स्वदेशी बढ़ाना, अन्यायपूर्ण बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार को कम करना और विदेशी निवेश कम करना

क्या हमें सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विरोध करना चाहिए? नहीं . तो हमें कौन सी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विरोध कहाँ करना चाहिए और क्यों? 

बहुत सी विदेशी कंपनियां जैसे माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकल, इंटेल, मोटोरोला और हजारों ऐसी कंपनियां सही तरीके से सम्पतियों की रचना करती हैं, लेकिन कई भ्रष्ट बहुराष्ट्रीय कंपनियां  जिनमें कुछ भारतीय शीर्ष कंपनियां भी शामिल हैं, बैंक, खनिज, प्रिंट मीडिया, टीवी चैनलों आदि को कब्जे में लेने के एजेंडे पर कार्य करती हैं और व्यापार और समाज में अपना एकाधिकार जमाती हैं. ऐसी कम्पनियां देश में सम्पत्तियो की रचना नहीं बल्कि उनका हरण करती हैं.

यहाँ तक कि अच्छी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने एकाधिकार से रक्षा क्षेत्र में भी, गहरे संकट में डाल सकती हैं. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि हम एक अमेरिकी कंपनी जैसे नोर्टेल से संचार के उपकरण आयत करते हैं (विदेश से मंगवाते हैं). इन उपकरणों में ये कंपनियां जिन रेडियो-रिसीवर का प्रयोग करती हैं उन्हें सिग्नल भेजकर निष्क्रिय किया जा सकता है. अगर इन उपकरणों का उपयोग भारत में होता है तब अमेरिका-भारत युद्ध के दौरान अमेरिका, भारत के पूरे दूरसंचार नेटवर्क को मात्र एक बटन दबाकर बंद कर सकता है और पूरी भारतीय सेना अंधी और बहरी हो जायेगी यानी सेना में अंदर संपर्क साधन बंद हो जायेगा और हम युद्ध हार जायेंगे. इसलिए उच्च तकनीक से सम्बंधित ऐसे उपकरण जिससे हमारी सुरक्षा प्रभावित हो, हमें अच्छी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से भी आयत नहीं करने चाहिए.

भ्रष्ट लॉबियों (कंपनियों का समूह) द्वारा प्रायोजित और बिकाऊ मीडिया द्वारा प्रचारित “मेक इन इंडिया” या तथाकथित (कहे जाने वाला) “पूर्ण स्वदेशी” उत्पादन वास्तव में केवल पुर्जो को विदेश से आयात करके उन्हें भारत में जोड़ना है और अधिकतर असेम्ब्ली लाइन और उनके कल पुर्जे विदेशों से मंगाए जाते है. मतलब, हम अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए भ्रष्ट लॉबियों पर निर्भर हैं. इस निर्भरता का लाभ उठाकर ये भ्रष्ट लॉबियाँ उद्योगपतियों, नेताओं, मंत्रियों आदि को ब्लैकमेल करके अपने लिए लाभदायक कानून आदि अपना काम “लड्डू या डंडा” तरीके से करवाती हैं (मतलब यदि उद्योगपति, नेता, मंत्री आदि इन लॉबियाँ के अनुसार कानून बनाते है तो इन्हें इनाम दिया जायेगा और अगर नहीं करते है तो इन्हें कष्ट झेलने होंगे).

अत: हमें ऐसे सरकारी आदेश (राजपत्र अधिसूचना) की जरुरत है जो कि संपत्ति तथा समृद्धि की संरचना करने वाली कंपनियों को व्यापार की अनुमति दे और भ्रष्ट बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिक जो सिर्फ एकाधिकार जमाते हैं उन्हें रोकें और साथ में हमें ऐसी राजपत्र अधिसूचना भी चाहिए जो अच्छी कंपनियों से सुरक्षा में होने वाले नुक्सान को भी कम कर सके.

हमें भ्रष्ट बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण को कम करने के लिए क्या उपाय करने चाहिए ?

इसके लिए जरुरी है कि हम अपनी उत्पादकता और तकनिकी कुशलता को बढ़ाएँ तथा यह भी सुनिश्चित करें कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के देश में बढ़ते प्रभाव को कम किया जा सके.

अपनी ताकत और उत्पादकता बढ़ाने के लिए हमें राईट टू रिकॉल प्रक्रियाँ, जूरी सिस्टम, वेल्थ टकस (संपत्ति-कर) द्वारा टैक्स संग्रह प्रभावशाली बनाना आदि कानूनों को राजपत्र में छपवाने की जरुरत है, जिससे हम अदालतों में, पुलिस में और राजनीती में अन्याय को कम कर सकें और उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि हो. साथ में हमें ऐसी राजपत्र अधिसूचना भी चाहिए जो भारत में भ्रष्ट बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारत में बढ़ते प्रभाव पर लगाम लगा सकें.

ध्यान देने योग्य बात ये है कि सिर्फ ऐसे तरीके जिनका लक्ष्य भ्रष्ट बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत से निकालना है और भारत की कमजोरियों को सुधारना नहीं है फेल हो जायेंगे जब बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिक अमेरिकी सेना भेजेंगे.

उदहारण के लिए, मान लीजिए कि हम कानून बनाकर सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसे कोको-कोला या मेकडॉनाल्ड आदि को भगा देते हैं और कानून बनाकर हम सभी मिशनरीज़ पर भी प्रतिबन्ध (बैन) लगा देते हैं लेकिन जब बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिक अपनी कंपनियों के व्यापार हितों के लिए अमेरिकी सेना भेजेंगे, तब कोई कानूनी ड्राफ्ट मदद नहीं करेगा. ऐसी परिस्थिति में सिर्फ हथियार ही हमारी मदद करेंगे और हम तब तक हथियारों का निर्माण नहीं कर सकते हैं जब तक हमारी न्याय व्यवस्था, पुलिस और प्रशासन में भ्रष्टाचार और अन्याय कम नहीं होता. तो केवल वे ही कानून लाना जिनसे भ्रष्ट बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत से बहार निकाला जा सके हमारी सुरक्षा और स्वदेशी को बढ़ावा करने के लिए अपर्याप्त हैं.

पूरी जानकारी के लिए tinyurl.com/SwadeshiBadhao और fb.com/notes/674053689310742 देखें या हमसे संपर्क करें.