहुत से मुख्मंत्री इस समस्या का हल शराबबंदी और यहाँ तक की हलकी औषध जैसे भांग आदि को बंद करके निकाल रहे हैं. लेकिन इसका नतीजा सिर्फ मेथानोल मिली हुई शराब की अवैध तस्करी और अवैध बिक्री होता है जिसका परिणाम ऐसी मिलावटी शराब का सेवन करने वालों की मौत और भयंकर बीमारी होता हैं जबकि राज्य नशा-मुक्ति केन्द्रों की हालत बहुत खराब है.

अफीम, हशिस और अन्य कम नशे वाली औषधियां, मानसिक रोगों की औषध की जरुरत को कम करती हैं |

अफीम दर्द निवारक दवायों की भी जरुरत को कम करता है. इसलिए दवा बनाने वाली कंपनियों के मालिकों ने प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों को रिश्वत देकर अफीम, हशिस के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा किया और फिर उन्होंने सांसदों को पैसा देकर अफीम और हशिस को बंद करने का कानून बनवाया. अफीम और हशिस पर बैन से पुलिसवालों, मंत्रियों और जजों आदि को मिलने वाला घूस का पैसा भी पहले से बढ़ जाता है. इसका दुष्प्रभाव ये हुआ कि अफीम और हशिस का दाम 100 गुना बढ़ गया और तब अफीम की लत वाले व्यक्ति को चोरी जैसे अपराधों का सहारा लेना पड़ा और इसका नतीजा अफीम खरीदने के लिए हिंसा करना.

लेकिन यदि अफीम को कानूनी मान्यता दे दी जाए, तो अफीम चाय और कॉफी से भी सस्ती हो जायेगी और किसी को अफीम खरीदने के लिए हिंसा का सहारा नहीं लेना पड़ेगा. अफीम पर प्रतिबन्ध लगने से ज्यादा हानिकारक ड्रग्स जैसे स्मैक आदि का अधिक इस्तेमाल होता है क्योंकि ये प्रति घन सेंटीमीटर मात्रा में ज्यादा नशा देती है. और क्यों मात्रा का घन सेंटीमीटर एक कारक बन जाता है ? क्योंकि जब किसी वास्तु पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो फेरीवाले (बेचनेवाले) का फायदा क्यूबिक सेंटीमीटर मात्रा पर ज्यादा निर्भर करता है और ढुलाई लागत पर नहीं. स्मैक आदि जैसे नशीले पदार्थ क्यूबिक सेंटीमीटर में कम स्थान लेते हैं और इसलिए ये फेरीवाले के लिए अफीम से ज्यादा सस्तें होतें है. इससे नशेबाजों का स्वास्थ्य और भी खराब हो जाता हैं और दवा बेचने वाली कंपनियों की बिक्री बढ़ जाती हैं. इसके अलावा, अफीम पर रोक लगने से तम्बाकू की बिक्री और कैंसर बढ़ जाता है | इससे दवा बेचने वाली कंपनियों की बिक्री और बढ़ जाती हैं. इसलिए कुल मिलाकर, अफीम पर रोक से केवल दवा बेचने वाली कंपनियों, भ्रष्ट पुलिसवालों, जजों, मंत्रियों को फायदा होता और नशेबाजों को यह बर्बाद कर देता है और समाज में अपराध की दर भी बढ़ती है.

क्या चरस को कानूनी मान्यता देने से अपराध घटेंगे या बढ़ेंगे ? एक सच्चे उदहारण के रूप में, नीदरलैंड ने अफीम को कानूनी मान्यता दे दी और इससे गंभीर अपराधियों की संख्या जनवरी-2002 में 14,000 से कम होकर जनवरी-2009 में 12,000 हो गयी. नीदरलैंड विश्व के कुछ ऐसे देशों में से है जहाँ उच्च सुरक्षा वाले जेलों को अब बंद किया जा रहा है.

नीदरलैंड मॉडल पुर्तगाल जैसे दूसरे देशों ने भी अपनाया और उन्हें भी समान परिणाम मिले. नीदरलैंड आदि देशों ने अफीम को कानूनी मान्यता देने के साथ साथ नशा मुक्ति केन्द्रों में सुधार किया.

तो क्या हमें अफीम को कानूनी मान्यता देनी चाहिए? हम टी.सी.पी. (प्रस्तावित नागरिक प्रामाणिक मीडिया पोर्टल) द्वारा इस मुद्दे पर जनता का मत लेने का प्रस्ताव करते हैं. जब अफीम की कानूनी-मान्यता जनता मत के लिए रखी जाएगी, अधिकाँश नागरिक महसूस करेंगे कि अफीम पर रोक नशेबाजों के सेहत को खराब कर रही है और गैर नशेबाजों की संपत्ति और जीवन पर खतरा बढ़ा देती है. इसलिए अधिकतर नशेबाज हां पर सहमत होंगे और ऐसा ही उनके परिवार के सदस्य और गैर नशेबाज करेंगे. और तब बिना किसी घृणा (बदनामी) के अभियान के ही अफीम कानूनी रूप से वैध हो जाएगी.